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दान का पैसा विद्यालय में लगाओ

Narendra Shende
narendra.895@rediffmail.com
Thursday, October 3, 2019, 08:40 AM
School

जो मूर्ख दलित नवरात्र के व्रत रखते है उन्हे शायद ये नही पता कि सन 1930 से पहले उन्हे किसी भी हिन्दू देवी देवता की पूजा करने का अधिकार नही था ये अधिकार भी तुम्हे बाबा साहब ने ही दिलाया है !

 1930 कालाराम मंदिर आंदोलन के बाद सब दलितों को पूजा करने कि आज़ादी मिल गयी! ब्राह्मणो के झूठे प्रचार का स्तर इतना ज़ादा था की बेचारे दलित इन ब्राह्मणों के पूर्वजो को ही भगवान समझ बैठे, ब्राह्मणवाद के बाज़ार से जिसे जो भगवान पसंद आया वो उसे उठाकर घर ले आया !

 कोई राम लाया, कोई लक्ष्मी लाया, कोइ कृष्ण लाया , बहुत से मूर्ख तो ऐसे थे जो पूरा बाज़ार उठाकर घर ले आये।

बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाएँ कुछ और ही कहती है जो पूरी तरह हिन्दू ब्राह्मणवाद के खिलाफ़ थी, लेकिन ज्यादातर दलितों द्वारा नज़रअंदाज कर दी गयी !

सन 1930 के बाद से 86 साल हो गये है दलितों को नवरात्र करते करते और एक साल में 2 बार आते है|

 नवरात्र इसके बावजूद भी कोई चमत्कार नही हुआ और न ही कोई बदलाव आया लेकिन फिर भी झूठी उम्मीद लेकर बैठे है कि कभी तो देवी जी इन पर मेहरबान होगी!

आइये जानने की कोशिश करते है कि अगर हमने सिर्फ नवरात्र के व्रत न करे होते तो क्या होता। क्योंकि ब्राह्मणों के साल मे बहुत से व्रत आते है जिनमे दलितो का काफी धन खर्च होता है जिसका सीधा लाभ ब्राह्मण बनिया को होता है|

अगर मोटा मोटा हिसाब लगायें तो 1930 के बाद 86 साल हो गये है नवरात्र के व्रत रखते हुए जो की एक साल मे 2 बार होते है 

तो कुल नवरात्र हुए 86×2=192 और हर नवरात्र मे 9 व्रत होते है तो कुल व्रत हुए 192×9=1728 यदि एक व्रत पर कम से कम 100 रुपये भी खर्च होते है तो कुल खर्च हुआ 1728 × 100 = 172800 रुपये और ऐसे आज भी लगभग दस करोड दलित परिवार होंगे जो इन पाखन्ड़ मे विश्वास रखते है! 

तो कुल मिला कर खर्च हुआ 172800 ×100000000 = 17280000000000 रुपये

साथियो वास्तव मे 17280000000000 बहुत बड़ी संख्या है ! 

सोचो इतना पैसा अपने बच्चो कि शिक्षा मे लगा होता तो क्या होता, हम अपने खुद के विश्वविद्यालय खोल सकते थे, हमारी खुद की सरकार भी बन सकती थी! 





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