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बौध्द एवं मुस्लिम संस्कृति

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Sunday, June 30, 2019, 04:33 PM
Buddh

बौध्द एवं मुस्लिम संस्कृति
    सम्राट अशोेक ने छोटे और कमजोर राज्यों के साथ अन्य देशों कि वृद्धि की थी, और अपने राज्यों का दौरा किया तब सड़कों के दोनों ओर स्वागत करते हुए लोगों की भीड़ इकट्ठी होती थी। सम्राट अशोक अपनी प्रजा को अपने आँखो से उनके सामाजिक-आर्थिक समृद्धि को देखता था, और उस समय जो स्तूप और संघाराम बने थें उसका वैभव और ऐश्वर्य ठीक वैसे ही था, जैसे आज दक्षिण-पूर्व एशिया में देखते है। सम्राट अशोक ने यह अहसास किया था कि स्तूपों-संघाराम कि वैभव और ऐश्वर्य के निर्माण में प्रजा ने जो सहयोेग दिया वास्तविक वह स्वच्छ सम्पदा, चरित्रवान अच्छे अमीर और पवित्र कोष का समुचित धम्मचक्र का समता मूलक सार्वभौमिक सामाजिक-आर्थिक विकास था। वर्तमान में तेजी से व्यापक होता जा रहा भूमंडलीकरण और ग्लोबल वार्मिंग की समस्याओं के समाधान का हल निकालने के लिए साझा प्रयास करने कि जिम्मेदारी और यह सबसे अधिक जरूरत है आपसी समझ और नैतिक शिक्षा के माध्यम से उम्मीद की जा सकती है भूमंडलीकरण और ग्लोबल वार्मिंग की समस्यओं और आतंकी घटनाओं का समाधान संभावित भविष्य में विनाशकारी प्रभाव से बचने के लिये नैतिक शिक्षा के माध्यम से उपयुक्त रास्ता निकल सकता है।
    विश्व जगत में बौद्ध, इस्लाम, और ईसाई यह तीन सांस्कृतिक सभ्यताये है और इसमें पश्चिम के ईसाई, भूमंडलीकरण और ग्लोबल वार्मिंग जैसे समस्याओं से जुड़े है और इस्लामिक कट्टरपंथी आंतकी घटना के लिये दोषी माने जाते है। बौद्ध इन दोनों परपंराओ के साथ मिलकर समस्याओं का समाधान खोजने में लगे हुए है। ईसाई परम्परा का मूल स्त्रोत बुद्ध की शिक्षा है, और यह विवाद नहीं रहा हैं। भारत के ईसाई भी इस ऐतिहासिक सत्य को स्वीकार कर चुके है। इन दो सभ्यताओं में इस्लामिक दुनिया भी है और आतंकी और भूमंडलीकरण और ग्लोबल वार्मिंग के समयाग्रस्त समाधान के लिये इन दो सभ्यताओं के साथ बौद्ध रचनात्मक तरीकों से बातचीत करनें में भिड़ चुके है। साझा बुनियादी एक वैश्विक पुल का निर्माण किया जा सकता है और यह बौद्ध, ईसाई, और मुस्लिम लोग कर सकते है क्योंकि वैश्विक चिंता में समाधान बुद्ध के वैश्विक नैतिक आचार संहिता में अहम मुद्दो का हल होने से प्रयास में ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वैदिक ब्राम्हण का बदला हुआ नाम हिन्दू है और इसका विश्व जगत में कोई अस्तित्व नही है भले ही भारत में अपने आप को हिन्दू कहने वाले कितनी भी षेखी मारे लेकिन इनका विश्वजगत में कोई अस्तित्व नही हैं। क्योंकि भारत कि हिन्दू व्यवस्था लोंगो को जातियों में विभाजित करके ऊँच-नीच के भेदभाव से अन्याय अत्याचार को दिनो-दिन बढ़ावा दे रहे हैं। वैदिक ब्राम्हणवाद के वर्णव्यवस्था ने अपने ब्राम्हण साहित्य मूल भारत का है ही नही ! असभ्य वैदिक ब्राम्हणवाद के वर्णव्यवस्था ने अपने ब्राम्हण साहित्य मूल भारत का है ही नही! असभ्य वैदिक ब्राम्हणवाद के वर्णव्यवस्था ने अपने ब्राम्हण जाति का प्रभुत्व भारत के जनता पर थोपकर रखने के लिए भारत के मनमानस को काल्पनिक ईश्वरवाद में उलझाकर रख दिया यह भी एक समस्या है जो भारत तक सिमित है। और वैदिक ब्राम्हण के जाति व्यवस्था के विनाश के लिए बौद्ध कार्यरत है।
    यह लेख बौद्ध और मुसलमानों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने का उद्देश्य है ? दो समुदायों के बीच सैद्धांतिक मतभेद हमेशा रहा और इसे समझने कि जरूरत है और बौद्धो के मानवीय मूल्यों के हनन और बौद्ध के विरासत को नष्ट करने कि षुरूआत वैदिक ब्राम्हणवाद का नायक ब्राम्हण सेनापति पुष्यमित्र वास्तविक अन्याय और अत्याचार और मानवीय अधिकारों का हनन करने वाला दुनिया का प्रथम व्यक्ति है। मुस्लिम आक्रमणकारियों में बौद्धों के मानवीय मूल्यों का हनन भले ही राजनीतिक उद्देश्य से किया हो, लेकिन ब्राम्हणवाद का दुष्ट नायक ब्राम्हण सेनापति पुष्यमित्रशुंग इसका उद्देश्य और कृत्य बौद्धों के विरासत को नष्ट करने के लिए निर्धारित था। ऐतिहासिक सर्वेक्षण में भगवान बुद्ध जम्बूद्वीप मे रहते थे और मुहम्मद पैंगम्बर 632 ईस्वीं मे अरब में रहते थे। इस प्रकार जम्बूद्वीप के प्राचीन सिरमौर प्रबुद्ध भारत के अपने प्रांरभिक वर्षो के अधिकांश खोजो में इस्लाम की अधिकंाश षिक्षाओं में बौद्ध साहित्यों का प्रभाव के संदर्भ षामिल है। 537 ईसा पूर्व तपस्सू एवं भल्लिक बैक्ट्रिया से दो व्यापारी भाइयों कि मुलाकात शाक्यमुनि से ज्ञान प्राप्ति के सातवे सप्ताह में हुई और यह एक आम उपासक के रूप में बुद्ध के षिष्य बने। बुद्ध ने अपने आठ केसधातु भल्लीक को दिये थे और मजार-ए-शरीफ के पास भल्लीक ने अपने षहर बल्ख स्थित एक स्तूप का निर्माण किया था। बैक्ट्रिया इरान के आकमेनीड साम्राज्य का हिस्सा बन गया, इन दो व्यापारी में भल्लीक बौद्ध भिक्षू बन गया और यह क्षेत्र थेरवाद से प्रभावित था।
- निलेश वैद्य





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