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नंदवंश के राजा शूद्र थे

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Sunday, June 30, 2019, 03:27 PM
Nandvansh

नंदवंश के राजा शूद्र थे -
    इतिहास की जानकारी के अनेक छुटपुट विवरण पुराणो, जैन और बौद्ध ग्रंथो एवं कुछ यूनानी इतिहासकारो के वर्णन में प्राप्त होते है। किन्तु उन सबमें न कोई पूर्णता है और न ऐमत्य ही। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंदो का एक राजवंश था, जिसकी अधिकांश प्रकृतियां भारतीय शासन परंपरा के विपरीत थी, कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय वर्तमान नंद राजा का पिता वास्त में अपनी निज की कमाई से अपनी क्षुधा न शांत कर सकने वाला एक नाई था, जिसने अपने रूप सौंदर्य से शासन करने वाले राजा की रानी का प्रेम प्राप्त कर राजा की भी निकटता पा ली। फिर विश्वासपूर्ण ढंग से उसने राजा का वध कर डाला, उसके बच्चो की देख देख के बहाने राज्य के हडप लिया फिर उन राजकुमारों को मार डाला तथा वर्तमान राजा को पैदा किया। यूनानी लेखको के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह वर्तमान राजा अग्रमस अथवा जंड्रमस (चंद्रमस?) था, जिसकी पहचान धनंजय से की गई है। उसका पिता महापद्यनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से नाई जाति का ठहरता है। किंतु कुछ पुराणग्रंथ महाप़नंद को शैशु नाग वंश के अंतिम राजा महानंदिन का एक नाइन के गर्भ से उत्पन्न पुत्र बताते है। जैनग्रंथ परिशिष्ट पर्वन में भी उसे वेश्यया अथवा नापित का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भो से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा नाई जाति के शूद्र थे।
    नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा महापद्यनंद हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते है, किन्तु बौद्ध और जैैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है जो सही है। उसे जैन ग्रंथो में उग्रसेन और पुराणों में महापद्यपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुग राज वृतांत वाले अशों में उसे अतिबली, अतिलोभी, महाक्षत्रांतक और परशुराम की सज्ञाए दी गई है। स्पष्ट है, बहुत बडी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखको का कथन है कि नंदो की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुडसवार, दो हजार चार घोडे वाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशो का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया और जनता से जबरदस्ती धन भी वसूल किया। यह आश्चर्य नही कि उस अपार धन और सैन्य शक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशो में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य) पांचाल (उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पाश्र्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इन्द्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरूक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पाश्ववर्ती क्षेत्र, हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणापथ में अश्मको और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उडीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुर के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलो के बीच वाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे, हिमालय और विन्ध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नही हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बडे भाग) पर एकराष्ट्र होकर राज्य किया। महापद्यनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामाणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती है।
    पुराणों में महापद्यनंद के सुमाल्य आदि आठ पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए है। किंतु बौद्ध ग्रंथो (जैसे महाबोधिवंश) में वे उसके भाई कहे गए है। वहां उनके नाम मिलते है -
1. उग्रसेन, 2. पंडुक, 3. पंडुगति, 4. भूतपाल, 5. राष्ट्रपाल, 6. गोविषाणक, 7. दशसिद्धक, 8. कैवर्त, और धन।
    पुराणों के सुमाल्य को बौद्ध ग्रंथो में उल्लिखित महापद्य के अतिरिक्त अन्य आठ नामों में किसी से मिला सकना कठिन प्रतीत होता है। किन्तु सभी मिलाकर संख्या की दृष्टि से नवनंद कहे जाते थे। इसमें कोई विवाद नही। पुराणों में उन सबका राजयकाल 100 वर्षो तक बताया गया है। 88 वर्षो तक महापद्यनंद का और 12 वर्षो तक उसके पुत्रों का। किंतु एक ही व्यक्ति 88 वर्षो तक राज्य करता रहे और उसके बाद के क्रमागत 8 राजा केवल 12 वर्षो तक ही राज्य करे, यह बुद्धिग्राह्य नही प्रतीत होता। सिंहली अनुश्रुतियों में नवनंदो का राज्यकाल 40 वर्षो का बताया गया है और उसे हम सही मान सकते है। तदनुसार नवनंदो ने लगभग 364 ई.पू. से 324 ई.पू. तक शासन किया। 
- संग्रहक - निलेश वैद्य





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