राजचिह्न ताड़ TPSG Tuesday, October 13, 2020, 04:37 PM कण्व वंश जैसा राजवंश ब्राह्मणवंशी होने के नाते इतिहास के पन्नों पर डुगडुगी पीट रहा है, जिसका एक भी पुरातात्त्विक सबूत हमें प्राप्त नहीं हैं - न सिक्के हैं, न अभिलेख हैं, न शिलालेख हैं, न ताम्रपत्र हैं ... सिर्फ पुराणों में कहानी है, जबकि उससे सैकड़ों गुना अधिक पुरातात्त्विक सबूत लिए भारत का नाग साम्राज्य इतिहासकारों का मारा इतिहास के किसी कोने में सिसक रहा है। जी हाँ, वहीं नाग साम्राज्य जिसकी हुकूमत बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और राजस्थान से लेकर पंजाब तक बड़ी शान से चलती थी। जिनका साम्राज्य उत्तरी भारत में कम से कम 5 सत्ता - केंद्रों से संचालित था - पद्मावती, कांतिपुरी, मथुरा, इंदौरखेड़ा और चंपा। दूसरी सदी के मध्य से लेकर चौथी सदी के मध्य तक जिसे इतिहासकारों ने " डार्क एज " कहा है, वह वस्तुतः नाग साम्राज्य का इतिहास है। नाग वंश में एक से बढ़कर एक राजा हुए - वीरसेन नाग, भव नाग, गणपति नाग ... अनेक! भव नाग के शिलालेख मिलते हैं, वीरसेन नाग के शिलालेख और सिक्के दोनों मिलते हैं, जबकि गणपति नाग के हजारों सिक्के मिलते हैं, ऐसे कि प्राचीन भारत में इतने अधिक सिक्के किसी राजा के नहीं मिलते हैं। इनका राजचिह्न ताड़ था, जो सिक्कों और स्मृति - चिह्नों पर पाया जाता है। पवाया ( पद्मावती ) से प्राप्त ताड़युक्त स्तंभ - शिखर का नमूना जो नागों का परचम फहरा रहा है। -बुध्दिष्ट इंटरनेशनल नेटवर्क Tags : evidence archaeological copper inscriptions archaeological history Brahmavanshi dynasty