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बौद्ध धर्म के साहित्य के खिलाफ वेदों की प्रतिक्रिया

TPSG

Saturday, December 19, 2020, 10:44 AM
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बौद्ध धर्म के साहित्य के खिलाफ वेदों की प्रतिक्रिया|

बौद्ध धर्म में "काया, वाचा और मन की शुद्धि" को अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है| (अंगुत्तर निकाय, I, p. 102) मज्ज्झिम निकाय के बालपंडित सुत्त में यह बताया गया है कि, मुर्ख व्यक्ति (बाल) बुरे कर्मों में लिप्त रहता है (काया), बुरे शब्दों का इस्तेमाल करता है (वाचा) और बुरे विचार करते रहता है (मन); इसके विपरीत, बुद्धिमान व्यक्ति (पंडित) अच्छे कर्म करते रहता है, अच्छे शब्दों का इस्तेमाल करता है और अच्छे विचार हमेशा करते रहता है|

इस तरह, बौद्ध साहित्य में पहले काया , फिर वाचा और बाद में मन को महत्व दिया गया है| यही क्रम हमें मनुस्मृति में (Manu, XII, 4.7) भी दिखाई देता है|

बौद्ध धर्म में नितिमत्ता (morality) को अत्यंत महत्व दिया गया है, इसलिए हर कर्म महत्वपूर्ण समझा जाता है और कर्म से व्यक्ति की मनिषा समझी जाती है| बुद्ध कहते हैं कि, व्यक्ति की आंतरिक प्रेरणा (intentions) उसे अच्छे या बुरे कर्म करने के लिए बाध्य करती हैं|

इसके विपरीत, ब्राह्मण धर्म के कर्म सिद्धांत में कार्य को अधिक महत्व दिया गया है| यज्ञ कार्य को सबसे बड़ा कर्म समझा गया है और उसके बाद कुछ भी दुष्ट विचार, शब्द या कार्य से कोई फर्क नहीं पड़ता, ऐसा वैदिकों का मानना था| इसलिए, वेदों में "काया, वाक् और मनस" ऐसा क्रम है| यह क्रम बौद्ध धर्म के क्रम के विपरीत है और बौद्ध धर्म की प्रतिक्रिया में किया गया है| इससे यह सिद्ध होता है कि, वेदों का निर्माण बौद्ध साहित्य की प्रतिक्रिया (reaction) में हुआ था|

-- डा. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क





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