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देवता

Sumedh Ramteke

Wednesday, July 3, 2019, 09:07 AM
Jebkatra

देवता
शादी के काडर्स छपवाने मैं सुबह घर से नौ बजे निकला था। हनूमान मंदिर से आने पर आऊटर सिगनल के पास मुझे लोगो की भीड दिखाई पडी। मैं कुछ ठिठक सा गया। यह जानने के लिये की वहा क्या हुआ, मैं भीड़ की तरफ बढने लगा। एक आदमी भीड़ की तरफ से आ रहा था। उसके करीब आते ही मैनें उससे पूछ बैठा - क्या हुआ भाई साहब वहाँ ? लोगो की भीड़ क्यों लगी है ? कोई जेबकतरा चलती गाडी से कुद पडा और गिरकर बेहोश हो गया। इतना कहकर वह व्यक्ति चुप हो गया। फिर मैंने कहा - कोई उसे अस्पताल में...... मैं बोलते-बोलते रूक गया।
जेबकतरा है, ना इसी कारण कोई भी शख्स उसके झमेले में नहीं पडना चाहता है। कहते है कि उसके प्रति हमदर्दी जताई तो पुलिस उन्हीं पर शक करेगी। जेबकरते का साथी कहकर थाने के चक्कर लगवायेगी। सूना है उसके पास में तीन तीन पर्स मिले है। एक पर्स में पूरे पांच हजार रूपये रखे थे। दूसरे पर्स मे डेढ-दो-सौ रूपये और रानीपूर से यहां तक का रेल का टिकिट था। तीसरा पर्स थोडे ही फासले पर जमीन पर पडा था। वह पर्स एकदम खाली था फटे हालत में था। कहकर वह आदमी चला गया।
उत्सुकतावश मैं भी वहा पहुंच गया गया। बेहोश पडे उस आदमी को देखकर मैं हक्का-बक्का सा रह गया था। वह श्यामलाल था। श्यामलाल और जेबकतरा ? वह शराब पीता था। वह शराबी है, यह तो मैं जानता था, किंतु वह लोगो की जेबे काटता है, वह जेबकतरा है, यह मैं आज पहली बार जान गया था। 
मैं तो उसे एक सादा आदमी समझता था। मुझे याद हैं, उन दिनों मैं रानीपूर में था। कभी कभार श्यामलाल आफिस के पास वाली चाय की दूकान पर मिल जाया करता था। तब सलाम-दुआ के साथ थोडी बहुत बातचीत हो जाती थी। बस इससे श्यामलाल से जान पहचान हो गई थी, लेकिन वह क्या करता था, कहां रहता था, यह मैंने उससे कभी नही पूछा था। पूछने की जरूरत ही महसूस नही हुई थी। कुछ दिनो बाद मेरा रानीपुर से तबादला हो गया था और मैं शहर आ गया था। रानीपुर शहर से ज्यादा दूर नही था। एक्सप्रेस गाडिया डेढ-दो घंटे मैं पहुंचा देती थी। अभी हाल मैं पंद्रह बीस दिन पहले, जरूरी काम से मेरा रानीपुर जाना हुआ था। तब श्यामलाल से मुलाकात हुई थी। उसने तो मुझे पहचान लिया था, लेकिन मैं श्यामलाल को नही पहचान पाया था। पंद्रह-सोलह वर्षो बाद जो उससे मुलाकात हुई थी। उसने ही अपना नाम बताया था। बहुत खुश हुआ था, वह मुझसे मिलकर। वह घर चलने के लिये भी आग्रह करने लगा था, लेकिन काम की व्यवस्था के कारण मैं उसके घर नही जा पाया था। मेरे मना करने भी उसने मुझे चाय-नाश्ता कराया था। पान खिलाया था। बातो-बातो में मैने बेटी की शादी का जिक्र किया था और पैसे का रोना उसके सामने मैंने रोया था। श्यामलाल ने बडी आत्मीयता से मेरे परिवार वालो तथा होने वाले दामाद के बारे में पूछताछ की थी। मैंने श्यामलाल को शादी में आने को कहा था और उसका पता ले लिया था। उसने भी मुझसे अपना पता मांगा, जो मैंने उसे दे दिया था। यद्यपि शादी की तिथि तय नही हुई थी।
शक्ल सूरत से तो नही लगता था कि वह जेबकतरा होगा। भीड में से किसी आदमी ने कहां - इसके पास से तीन पर्स मिलना और इसका चलती गाडी से कुदना ही यह साबित करता है कि यह जेबकतरा है। पुलिस ने आने और इसे अस्पताल मे पहुंचाने में देर की, तो यह बेचारा यही पर दम तोड देगा।
यह बेचारा नही है। इसे बेचारा न कहो। यह समझो की इसे अपनी करनी का फल मिल गया है। भीड में तरह-तरह की बाते हो रही थी। मैं वहां और नही रूका और वहां से चला आया। श्यामलाल की इस घटना के बारे मैंने घरवालो को कुछ नही बताया था। तीन चार दिनो बाद सुबह एक रिक्शा घर के सामने आकर रूक गया। रिक्शे से एक औरत और एक दस-बारह साल का लड़का उतरा। वे दोनो मेरे पास आये। बोले - बाकेलाल जी का मकान यही है ना।
जी! हां मैं ही हूं बाकेलाल। कहकर मैंने उन्हे भीतर आने को कहा। तब तक घर के अन्य सदस्य भी बाहर आ गये थे। ‘मैने आपको पहचाना नही।’ मैने कहा। मैं श्यामलाल की पत्नी हूॅ, राधा और आंचल से आँसू पोछने लगी। क्या हुआ श्यामलाल को! मैंने अनजान बनते हुये पूछा। वे यही शहर में आ रहे थे। आऊटर सिग्नल के पास गाडी से उतरते वक्त न जाने कैसे उनका पैर फिसल गया था और वे गिरकर बेहोश हो गये थे। उनके पास दो पर्स थे। एक तीसरा पर्स उन्ही के करीब जमीन पर पडा था। वह पर्स उनका नही था। शायद वह पर्स पहले से ही वहा पडा था। उनके पास तीन-तीन पर्स देखकर लोगों ने उन्हे जेबकतरा समझा था। अस्पताल में होश आने पर उन्होने रानीपुर का पता बताया था। हमें खबर मिलते ही हम माँ-बेटे यहाँ आ गये थे। श्यामलाल आऊटर सिग्नल के पास क्यों उतरा था। वहाँ तो कोई भी गाडी नही रूकती। कह रहे थे वहाँ से आपका घर पास में पडता है, और गाडी की गति भी धीमी हो गई थी। वापस आकर उन्हें दो बजे ड्यूटी पर भी जाना था। कहकर राधा ने थैले में से एक पर्स निकाला और वह पर्स मेरी ओर बढाते हुये बोली - ‘ये पाॅच हजार रूपये। आपकी बिटिया की शादी के लिए उन्होने जी.पी.एफ. (सामान्य भविष्य निधि) से निकाले है। मै अवाक्-सा रह गया।
कह रहे थे आप संकोची स्वभाव के है। इसी कारण आप पैसे के लिये खूलकर नही बोल पाये थे। शादी ब्याह में तो पैसे की जरूरत पडती ही है भाई साहब! अस्पताल से आज उनकी छुट्टी होने वाली है। शाम वाली गाडी से हम रानीपुर चले जायेगें। कहकर राधा ने वह रूपये वाला पर्स मेज पर रख दिया। मुझे आत्मग्लानि सी हुई थी। मैंने भी परिवार को जेबकतरा समझा था। दुर्घनाग्रस्त होने की खबर उसके परिवार वालो को नही दी थी। जाकर उसका हालचाल भी नही पुछा था। मैं अपनी ही निगाह में गिर चुका था। अब मेरी हैसियत एक कायर से ज्यादा कुछ नही थी। और श्यामलाल, वह मनुष्य नही देवता है। मैंने मन-ही-मन उसे प्रणाम किया।
- संग्रहक - सुमेध रामटेके





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