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तीसरे लोग

Sumedh Ramteke

Thursday, July 4, 2019, 06:15 PM
bhikhari

तीसरे लोग
कंधे पर झोली लटकाए चलते मैं यही सोच रहा था कि आज तो झोली भर भिक्षा लाऊंगा और तीन दिन की अपनी भुख मिटा मिटाऊंगा। मेरे पैरो में जान नही थी। मगर सामने अमीरो की बस्ती देखकर न जाने कहां से ताकत आ गई। मैं तेज-तेज चलने लगा। एक खुबसूरत बंगले के सामने पहुंचकर मैंने आवाज दी माई भिक्षा दे ? जब किसी ने मेरी आवाज नही सुनी और कोई बंगले से बाहर नही निकला तो मुझे लगा कि तू किसे आवाज देता है ? ये लोग तो बहुंत ऊंचा सुनते है। तेरी भूखी आवाज में इतनी जान नहीं। मैंने दूसरे बंगले के सामने जाकर आवाज दी। मगर मेरी आवाज वहां बंधे कुत्तो के शोर में दब गई। तीसरे बंगले के सामने पहुंचकर मुझे लगा कि यहां से तो भिक्षा अवश्य मिलेगा। माई भिक्षा दें ? कहने के लिए मैंने अपनी रही सही ताकत लगा दी। हार के अंदर से किसी बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी जो बार-बार कह रहा था। मैं यह नही खाऊंगा मुझे वो चाहिए। तभी कुछ ब्रेड बालकनी से सीधे सड़क पर आकर गिरती है मक्खन लगी ब्रेड को देखकर मैं खुशी से नही समाया। मैं ब्रेड उठाने जैसे ही नीचे झुका कि मुझसे पहले मोहल्ले के आवारा कुत्ते उस पर संघर्ष कर रहे थे, सो मै आगे बढ़ा। चलते- चलते एक मध्यवर्गीय काॅलोनी में पहुंचा। पहले ही घर पर पहुंच कर आवाज दी माई भिक्षा दे। अंदर से एक अधेड़ महिला बाहर निकली और मुझे भिक्षा देने के बजाए शिक्षा देने लगी। मैं उस महिला को हाथ जोड़कर आगे निकल गया। जब मैं दूसरे घर पहुंचा तो उस घर में शोरगुल सुनाई दे रहा था। अपने पुत्र से कह रही थी। अपने जेवरात बेचकर तुझे पढ़ाया लिखाया और तू नौकरी ढूढने के बजाए आवारा घुमने लगा। पुत्र- ‘क्या करू माॅ’ हर जगह नौकरी की तलाश में भटक रहा हूॅ, और नौकरी है कि मिलती ही नही। मां! बेटे की बाते सुनकर मैंने आवाज लगानी ठीक नही समझा और आगे चल पड़ा। तीसरे घर पर पहूंचा तो वहां पत्नी अपने पति से कह रही थी। बबलू की स्कूल की फीस भरनी है। घर में गेहूं भी नही है। मैं उनकी बाते सूनकर चूप रह गया। मेरे पेट में विकराल आग लगी हुई थी। लेकिन हर घर की परेशान देखकर कम होने लगी। चलते-चलते मैं एक गरीब बस्ती में पहूंचा। और एक झोपड़ी के सामने पहूचकर आवाज दी माई भिक्षा दे? आवाज सुनकर एक छोटी सी बालिका बाहर आई और मुझे देखकर अंदर चली गई। थोड़ी देर बाद हाथो मंे आटे से भरी कटोरी लेकर वह मेरे करीब आई। मैने आटा लेकर उसके अनसुलझे बालो पर प्यार से हाथ फेरा और आगे बढ़ गया। मेरे पेट को आटे की नही बल्कि रोटी की जरूरत थी। यही सोचकर मै दूसरी झौपड़ी की ओर कदम बढ़ाने लगा, तेज धूप के कारण मेरी आंखो के सामने अंधेरा छा गया। और मैं चक्कर खांकर वही गिर गया। आस पास की झोपड़ीयो से लोग दौड़कर आ गये तथा मुझे उठाकर पास की झोपड़ी के छायादार ओटले पर लिटा दिया। उस झोपड़ी के अंदर से एक बूंढ़ा मेरे लिए पानी का गिलास ले आया एवं अपनी बाहो का सहारा देकर मुझे पानी पिलाने लगा। जब पानी मेरे कंठ से नीचे उतरा तो उसने अपनी पत्नी को आवाज लगाते हुए कहा - अरे दूलारी रोटी की टोकरी ले आ। दूलारी झट से रोटी की कोटरी उठा लाई। जिसमें मात्र दो ही रोठी थी। इसी बीच सामने वाली झोपडी से एक व्यक्ति दाल की कोटरी ले आया। उनके भोजन ने मुझे एक नया जीवन दिया। भूखे इंसान को खाना खिलाकर वे लोग बहुत प्रसन्न थे और मैं यह सोच कर दुःखी था कि अमीरों के पास अपने कुत्तों कों खिलाने के लिए मांस था, लेकिन मुझ इंसान को खिलाने के लिए एक रोटी तक नही थी। दूसरे वे लोग थे, जो मध्य वर्गीय थे, मगर अपनी ही उलझनों में उलझे थे। मैं बार-बार यही सोच रहा था काश! दुनिया के सभी लोग इन तीसरे लोगो की तरह होते। थोडे में खुश रहने वाले, दूसरो को देखकर खुश होने वाले ?
- संग्रहक - सुमेध रामटेके





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