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देश की नागरिकता

Sumedh Ramteke

Tuesday, January 7, 2020, 09:26 AM
Savidhan

बाल गंगाधर तिलक ने अपने द्वारा लिखित सन् 1895 के "सविधान " में और उनके पत्रिका -केसरी और मराठा पत्रिका के लेख में।लिखा हैं कि "शुद्र वर्ण (पिछड़ा वर्ग ) को और अछूतों को " भारत की नागरिक्ता "  नही दी जा सकती क्योकि वर्ण व्यवस्था ( वर्णाश्रम धर्म) के अनुसार शुद्र वर्ण का एकमात्र कर्तव्य उच्च तीनो वर्ण (ब्राह्मण, छत्रिय,वैश्य) की सेवा करना हैं और  धर्म शास्त्रो के अनुसार किसी भी "अधिकारों" को धारण करने अधिकारी नही हैं।

 2 )  महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक "भारत का वर्णाश्रम धर्म और जाती व्यवस्था"  (सन् 1925)  में साफ साफ लिख कर रखा हैं कि "शुद्र वर्ण  (पिछड़ा वर्ग) और हरिजनों को  "भारत की नागरिक्ता" की मांग भी नही करनी चाहिए क्योकि इससे "वर्णाश्रम धर्म"  नष्ट हो जायेगा।"    

 3, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दूसरे सरसंघ संचालक -गुरु गोलवरकर अपनी पुस्तक "बंच ऑफ़ थॉट्स"   में यह लिखते हैं कि "शुद्र वर्ण को" देश की नागरिक्ता" किसी भी हालात में नही दी जानी चाहिये। क्योकि वेदों के अनुसार हमारे पूर्वजों ने शुद्रो को हराकर  शुद्रो को उच्च तीनो वर्णों की सेवा का कॉम सोपा हैं।"          

इस परिप्रेक्ष्य में आरएसएस समर्थित बीजेपी सरकार का CAA बिल, NRC बिल, NPA रजिस्टर  का मामला साफ साफ हो जाता हैं।

विशेष - " सन् 1932 में गोलमेज सम्मेलन (लन्दन, इंग्लैंड) में आयोजित की गयी थी जिसमे कांग्रेस की तरफ से महात्मा गांधी और हिन्दू महासभा की और से मदन मोहन मालवी  ने  प्रतिनिधित्व किया था। जिसमे इन दोनों ने  शुद्र वर्ण की  "नागरिकता " और "वयस्क मताधिकार " का धुर विरोध किया था।  लेकिन डॉ बाबा साहेब आम्बेडकर और भास्कर राव् जाधव (कुनबी), प्रो जयकर(माली ) के अकाट्य तर्कों और मजबूत आधार के कारण  शुद्र वर्ण (पिछड़ा वर्ग ) और अछूत समाज को दोनों ही अधिकार अंग्रेजी सरकार को देने पढ़े। * **जिसकी समस्त रिकॉर्ड आज भी सुरक्षित हैं , लन्दन में**

संग्रहक - सुमेध रामटेके





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