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भारत की अर्थव्यवस्था की दशा

TPSG

Friday, August 16, 2019, 04:19 PM
GDP

भारत की अर्थव्यवस्था की दशा

वो पांच संकेत जो बता रहे हैं भारत की अर्थव्यवस्था की दशा*

पूजा मेहरा वरिष्ठ बिजनेस पत्रकार, बीबीसी हिंदी कै लिए...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्त वर्ष 2024-25 तक भारत को 5 ख़रब अमरीकी डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा हैl इस वक़्त भारत की अर्थव्यवस्था क़रीब 2.7 ख़रब अमरीकी डॉलर की हैl

आर्थिक सर्वे का अनुमान है कि प्रधानमंत्री मोदी के तय किए हुए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए देश के जीडीपी को हर साल 8 फ़ीसदी की दर से बढ़ना होगाl

इस लक्ष्य के बरक्स, देश की अर्थव्यवस्था में तरक़्क़ी की रफ़्तार धीमी हो गई हैl ऐसा पिछले तीन साल से हो रहा हैl उद्योगों के बहुत से सेक्टर में विकास की दर कई साल में सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई है. देश की अर्थव्यवस्था की सेहत कैसी है, इसका अंदाज़ा हम इन पांच संकेतों से लगा सकते हैंl

*1. GDP विकास दर*

देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में पिछले तीन वित्तीय वर्षों से लगातार गिरावट आ रही हैl 2016-17 में जीडीपी विकास दर 8.2 फ़ीसद प्रति वर्ष थी, तो 2017-18 में ये घटकर 7.2 प्रतिशत रह गईl और, वर्ष 2018-19 में जीडीपी की विकास दर 6.8 फ़ीसद ही दर्ज़ की गईl

ताज़ा आधिकारिक आंकड़ों पर यक़ीन करें तो, वर्ष 2019 की जनवरी से मार्च की तिमाही में जीडीपी विकास दर 5.8 फ़ीसद ही रह गई थी, जो पांच साल में सबसे कम हैl

*आर्थिक सर्वेक्षण में देश को 5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बनाने का लक्ष्य*

_Budget 2019: मध्यम वर्ग को राहत नहीं, अमीरों पर और अधिक टैक्स_

*कैसे पूरा होगा विनिवेश का लक्ष्य?*

_भारत की अर्थव्यवस्था के फिसलकर सातवें नंबर पर जाने का क्या मतलब है?_

केवल तीन साल में विकास की रफ़्तार में 1.5 प्रतिशत की कमी (8.2 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत) बहुत बड़ी कमी है. जीडीपी की विकास दर घटने से लोगों की आमदनी, खपत, बचत और निवेश, सब पर असर पड़ रहा हैl जिन सेक्टरों पर इस मंदी का सबसे ज़्यादा असर पड़ा है, वहां पर नौकरियां घटाने के एलान हो रहे हैंl अब तक सरकार ने ऐसे कोई क़दम न तो उठाए हैं, न ही उनका ऐलान किया है, जिससे जीडीपी विकास दर में आ रही गिरावट को रोका जा सकेl

*2. खपत में गिरावट*

विकास दर घटने से लोगों की आमदनी पर बुरा असर पड़ा है. तो, अब लोग अपने ख़र्चों में कटौती कर रहे हैंl

देश में बाज़ार की सबसे बड़ी रिसर्च कंपनी नील्सन की एक रिपोर्ट कहती है कि तेज़ी से खपत वाले सामान यानी फास्ट मूविंग कंज़ंप्शन गुड्स (FMCG) की बिक्री की विकास दर इस साल जनवरी से मार्च के बीच 9.9 प्रतिशत थीl लेकिन, इसी साल अप्रैल से जून की तिमाही में ये घटकर 6.2 फ़ीसद ही रह गईl

ग्राहकों की ख़रीदारी के उत्साह में कमी का बड़ा असर ऑटो उद्योग पर पड़ा हैl बिक्री घटी है. तो नौकरियों में बड़े पैमाने पर कटौती की जा रही हैl सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के आंकड़ों पर ग़ौर करें, तो हर तरह के वाहन की बिक्री में गिरावट आई हैl

जनवरी से मार्च के बीच जहां ऑटो सेक्टर की विकास दर 12.35 प्रतिशत थीl इस दौरान 69 लाख, 42 हज़ार 742 गाड़ियां बेची गईंl वहीं अप्रैल से जून के बीच केवल 60 लाख, 85 हज़ार 406 गाड़ियों की बिक्री ही दर्ज़ की गई. बड़ी गाड़ियों यानी यात्री वाहनों की बिक्री में बहुत बुरा असर पड़ा हैl इस सेक्टर के विकास में पिछले एक साल से लगातार गिरावट ही देखी जा रही हैl

भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुज़ुकी ने जुलाई महीने में पिछले साल के मुक़ाबले कारों की फ़रोख़्त में 36 प्रतिशत की गिरावट आने की बुरी ख़बर दी हैl इसी दौरान हुंडई की गाड़ियों की बिक्री में 10 प्रतिशत की गिरावट आई हैl

बिक्री में गिरावट से निपटने के लिए गाड़ियों के ख़ुदरा विक्रेता अपने यहां नौकरियों में कटौती कर रहे हैंl देश भर में ऑटोमोबाइल डीलर्स ने पिछले केवल तीन महीनों में ही 2 लाख नौकरियां घटाई हैंl ये आंकड़े फेडरेशन ऑफ़ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन्स (FADA) के हैंl

नौकरियों में ये कटौती, ऑटोमोबाइल सेक्टर में की गई उस कटौती से अलग हैं, जब अप्रैल 2019 से पहले के 18 महीनों के दौरान देश के 271 शहरों में गाड़ियों के 286 शो रूम बंद हुए थेl इनकी वजह से 32 हज़ार लोगों की नौकरियां चली गई थींl

देश भर में गाड़ियों के क़रीब 26 हज़ार शो रूम हैं, जिन्हें 15 हज़ार के आस-पास डीलर चलाते हैं. इन शो रूम में क़रीब 25 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ हैl डीलरशिप की इस व्यवस्था में अपरोक्ष रूप से क़रीब 25 लाख और लोगों को भी रोज़गार मिला हुआ हैl

खपत में कमी की वजह से टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों को अपनी गाड़ियों के निर्माण में कटौती करनी पड़ी हैl इसका नतीजा ये हुआ है कि कल-पुर्ज़ों और दूसरे तरीक़े से ऑटो सेक्टर से जुड़े हुए लोगों पर भी इसका बुरा असर पड़ा हैl

जैसे कि जमशेदपुर और आस-पास के इलाक़ों में 30 स्टील कंपनियां बंदी के कगार पर खड़ी हैंl जबकि एक दर्जन के क़रीब कंपनियां तो पहले ही बंद हो चुकी हैंl

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जमशेदपुर का टाटा मोटर्स का प्लांट दो महीने से 30 दिनों में केवल 15 दिन ही चलाया जा रहा थाl बाक़ी के वक़्त ये कारखाना बंद रखा जा रहा थाl

*3. बचत और निवेश*

अर्थव्यवस्था का विकास धीमा होने का रियल एस्टेट सेक्टर पर भी बहुत बुरा असर पड़ा हैl बिल्डरों का आकलन है कि इस वक़्त देश के 30 बड़े शहरों में 12.76 लाख मकान बिकने को पड़े हुए हैंl कोच्चि में मकानों की उपलब्धता 80 महीनों के उच्चतम स्तर पर हैl वहीं, जयपुर में ये 59 महीनों, लखनऊ में 55 महीनों और चेन्नई में ये 75 महीनों के अधिकतम स्तर पर हैl इसका ये मतलब है इन शहरों में जो मकान बिकने को तैयार हैं, उनके बिकने में पांच से सात बरस लग सकते हैंl

आमदनी बढ़ नहीं रही हैl बचत की रकम बिना बिके मकानों में फंसी हुई है और अर्थव्यवस्था की दूसरी परेशानियों की वजह से घरेलू बचत पर भी बुरा असर पड़ रहा हैl वित्त वर्ष 2011-12 में घरेलू बचत, जीडीपी का 34.6 प्रतिशत थीl लेकिन, 2018-19 में ये घटकर 30 फ़ीसद ही रह गईl

घरेलू बचत की जो रक़म बैंकों के पास जमा होती है, उसे ही वो कारोबारियों को क़र्ज़ के तौर पर देते हैंl जब भी बचत में गिरावट आती है, बैंकों के क़र्ज़ देने में भी कमी आती हैl जबकि कंपनियों के विकास और नए रोज़गार के लिए क़र्ज़ का अहम रोल होता हैl

बैंकों के क़र्ज़ देने की विकास दर भी घट गई हैl सितंबर 2018 से ये अब तक के न्यूनमत स्तर पर हैl इस साल अप्रैल महीने में क़र्ज़ देने की विकास दर 13 प्रतिशत थी, जो मई मे गिरकर 12.5 फ़ीसद ही रह गईl गैर कृषि क्षेत्र में क़र्ज़ बांटने की रफ़्तार अप्रैल में 11.9 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थीl

लेकिन, मई में ये घटकर 11.4 फ़ीसद ही रह गई, जो पिछले आठ महीनों में सबसे कम है. सर्विस सेक्टर और उद्योगों को बैंकों के क़र्ज़ देने में भारी कमी देखी जा रही हैl मई महीने में सर्विस सेक्टर को लोन की विकास दर 14.8 प्रतिशत थी, जो पिछले 14 महीनों में सबसे कम हैl अप्रैल महीने में सर्विस सेक्टर को लोन की विकास दर 16.8 फ़ीसद थीl

*4. निर्यात*

आम तौर पर जब घरेलू बाज़ार में खपत कम हो जाती है, तो भारतीय उद्योगपति, अपना सामान निर्यात करने और विदेश में माल का बाज़ार तलाशते हैंl लेकिन, अभी स्थिति ये है कि विदेशी बाज़ार में भी भारतीय सामान के ख़रीदारों का विकल्प बहुत सीमित रह गया हैl

पिछले दो साल से जीडीपी विकास दर में निर्यात का योगदान घट रहा हैl मई महीने में निर्यात की विकास दर 3.9 प्रतिशत थी. लेकिन, इस साल जून में निर्यात में (-)9.7 की गिरावट आई हैl

ये 41 महीनों में सबसे कम निर्यात दर हैl निर्यात में बेहतरी की संभावना कम ही दिखती हैl इसकी बड़ी वजह ये है कि अमरीका के साथ भारत के व्यापार युद्ध के संकट के बादल मंडरा रहे हैंl

*5. विदेशी निवेश*

अगर अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल हों, तो इसका असर विदेशी निवेश पर भी पड़ता है. अप्रैल 2019 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 7.3 अरब डॉलर थाl लेकिन, मई महीने में ये घट कर 5.1 अरब डॉलर ही रह गयाl

रिज़र्ब बैंक ने जो अंतरिम आंकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक़, देश में आ रहा कुल विदेशी निवेश, जो शेयर बाज़ार और बॉन्ड मार्केट में निवेश किया जाता है, वो अप्रैल में 3 अरब डॉलर था. पर, मई महीने में ये घटकर 2.8 अरब डॉलर ही रह गयाl

तो, आख़िर मोदी सरकार की दूसरी पारी की दिक़्क़त क्या है?

तो, आख़िर मोदी 2.0 में हालत क्या है?

इन सभी बातों का निष्कर्ष ये है कि देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुज़र रही हैl निर्माण क्षेत्र में कमी आ रही हl कृषि क्षेत्र का संकट बरक़रार हैl किसानों की आमदनी बढ़ नहीं रही हैl निर्यात भी जस के तस हैंl बैंकों और वित्तीय संस्थानों की हालत ख़राब है और रोज़गार के क्षेत्र में बड़ा संकट पैदा हो रहा हैl

एफएमसीजी सेक्टर की बिक्री घट गई हैl कार के निर्माता लगातार उत्पादन घटा रहे हैं. इन बातों से यही संकेत मिलता है कि लोगों ने ख़र्च करना कम कर दिया हैl बाज़ार में मांग कम है, तो कारोबारियों ही नहीं, ग्राहकों का भरोसा भी गिर रहा हैl

अर्थव्यवस्था की जो भी मौजूदा परेशानियां हैं, वो प्रधानमंत्री मोदी और उनके पूर्ववर्ती डॉक्टर मनमोहन सिंह की सुधारों की अनदेखी करने का नतीजा हैंl 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तब, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की वजह जीडीपी की विकास दर में आई कमी, धीरे-धीरे दोबारा पटरी पर लौट रही थीl लेकिन, जीडीपी की विकास दर की वो रफ़्तार क़ायम नहीं रह सकी और विकास दर फिर से कम हो रही हैl

इस वक़्त अर्थव्यवस्था की विकास दर में जो गिरावट आ रही है, वो किसी बड़े झटके का नतीजा नहीं हैl 2008 और 2011 में कच्चे तेल के दाम में अचानक तेज़ी आने से विकास दर धीमी हुई थीl लेकिन, अभी ऐसे हालात नहीं दिख रहे हैंl

ये सरकारों की नीतियों में लगातार नाकामी का नतीजा हैl कृषि उत्पादों की क़ीमतों और आयात-निर्यात की नीतियां, टैक्स की नीतियां, श्रमिक क़ानून और ज़मीन के इस्तेमाल के क़ानूनों की कमियों का इस मंदी में बड़ा योगदान हैl आज बैंकिंग क्षेत्र में बड़े सुधार की ज़रूरत है, ताकि छोटे और मंझोले कारोबारियों को आसानी से क़र्ज़ मिल सकेl

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मोदी सरकार के पहले कार्यकाल का शानदार आग़ाज़ हुआ थाl लेकिन, जल्द ही वो दिशाहीन हो गई. अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलावों के जिस ब्लूप्रिंट की घोषणा हुई थी, उसे 2015 के आख़िर में ही त्याग दिया गयाl श्रमिक और ज़मीन से जुड़े क़ानूनों में बदलाव की योजना अधूरी हैl निर्माण बढ़ाने के लिए ज़रूरी क़दम नहीं उठाए गएl कृषि क्षेत्र के विकास की कमी से निपटने के लिए मेक इन इंडिया की शुरुआत की गई थी. लेकिन, उसका हाल भी बुरा ही हैl

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अर्थव्यवस्था को लेकर जो शुरुआती जोश और ऊर्जा देखने को मिली थी, उनके बजाय हम ने नोटबंदी जैसे ग़लत क़दम उठाए जाते हुए देखेl

टैक्स व्यवस्था में स्थायी सुधार लाने के लिए जीएसटी को हड़बड़ी में, बिना पूरी तैयारी के ही लागू कर दिया गया थाl नेक इरादे से लाए गए इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड जैसे अच्छे क़ानून के सिवा, मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में बड़े आर्थिक सुधार के कोई क़दम नहीं उठाएl

वित्त मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा प्रधानमंत्री के कार्यालय को बार-बार आगाह किए जाने के बावजूद, मनमोहन सरकार से विरासत में मिली देश की बदहाल बैंकिंग और वित्तीय व्यवस्था की कमियां दूर करने की नीतियां बनाने पर कोई ध्यान नहीं दिया गयाl

_हमारे देश की अर्थव्यवस्था की बुनियादी संस्थागत कमियों को दूर करने के लिए अच्छे नीयत वाली आर्थिक नीतियों की ज़रूरत हैl लेकिन, दिक़्क़त ये है कि क़ाबिल अर्थशास्त्री, मोदी सरकार से दूर जा रहे हैंl_

_ऐसे में अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से निपटने के लिए वैसे ज़रूरी क़दमों की उम्मीद नहीं दिखतीl मोदी सरकार के दौरान, इला पटनायक, रघुराम राजन, उर्जित पटेल, अरविंद पनगढ़िया, अरविंद सुब्रमण्यम और विरल आचार्य जैसे क़ाबिल अर्थशास्त्रियों की विदाई हो गईl_

*पिछले कई दशकों में ऐसा पहली बार है जब वित्त मंत्रालय में ऐसा कोई आईएएस अधिकारी नहीं है, जिसके पास अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हो और जो अर्थव्यवस्था की बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को नीतियां बनाने में मदद कर सकेl*

- पूजा मेहरा वरिष्ठ बिजनेस पत्रकार





Tags : time billion economy India Narendra Modi Prime Minister