भारत में फैले अंधविश्वास Rajendra Prasad Singh Saturday, September 7, 2019, 08:48 AM भारत में फैले अंधविश्वासों को वैज्ञानिक जामा पहनाने वाले मूलतः दो प्रकार के वैज्ञानिक हैं - एक वे जो भारत में हैं और ब्राह्मणवादी साँचे में ढले हुए हैं, दूसरे वे जो भारत के बाहर प्रवास करते हैं और ब्राह्मणवादी साँचे में ढले हुए हैं। एक तीसरा वैज्ञानिकों का दल भी है, वह अन्य राष्ट्र से प्रायोजित होता है और भारत की राजनीति और समाज - व्यवस्था में हस्तक्षेप करता है। तुलसी, पीपल को ऐसे ही वैज्ञानिकों ने बताया है कि वे रात में ऑक्सीजन देते हैं। जनेऊ धारण और खड़ाऊँ पहनने के फायदे भी ऐसे ही वैज्ञानिक बताते हैं। रामेश्वरम् सेतु एवं सरस्वती नदी की खोज का दावा भी ऐसे ही वैज्ञानिक करते हैं। यज्ञ के धुएँ से वातावरण के स्वच्छ होने की परिकल्पना भी ऐसे ही वैज्ञानिकों की देन है। विज्ञान की बड़ी - बड़ी पत्रिकाओं में और नेट पर ऐसे अनेक लेख छपे मिलेंगे किंतु ऐसे वैज्ञानिक शोध उपर्युक्त बताए गए तीन प्रकार के वैज्ञानिक ही किया करते हैं, चौथा नहीं। विज्ञान में भी गड़बड़ी, घपला, घोटाला विशेषकर ऐसे मामलों में तो चलते ही हैं। अभी तक संसार का कोई भी निष्पक्ष वैज्ञानिक ने यह दावा नहीं किया है कि तुलसी या पीपल रात में ऑक्सीजन देता है। आश्चर्य कि ऐसे - ऐसे अवैज्ञानिक शोध का श्रेय सिर्फ भारत के ब्राह्मणवादी साँचे में ढले वैज्ञानिकों को ही है। सुना तो यह भी है कि हंस पक्षी दूध और पानी को अलग - अलग कर देता है। आपने एक कटोरा दूध पिलाकर देखा भी है या कवि - रूढ़ि के रूप में मानते चले आ रहे हैं। आखिरकार भारत के वैज्ञानिक आसमान से नहीं आए हैं। वे भी वर्ण व्यवस्था में जन्मे जीव हैं। इसलिए ऐसे मामलों में जाने - अनजाने में उनका प्रभावित होना कोई बड़ी बात नहीं है। Tags : mold migrates India superstitions scientists basically