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अहिर और राम

TPSG

Monday, March 22, 2021, 09:43 AM
 Ahir aur ram

राम ने तो अहीरों को खत्म करने के लिऐ अग्नि बाण चलाया या इसलिए अहीर क्यों बनाऐं राम मन्दिर ?

यद्यपि राम का युद्ध अहीरों से कभी नहीं हुआ परन्तु पुष्यमित्र शूंग कालीन पाखण्डी ब्राह्मणों नें अपनी रामायण मे लिखा है कि जड़ चेतनाहीन समु्द्र द्वारा राम से यह कहने पर कि पापी अहीर मेरा जल पीकर मुझे अपवित्र करते है इन्हें मारिये तो राम अपना अग्नि बाण अहीरों पर छोड़ देते हैंँ। कमाल की बात है कि जड़ चेतना हीन समुद्र भी राम से बाते करता है और राम समु्द्र के कहने पर सम्पूर्ण अहीरों को अपने अमोघ बाण से त्रेता युग में ही मार देते हैं। परन्तु अहीर तो आज भी पूरे भारत में छाऐ हुऐ हैं। उनके मारने में तो राम का अग्निबाण भी फेल हो गया। निश्चित रूप से अहीरों (यादवों) के विरुद्ध इस प्रकार से लिखने में ब्राह्मणों की धूर्त बुद्धि ही दिखाई देती है। ब्राह्मणों ने राम को आधार बनाकर ऐसी मनगढ़न्त कथाओं का सृजन इस कारण से किया है कि अहीरों को लोक मानस में हेय व दुष्ट घोषित किया जा सके।

वाल्मिकी रामायण के युद्ध कांड और तुलसी दास की रामचरित मानस के सुंदर काण्ड में कितना अवैज्ञानिक व मिथ्या लिखा है कि जड़ समुद्र जिसमें चेतना ही नहीं है वह भी अहीरों का शत्रु बना हुआ है और वह निर्जीव समुद्र राम से बातें भी करता है। ब्राह्मणों ने राम को ही अहीरों का हत्यारा' बना दिया। वाल्मिकी और तुलसीदास के अनुसार राम ने अहीरों को त्रेता युग में ही अपने रामबाण से "द्रुमकुल्य" देश में मार दिया था लेकिन फिर भी अहीर  आज कलयुग में करोड़ों की संख्या में मजबूती से जिन्दा है। अहीरों को कोई नहीं जीत सकता; अहीर अजेय हैं। अत: अहीरों से भिड़ने वाले नेस्तनाबूद हो जाऐगे। अहीरों को वैसे भी हिब्रू बाइबिल और भारतीय पुराणों में देव स्वरूप और ईश्वरीय शक्तियों से युक्त माना है। 

 हिन्दू धर्म के अनुयायी बने हम अहीर हाथ जोड़ कर इन काल्पनिक तथ्यों को सही माने बैठे हैं क्योंकि मनन-रहित और विवेकहीन श्रृद्धा (आस्था) ने हमें इतना दबा दिया है कि हमारा मन गुलाम हो गया। यह पूर्ण रूपेण  अन्धभक्ति है। आश्चर्य ही नहीं घोर आश्चर्य है।

महर्षि वाल्मीकिजी अपनी रामायण के युद्ध-काण्ड  के २२वें सर्ग में लिखते हैं:

"उत्तरेणावकाशो$स्ति कश्चित् पुण्यतरो मम।

द्रुमकुल्य इति ख्यातो लोके ख्यातो यथा भवान् ।।३२।।

उग्रदर्शनं कर्माणो बहवस्तत्र दस्यव: ।

आभीर प्रमुखा: पापा: पिवन्ति सलिलम् मम ।।३३।।

तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पाप कर्मभि: ।

अमोघ क्रियतां रामो$यं  तत्र शरोत्तम: ।।३४।।

तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मन: ।

मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागर दर्शनात् ।।३५।।

अर्थात् समुद्र राम से बोला हे प्रभो ! जैसे जगत् में आप सर्वत्र विख्यात एवम् पुण्यात्मा हैं उसी प्रकार मेरे उत्तर दिशा की ओर द्रुमकुल्य नाम का बड़ा ही प्रसिद्ध देश है ।३२।

वहाँ अाभीर (अहीर) जाति के बहुत से मनुष्य निवास करते हैं जिनके कर्म तथा रूप बड़े भयानक हैं; सबके सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं ।३३।

उन पापाचारियों का मेरे जल से स्पर्श होता रहता है। इस पाप को मैं सह नहीं सकता हूँ।

हे राम आप अपने इस उत्तम अग्निवाण को वहीं सफल कीजिए/छोड़िए ।३४।

 समुद्र का यह वचन सुनकर समुद्र के दिखाए मार्ग के अनुसार अहीरों के उसी देश द्रुमकुल्य की दिशा में राम ने वह अग्निवाण छोड़ दिया ।३५।

तुलसी दासजी भी इसी पुष्य मित्र सुंग की परम्पराओं का अनुसरण करते हुए राम और समुद्र के सम्वाद रूप में लिखते हैं:

"आभीर यवन किरात खल अति अघ रूप जे

 "*

अर्थात्  आभीर (अहीर), यवन (यूनानी) और किरात ये दुष्ट और पाप रूप हैं ! ---हे राम इनका वध कीजिए। *(गीता प्रैस गोरखपुर ने इस लाईन को बदल दिया है)

निश्चित रूप से ब्राह्मण समाज ने राम को आधार बनाकर ऐसी मनगढ़न्त कथाओं का सृजन किया है ताकि इन पर सत्य का आवरण चढ़ा कर अपनी काल्पनिक बातों को सत्य व प्रभावोत्पादक बनाया जा सके 

अब आप ही बताओ, केवल निर्जीव जड़ समु्द्र के कहने पर त्रेता युग में राम अहीरों को मारने के लिऐ अपना राम-वाण  अहीरों के "द्रुमकुल्य" देश पर चला देते हैं, लेकिन अहीरों का संहार करने में रामवाण भी निष्फल हो जाता है। फिर भी राम मन्दिर बनाने के लिए अहीर तो करें अपना बलिदान और मन्दिरों के रूप में धर्म की दुकान चलाऐं पाखण्डी, कामी और धूर्त ब्राह्मण। दान दक्षिणा हम चड़ाऐं और और ब्राह्मण उससे ऐशो-आराम करें। इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है ?





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