imagesimagesimagesimages
Home >> गीत - कविताए >> खुद का दुश्मन खुद

खुद का दुश्मन खुद

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Tuesday, July 2, 2019, 06:36 PM
Khud

खुद का दुश्मन खुद
खुद की लड़ाई खुद ही से है दोस्तो
कम्बख्त चैन से सोना चाहते है
खुद का दुश्मन खुद को सोने नहीं देता
कई मुकाबलो से होकर यहां तक पहुंचे
कम्बख्त खुशिया मनाने नहीं देता ।।1।।
गर्मी में गर्म रहता है
ठंडी में भी गर्म रहता है
कम्बख्त ऐसा है मेरा दुश्मन
बरसात की ठंडी बूंदो में भी गर्म रहता है
आखिर खून है, हमेशा खौलते रहता है ।।2।।
सारी इच्छाये पूरी हो जायेगी
क्या दुश्मन ठंडा हो जायेगा
जो चाहेगा मिल जायेगा
क्या दुश्मन ठंडा हो जायेगा
कम्बख्त समय भी रूक जायेगा
क्या दुश्मन ठंडा हो जायेगा
ये बात मेरा दुश्मन बोलते बोलते रहता है
इसलिये तो खून है कि खौलते रहता है ।।3।।
मेरा दुश्मन जैसा भी है मेरा अपना है
दुश्मन के दुश्मन ने कभी अपनाया नहीं
उसे समझाया लाख मगर वह समझा नहीं
आया कहीं से बस गया हैं यहां
मेरा दुश्मन उसे जिंदा छोडेगा नहीं ।।4।।
मेरा दुश्मन कभी रूकता नहीं
और मेरा दुश्मन कभी रूकने देता नहीं
खुद की लड़ाई खुद से है दोस्तो
कम्बख्त चैन से सोना चाहते हैं
खुद का दुश्मन खुद को सोने देता नहीं ।।5।।
- सिद्धार्थ बागड़े





Tags : enemy Own