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तीसरी गोलमेज कांफ्रैंस

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Tuesday, June 25, 2019, 01:17 PM
Third Round Table Conference

तीसरी गोलमेज कांफ्रैंस
बाबासाहेब अम्बेडकर जब तीसरी गोलमेज कांफ्रैंस के लिए लंदन के लिए रवाना हुए तो विमान में एक व्यक्ति ने अम्बेडकर की ओर इशारा करते हुए अपने साथी को कहा कि ‘‘यह वह नौजवान है जो भारतीय इतिहास के नए पन्ने लिख रहा है।’’ सूबेदार राम जी ने तब शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि 14 अप्रैल 1891 के दिन उनके परिवार में जन्म लेने वाला भीम एक दिन महामानव, महादानी और महाशक्तिमान बनेगा तथा अपनी कठोर तपस्या से दबे-कुचले, शोषित, पीड़ित व दुखियों का बुद्ध बन इनके सदियों के संताप को वरदान में बदलकर समाज की घृणित दासता और अमानुषिक अन्याय को अपने संघर्ष, दान और विवेक की लौ से जला कर राख कर देगा ।
बाबासाहेब ने 1923 में बम्बई विधान परिषद का सदस्य मनोनीत होते ही दलितों के अधिकारों, उनकी समानता तथा जातिविहीन समाज की स्थापना के लिए संघर्ष का बिगुल बजा डाला। 20 नवम्बर 1930 को इंगलैंड में गोलमेज कांफ्रैंस में बोलते हुए डा. अम्बेदकर ने कहा था, ‘‘भारत में अंग्रेजों की अफसरशाही सरकार दलितों का कल्याण न कर सकी क्योंकि दलितों के पक्ष में यदि प्रचलित सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक जीवन में परिवर्तन किया गया तो उच्च वर्ग वाले इसका विरोध करेंगे, इस बात से अंग्रेज डरते हैं इसलिए हम महसूस करते हैं कि हमारे दुखों का निपटारा हम खुद ही बढिया तरीके से कर सकते हैं और हम यह काम उस वक्त तक नहीं कर सकते जब तक राजनीतिक शक्ति हमारे हाथ में नहीं आ जाती।
राजनीतिक भागीदारी हमें तब तक नहीं मिल सकती जब तक अंग्रेज सरकार को हटाया नहीं जाता तथा राजनीतिक सत्ता हमारे हाथों में आने का अवसर केवल लोगों की सरकार तथा स्वराज के संविधान द्वारा ही मिल सकती है और हम अपने लोगों का कल्याण भी इसी प्रकार कर सकते हैं और हम ऐसी कोई भी सरकार नहीं चाहते जिसका अर्थ केवल यह निकले कि हमने केवल अपने शासक ही बदले हैं।
हमारी समस्याओं का समाधान भी समूची राजनीतिक समस्या के हल का भाग होना चाहिए अर्थात हमारी राजनीतिक भागीदारी हमारी आबादी के अनुपात से सुनिश्चित की जानी चाहिए तथा हमें आने वाले शासकों के रहम पर न छोड़ा जाए।’’ कमजोर तथा बेसहारों के मसीहा बाबासाहेब ने कहा था कि ‘‘सामाजिक क्रांति के बिना राजनीतिक क्रांति अर्थहीन है और जातिविहीन समाज की स्थापना के बिना स्वराज प्राप्ति का कोई महत्व नहीं।’’
आपने मराठी साप्ताहिक ‘मूक नायक’, ‘बहिष्कृत भारत’, ‘साप्ताहिक जनता’ व ‘प्रबुद्ध भारत’ आदि पत्रों का प्रकाशन किया जिनका मुख्य लक्ष्य दलित समाज व कमजोर वर्ग के दुखों, मुसीबतों, कठिनाइयों, समस्याओं व उनकी जरूरतों को अंधी, गूंगी व बहरी, गोरी सरकार के सामने लाना था। इनकी पुस्तक ‘एनिहीलेशन ऑफ कास्ट’ आज भी प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है जिसका उद्देश्य रूढिवादी समाज पर जबरदस्त प्रत्यक्ष प्रहार करना तथा जात-पात, ऊंच-नीच, भेदभाव, गंदी सामाजिक व्यवस्था जैसी बुराइयों को दुरुस्त करना था।
डा. अम्बेडकर कुछ समय के लिए महाराजा बड़ोदा के सैनिक सचिव व बम्बई सिडनम कालेज में राजनीति तथा अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे। बाद में जून 1928 में लॉ कालेज प्रोफेसर तथा जून 1935 में बम्बई के प्रिंसिपल नियुक्त हुए लेकिन आपका असली उद्देश्य पिछड़े व दलित लोगों की बेहतरी के लिए काम करना था। इन्होंने 1937 में लेबर पार्टी और अप्रैल 1942 में शैड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन, होस्टल तथा कई कालेजों व विश्वविद्यालयों की स्थापना की।
भारत रत्न डा. भीम राव अम्बेडकर सिर्फ संविधान निर्माता ही नहीं बल्कि एक सच्चे देश भक्त, दलितों व पिछड़ों के मसीहा, कमजोरों के रहबर, उच्चकोटि के विद्वान, महान दार्शनिक होने के साथ-साथ निर्भीक पत्रकार, लेखक व प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन जात-पात, ऊंच-नीच, छुआछूत, असमानता जैसी प्रचलित सामाजिक व्यवस्था खत्म करने में लगा दिया।
करोड़ों दलितों व पिछड़े लोगों की नरक व जिल्लत भरी जिंदगी को जड़ से उखाड़ फेंक कर उन्हें समानता की कतार में लाकर खड़ा कर देना किसी साधारण व्यक्ति का नहीं, महान योद्धा का ही काम हो सकता है।
- निलेश वैद्य





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