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बुद्ध धम्म प्रगति की ओर

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Wednesday, July 3, 2019, 08:29 AM
Albert Einstein

महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आंस्टाइन ने कहा था कि:
‘‘बुद्ध धम्म में वे लक्षण है, जो भविष्य के सार्वभौमिक धर्म में अपेक्षित है: यह वैयत्तिक ईश्वर से परे है, हठधर्मिता और ईश्वरवादी धर्म धारणाओें से मुक्त है। यह प्राकृतिक और आध्यात्मिक दोनों तत्वों को समावेशित करता है, यह सभी चीजो के अनुभव की धार्मिक भावना की अभिलाषा पर आधारित है, प्राकृतिक और आधात्मिक दोनों एक अर्थपूर्ण एकत्व। यदि ऐसा कोई धर्म है जो आधुनिक आवश्यकताओ के साथ सुसंगत हो सकता है, तो वह बुद्ध धम्म ही होगा।‘‘ - अल्बर्ट आंस्टाइन
भारत का इतिहास बौद्धों और विरोधियों के संघर्ष कि कहानी के सिवा और कुछ नहीं, बस समय के साथ धर्म नाम और रूप बदलते रहते है पर विचारधारा वही रहती हैं। ये संघर्ष है मानवता का और ईश्वरवादिता का या यूँ कहे जियो और जीने दो कि नीति का और ऊँच-नीच के षड़यंत्र का। इसमें विदेशी आक्रमणकारी एक पात्र का काम करते है बस इस बात को समझने के लिए इतिहास का ज्ञान होना जरूरी है। खैर इसी संघर्ष में बौद्ध इस बात को समझने के लिए इतिहास का ज्ञान होना जरूरी हैं। खैर इसी संघर्ष में बौद्ध राजाओं कि हार के कारण भारत में बौद्ध धम्म सात सौ साल तक सुप्तावस्था में रहा। फिर अंग्रेजो ने खुदाई की धर्मोत्थान को नया पंच रंगिये झंडा बनाया और बौद्ध धम्म को पुर्नस्थापित करने कि कोशिश की। बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर ने बहुजन जनता को वापस अपने बौध्द धम्म में लौटाया और इस तरह भारत में बौद्ध धम्म के पुनरूत्थान की शुरूआत हुईं।
    ये जिंदगी का बुनियादी नियम हैं कि जिस तरह दिन के बाद रात आती है, फिर रात के बाद दिन आता हैं, उसी प्रकार धर्म के बाद अधर्म आता हैं। अधर्म के बाद धर्म आता हैं या कहें ईश्वरवाद के चरम पर मानवता आती है। मानवता के चरम पर ईश्वरवाद आता है। ये चक्र यूं ही चलता रहता हैं। मानवता बहाल होने से पुरोहितवादी लोग जो अपनी श्रेष्ठता खोने से तिलमिलाए होते है, षड़यंत्र में लग जाते हैं। ये लोग निरंतर मानवता विरोधी नया शून्य षड़यंत्र करते रहते है यहाॅ तक की अपने श्रेष्ठता को वापस पाने हेतू नरसंहार और महायुद्ध तक करवाने से नही हिचकते। इतिहास में ऐसा कई बार हो चुका है। जब युद्ध होता है तब मानवता और विज्ञान सदियों पीछे चले जाते है। ऐसे में ईश्वर वाद का फिर उदय होता है पुरोहितवाद का फिर उदय होता हैं और फिर ईश्वर के नाम पर आम जनता का नास्तिकता के चरम पर आस्तिकता। अब ईश्वरवाद का चरम हो चुका है अब मानवतावाद को आना ही होगा इसे कोई नहीं रोक सकता।
    धम्म विरोधी लोग हमेशा धम्म को हराने की नीतियां खोज ही लेते हैं, जैसे जब बुद्ध की बातें लोगों की समझ में आने लगी तो इन्होंने कहना शुरू दिया की ये सब वो बातें हैं, जो कानों को अच्छी लगती हैं इसलिये उन्होंने ऐसे सभी मानवतावादी महापुरूषों को चारूवाक कहा अर्थात् वो लोग जिनके वाक्य कानों को भायें। फिर भी जब लोगों नें नही माना तो इन लोगों ने षड़यंत्र और युद्ध से जनता के राजाओं को हराया और फिर हारी हुई जनता और उसके राजाओं को राक्षस अधर्मी नीच आदि लिखवाकर इतिहास में उनको घृणा का पात्र बना डाला। दिन रात मीडिया में ऐसे मानवता समर्थक लोगों की बुराई कर करके जनता को जिनका भला असल में जिन लोगों से था वो उसे घृणा करने लगी।
भगवान बुद्ध ने कितना सच कहा था कि - ‘‘हम जिससे घृणा करते हैं उसकी अच्छाई देख ही नहीं पाते ‘‘
यही कारण की धम्म विरोधियों की धम्म और उसकें लोगों के प्रति जो घृणा फैलाई इसीलिए लोग बुद्ध की तरफ नहीं गए और अपना शोषण सदियों तक करवातें रहे। पर अब लोग जाग रहे हैं।
धम्म और मीडिया कि शक्ति के बिना भी जनता द्वारा सबसे ज्यादा चाहे जाने वाले भारतीय हैं। तथागत गौतम बुद्ध और बोधिसत्व डाॅ. आम्बेंडकर। ये दोनो किसी धन बल पर चलने वाला मीडिया फैक्ट्री से बनकर निकले जबरदस्ती के रेडीमेड लीडर नहीं हैं, ये भारत कि जनता के हृदय सम्राट है, जनता के मन में बसते है। आज भारत कि हालत ये है कि बहुजन विरोधी लोग दिन रात मीडिया, राजसत्ता और धन बल से पता नही किसे जनता का लीडर बना रहे है या बनाये रखना चाहते हैं, जबकि जनता की उनमें रूचि नहीं। पर तथागत गौतम बुद्ध और डाॅ. आम्बेडकर ऐसे भारतीय लीडर हैं, इनकी बढ़ती लोकप्रियता इस बात का सबूत है। अगर धम्म विरोधी अपने तथाकथित महापुरूषो के महिमा मंडन पर धन खर्च करना बंद कर दे तो वो जनता के मन से जल्द ही गायब हो जायेंगे।
     भारत देश कि जमीन पर इसके सच्चें सपूतों का नाम और काम कभी नहीं मिट सकता ये जमीन भी अपने सपूतों को और अपने आक्रमणकारियों को जानती है। ये बुद्ध कि धरती है ये भारतीयो बहुजनों की धरती हैं। ये अप्रत्याशित जनता सर्मथन भारत में बौद्ध धम्म के पुनुरूत्थान को बहुत बल दे रही हैं आप खुद देखिये बुद्ध की धरती पर कोई भी नई काॅलोनी बनती है, तो उसका नाम या तो कोई अंग्रेजी रख जाता हैं या फिर विहार जैसे निर्माण विहार राहुल विहार आदि। अब जगह के नाम फलानागढ़ या फलानाबाद नहीं रखा जाते। विहार और पुर ये बौध्द नाम है। विहार का मतलब है जहाँ बुद्ध घूमे और पुर का मतलब है आराम महल। ये सब अपने आप हो रहा हैं ये सब भारत को बौद्धमय बना रहा है।
लोग अंध श्रद्धा और तर्क, कर्मकांड और विज्ञान मे फर्क समझने लगे हैं अब लोग समझने लगे है की सिर्फ प्रार्थना करने वाले होठों से मदद करने वाले हाथ बहुत ज्यादा बेहतर होते है। लोग धीरे धीरे व्यक्ति पूजा से ज्यादा उनके सिद्धांतो पर जोर देने लगे हैं विज्ञान और तकनिकी के बढ़ने से धार्मिक आडम्बर और अंधविश्वास को गहरा धक्का लगा हैं। बहुत से पुराने जमाने के धार्मिक विश्वासो की गलतफहमी साफ हो चली हैं। ये सब बौद्ध धम्म के पक्ष में है।
     लोग समझने लगे है कि बाकि विरोधी धर्म में केवल मरे हुए पुराने राजाओं और बाबाओं की महिमा गाने के अलावा और कुछ नहीं इससे उनका कोई भला नहीं होता। अगर किसी चीज़ से भला होता हैं तो उन पुराने लोगों की आदर्शों से बातों की अपने जीवन में इस्तेंमाल करने से लोग समझने लगे है कि बिना प्रमाण के कुछ भी स्वीकारना मतलब अपना नुकसान करना ही होगा।
आज सारी दुनिया में गणराज्य या रिपब्लिक देश बनाने का चलन है जिसमें किसी एक राज्य की मनमानी नहीं चलती, बल्कि जनता के चुनावों द्वारा फैसला होता हैं। जैसे कौन राजा होगा और कौन सी नीतियां चलेगी। ये गणराज्य जिसे पश्चिम वाले पिछली सदी से जाने है। ये बोद्धमय भारत में हजारों सालो से प्रचलित थी। तथागत गौतम बुद्ध के पिता के राज्य को शाक्य गणराज्य कहते थें। विश्व के हर मामले में अग्रणी लोग जिन्हें हम अंग्रेज के नाम से जानते है वे तेजी से बौद्ध धम्म कि तरफ जा रहे है। आपको ये जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा कि पश्चिम में करूणामयी ईसा मसीह के बौद्ध भिक्खू होने कि चर्चा चल रही हैं। ऐसी चर्चाओं को आप यू ट्यूब पर खूब देख सकते हो। खूब देख सकते हो। खैर सत्य जो भी हो कहने का तात्पर्य ये हैं कि बुद्धजीवी वर्ग बौद्ध धम्म को अपना रहा है। इतिहास गवाह है कि बदलाव केवल बुद्धजीवी वर्ग ही लाता है और ये बदलाव दिख रहा है। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाए गणराज्य देश बनने पर जोर दे रही है।
आपको ये जानकर खूशी होगी कि सात एशियन देश मिलकर बिहार में बहुत बढ़ी और भव्य नालंदा यूनिवर्सिटी बनाने का करार किया हैं। इस कार्य में बौद्ध शिक्षण संस्थान पहले ही कार्यरत है। बहुत तेजी से रिसर्च हो रही है। हम सब बौद्धमय भारत कि तरफ चल रहे हैं।
अब जनता बेवाक होती जा रही है वो ज्यादा धर्म के चक्कर में नहीं पड़ती। जनता बस खुशहाल जीना चाहती है। बस कमाना खाना और सोना चाहती है। कर्मकांड अब कम होते जा रहे हैं लोग इन्हें छोड़ते जा रहे है। ये सब भी भारत को बौद्धमय बना रहा है, क्यांेकि बौद्ध धम्म के प्रति धारणा फैलाई गई है, इसलिए लोग बौद्ध का नाम नहीं लेते पर असल में उनकी मानसिकता बौद्धमय हो चली है।
उदाहरण के लिए किसी भी पूजास्थान में भगदड़ या प्राकृतिक आपदा से लोग मरते है, तब जनता ये सवाल करने लगी हैं कि तथाकथित ईश्वर के दरवाजे पर भी सुरक्षित नही तो ऐसा ईश्वर शक के दायरें में आने लगा है। लोग अब सत्य जानने को उत्सुक है, ज्यादा दिन तक इनकी आँखो पर अंधश्रद्धा का पर्दा नहीं डाले रख सकते ये पुरोहित लोग धार्मिक बाबाओं गुरूओं और इसके ठेकेदारों को शक कि नजर से देखने लगे है। लोग अपने कार्य स्थलों में अपने सर्कल में धर्म कि चर्चा करने से बचने लगे है क्योंकि ये आपसी मन मुटाव पैदा करता है जो कि सभी के लिए घातक होता है।
जैसे पहले राजा और धर्म गुरू का कोई बाल भी बांका नही कर सकता था पर आज अगर ये भी बुरा करेंगे तो इनको भी कानून का सामना करना पड़ेगा। यही तो बौद्ध धम्म का मकसद था, सबको न्याय मिले। समस्त भारत अहसान मंद है बाबासाहेब आम्बेडकर का जिन्होंने ऐसे उच्च बौद्ध मूल्यों को कानून और संविधान का रूप दिया। ये और बात है कि विरोधियों ने ऐसा युग पुरूष को जनता का हृदय सम्राट बनाने से रोकने के लिए जातिगत घृणा से अलग थलग कर दिया है। आज बाबासाहेब के संविधान के मजे तो सब ले रहे हैं पर जातिगत घृणा के चलते अहसान नहीं मान रहें है।
आज सब समझने लगे हैं कि कानून व्यवस्था से ऊपर कुछ नहीं संविधान से ऊपर कुछ नहीं यहाँ तक कि ईश्वर भी नहीं। भारत देश में ‘‘ओह माय गोड‘‘ (बालीवुड) डा विन्ची कोड (हालीवुड), किंगडम आफ हेवन (हालीवुड) जैसी फिल्म का बनना और कामयाब होना इस बात का सबूत है कि जनता में धम्म को समझने वाली सेंस विकसित हो रही है। ओह माय गोड जैसी हिंदी फिल्म ने बखूबी साबित किया ही कि अगर ईश्वर अन्याय करेगा तो उसे भी कानून का सामना करना होगा, हालाँकि कुछ दबावों के चलते इस फिल्म को अंत में ईश्वरवाद पर ही खत्म किया पर ये एक अच्छी षुरूआत है।
मै काफी दिन यूरोप मेे रहा वहाँ बहुत ही ज्यादा भव्य और बड़े गिरजाघर हैं पर उनमें मुझे बहुत कम भीड़ नजर आयी। भारत में आजकल जब पूजास्थलों और पुराने जमाने के राजाओ और बाबाओं को ईश्वर घोषित करके उसकी तारीफो में गाने गाने को, लोग ढोंग समझने लगे हैं तो ऐसे में बौद्ध सिद्धांत सत्ससंग अर्थात् सत्य का संग जिसमें कोई सत्य शोधक जनता को सत्य बताता है, ये सब काफी प्रचलित है। इसी तर्ज पर धम्म विरोधी भी अपनी ढोंग लीला को लेकर सत्संग कर रहे हैं। खैर ये जो सत्संग का चलन हैं ये भी लोगों को तर्क करने और प्रमाणिकता के बिना कुछ भी न स्वीकारने के तरफ ले जा रहे है। भले ही आज बुद्ध के नाम से सत्संग होते हो, वजह वही घृणा संचार पर बातें वही है बहुजन गुरूओं वाली वही जिओ और जीने दो वाली। वही बहुजन गुरू जैसी बुद्ध, कबीर, नानक, रविदास, तुकाराम, पेरियार आदि अनेकों संतो कि वादियों को याद किया जा रहा है। आज लोगो मरे हुए पुराने राजाओं और बाबाओं की तारीफ वाले गावों में समय बर्बाद नहीं करना चाहते बल्कि दर्शन या काम कि बात जानना और अपनाना चाहतेे है। आज सत्संग के नाम पर बहुजन मूल्यों का प्रचार हो रहा है वो दिन दूर नहीं जब जनता इस विचारधारा कि जड़ में पहुचं जायेगी जो कि बौद्ध धम्म हैं। और तब धम्म से घृणा का षड़यंत्र और उसके षड़यंत्रकारी खत्म हो जायेेंगे। सत्यमेव जयते।
आज लोगो को विज्ञान पसंद है, गणतंत्र पसंद है, न्याय व्यवस्था पसंद हैं। उन्हें ये पसंद है कि न्याय के आगे कोई न नही होना चाहिए वो राजा या पुरोहित ही क्यों न हो। ये सब बौद्ध मूल्य हैं लोग भले ही इस सबके लिए भगवान बुद्ध और उनके धम्म को जिम्मेदार न बताएं पर वे अब इन मूल्यों को बहुत ज्यादा पसंद कर रहे हैं। 
व्यक्ति केंद्रित न होकर संविधान शाषित व्यवस्था, कानून और न्याय का सर्वोपरी होना, विज्ञान और तकनीक का बढ़ना, विश्व के अग्रणी बुद्धिजीवियों का धम्म की तरफ बढ़ना, भारत के झंडे में बौद्ध का धार्मिक चिन्ह धर्मचक्र होना, भारत देश के एम्बलेम एक बौद्ध सम्राट अशोक का चार शेरो वाला एम्ब्लेम होना। सेना में अशोक चक्र बहुत बड़ा सैनिक सम्मान होना सत्संग में बहुजनों का तेजी से बोधमय बनते जाना क्या अब भी आप नहीं समझ सकते कि विरोधियों कि लाख कोशिशो के बावजूद भारत ही नहीं समस्त विश्व बोधमय होता जा रहा है।
बौद्ध धम्म कि ये विशेषता है कि इसके सिद्धांत बाकि धर्मो कि तरह समय के साथ पुराने नहीं होते। ये हजारों साल पहले भी काम के थे और हजा़रों लाखों साल तक भी काम के रहेंगे, मानव ही नहीं समस्त जीवों का भला करते रहेंगे।
 शायद अब आप भी कुछ समझ रहे होंगे कि बौद्ध धम्म असल में धर्म और ईश्वर से बिल्कुल अलग है शायद अब आप समझ रहे होंगे की सम्राट अशोक महान बाबासाहेब आंबेडकर और सभी बौद्ध ये क्यों मानते है की बौद्ध धम्म फैलाना ही मानवता की सच्ची सेवा है बाकि सब तो बस अपना वर्चस्व और श्रेष्ठता मात्र है।
- संग्रहक - निलेश वैद्य





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