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दान पारमिता 

Dinesh Bhaleray

Friday, June 21, 2019, 07:12 AM
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दान पारमिता 
- महाफलदायि दान
दान गृहस्थ के लिये महत्वपूर्ण मंगल है। किसी भी गृहस्थ का कंगाल होना दुर्भाग्यपूर्ण है। उसके लिये कठिन परिश्रम करके ईमानदारी के साथ धन कमाना आवश्यक होता है। उसे अपना ही नही अपने परिवार का और अपने पर आश्रित सभी लोगों का भरण पोषण करना होता है।
परंतु जो धन कमाए उसमे से अपने सामर्थ्य के अनुसार कम या अधिक दान देना भी उतना ही आवश्यक होता है। इससे त्याग की भावना बढ़ती है। जरूरतमंदों के प्रति सहानुभूति और करुणा की भावना बढ़ती है। केवल संचय, संग्रह और परिग्रह ही करे तो स्वार्थ बुद्धि बढ़ती है। आसक्ति का दुर्गुण बढ़ता है। औरो के प्रति स्नेह और सदभावना के स्थान पर हृदय की कठोरता और क्रूरता का दुर्गुण बढ़ता है। दान का पूण्य फल चित्त की चेतना पर निर्भर करता है।
यदि भय की चेतना से दान देता है या बदले में सरकार अथवा समाज से कुछ सुविधा प्राप्त करने के लोभ से दान देता है अथवा यश और प्रसिद्धि प्राप्त करने की लालसा से दान देता है, अथवा औरो की तुलना में अधिक दान दे रहा हूँ इस दम्भ (arrogance)को जगाते हुए दान देता है अथवा याचना करने वाले के प्रति तिरस्कार जगाते हुए दान देता है, तो ऐसा दान पुण्यफलदाई नही होता, मांगलिक नही होता।
परंतु श्रद्धा के भाव से, मैत्री और करुणा के भाव से, बिना बदले में कुछ प्राप्त करने के निःस्वार्थ भाव से दान देता है तो यह दान महान पूण्य फलदाई होता है, महान मंगलकारी होता है। मेरे द्वारा दिये गए दान से लोगो का कल्याण होगा, लोगों का कल्याण हो रहा है, लोगो का कल्याण हुआ है, यह देख कर चित्त की चेतना प्रसन्नता से भर उठती है, तो दान महाफलदायि होता है, महा मांगलिक होता है।
- दिनेश भालेराय





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