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स्वामी

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Sunday, August 8, 2021, 09:56 AM
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श्रावस्ती के जेतवन विहार में कस्सप-माता को सम्बोधित करते हुए तथागत बुद्ध ने कहा  -

"अत्ता हि अत्तनो नाथो,
 को ही नाथो परो सिया ।
अत्तना'व सुदन्तेन नाथं ,
लभति दुल्लभं ।।"

(मनुष्य ) अपने ही  (स्वयं) अपना स्वामी है,  दूसरा कौन स्वामी हो सकता है  ?
अपने को भली प्रकार दमन कर लेने पर  (वह एक) दुर्लभ स्वामी को पाता है ।
श्रावस्ती में लङ्गूल को संबोधित करते हुए शास्ता बुद्ध ने कहा -
"अत्तना हि अत्तनो नाथो,
 अत्ता हि अत्तनो गति ।
तस्मा सञ्ञमयत्ताथं,
 अस्सं भद्रवं वाणिजो ।।"

(मानव) स्वयं ही अपना स्वामी है,
 स्वयं ही अपनी गति है,
इसलिए अपने को संयमी बनाए,
 जैसे कि सुन्दर घोडे को व्यापारी (संयत करता है )

बुद्ध ने कहा -
"अत्तदीपा भवथ भिक्खवे,
 अत्तसरणा अनञ्ञसरणा ।
तुम्हेहि किच्चं आतप्पं,
अक्खातारो तथागता ।।"

भिक्षुओं ! अपने आपको द्विप बनाओ,
अपनी ही शरण जाओ,
किसी दूसरे की शरण नहि ।
काम तो तुम्हे  ही पूरा करना है,
 तथागत तो केवल मार्ग बतला देने वाले है ।

 प्रत्येक मानव अपना स्वयं स्वामी होने के कारण अपने दु:ख -सुख का स्वयं निर्माता है। उसे किसी काल्पनिक ईश्वर में कदापि विश्वास नही करना चाहिए ।न कोई काल्पनिक  देवी-देवता की शरण लेनी चाहिए । जो काल्पनिक हैं, जो वास्तविक नहीं हैं, जो किसी भी प्रकार से काम के नही हैं, उनमें विश्वास करना, उनकी शरण में जाना मूर्खता की पहचान हैं । ऐसे मूर्ख लोग दु:ख को प्राप्त होते हैं, सुख से वंचित रह जाते हैं ।
इश्वर  या  काल्पनिक देवी-देवता में मिथ्या विश्वास मनुष्य के  पतन का कारण है ।





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