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बौद्ध तत्वज्ञान पर आधारित वेदांत तत्वज्ञान

TPSG

Monday, March 15, 2021, 09:51 AM
Vedanta

बौद्ध तत्वज्ञान पर आधारित वेदांत तत्वज्ञान |

आधुनिक पौराणिक हिंदू धर्म आदि शंकराचार्य के वेदांत तत्वज्ञान पर आधारित है, लेकिन वेदांत तत्वज्ञान खुद बुद्ध तत्वज्ञान पर आधारित है|

विश्व का वास्तविक स्वरूप बताने के लिए तथागत बुद्ध ने "अनित्यता" का सिद्धांत रखा था| तथागत बुद्ध का कहना यह था की यह विश्व स्थिर न होकर अस्थिर है, इसलिए इस विश्व की हर एक चीज निरंतर बदलनेवाली है, अर्थात अनित्य है| तथागत बुद्ध के इस सिद्धांत को "अनित्यता तत्वज्ञान" कहा जाता है|

दुसरी सदी के महान बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन ने बुद्ध के अनित्यता तत्वज्ञान को "शुन्य तत्वज्ञान" के रुप में पेश किया था| इस विश्व की प्रत्येक चीज परिवर्तनशील होने के कारण एक न एक दिन नष्ट होकर शुन्य में तब्दील हो जाती है, ऐसा नागार्जुन ने बताया है, जिसे "शुन्यवाद" कहा जाता है| आधुनिक विज्ञान नागार्जुन के शुन्य को उर्जा (energy) कहता है| विज्ञान भी यही कहता है कि, विश्व निरंतर परिवर्तनशील है और अंत में विश्व की प्रत्येक चीज उर्जा में (नागार्जुन के शुन्य में) तब्दील हो जाती है| दुनिया के महान वैज्ञानिक आल्बर्ट आइनस्टाइन के E=mC2 ईक्वेशन ने बुद्ध और नागर्जुन के सिद्धांतों को वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित कर दिया है, इसलिए इन सिद्धांतों को कोई नकार नहीं सकता|

इसका दुसरा अर्थ यह है कि, विश्व का निर्माण शुन्य अर्थात उर्जा से होता है और अंत में विश्व की सभी चिजें इसी शुन्य/उर्जा में विलिन हो जाती हैं| अर्थात, शुन्य ही अंतिम सत्य है और दृष्य जगत निरंतर बदलनेवाला मिथ्या सत्य (illusion) है, क्योंकि दृश्य जगत की सभी चीजें निरंतर बदलनेवाली है| इसलिए कहा जाने लगा की शुन्य सत्य है और जगत मिथ्या है|

शुन्य को अंतिम सत्य अर्थात ब्रम्ह समझकर आदि शंकराचार्य ने अपने वेदांत तत्वज्ञान का सूत्र बनाया- "ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्य"| यहां शंकराचार्य ने नागार्जुन के शुन्य को ब्रम्ह कहा है, और शुन्य/ब्रम्ह में विश्व की सभी चीजें अंत में विलिन होने के कारण वही अंतिम सत्य है और दृश्य जगत बदलनेवाला मिथ्या सत्य है, ऐसा शंकराचार्य का मानना था|

लेकिन, यह सुत्र बुद्ध और नागर्जुन ने शंकराचार्य के पहले ही बताया था और समाज में स्थापित कर दिया था| "अनित्यता" इस वैश्विक सत्य के कारण हम विश्व की हर चीज़ को बदलते हुए देखते हैं; जो वस्तु आज हम देखते हैं वह कुछ सालों बाद वैसी ही नहीं रहती, बल्कि उसमें हमें बदलाव नजर आते हैं| बचपन में, युवा अवस्था में और बुढ़ापे में व्यक्ति अलग अलग रुप में दिखता है| इस तरह, बदलाव यह एक नैसर्गिक वैश्विक नियम है, जिसे बुद्ध ने अनित्यता सिद्धांत कहा था| लेकिन विश्व का अंतिम सत्य वही शुन्य/उर्जा है, जिसमें विश्व अंत में विलिन हो जाता है| इसलिए, नागार्जुन का कहना था कि, विश्व निरंतर बदलने वाला है लेकिन शुन्य उस बदलते जगत का अंतिम सत्य है| नागार्जुन के इसी तत्वज्ञान को आदि शंकराचार्य ने 'ब्रम्ह (शुन्य) सत्य, जगत मिथ्य' कहा है| इस तरह, शंकराचार्य का वेदांत तत्वज्ञान नागार्जुन के शुन्य तत्वज्ञान पर आधारित है|

लेकिन, बुद्ध की राह पर चलते हुए नागार्जुन आगे कहते हैं कि, शुन्य भी अंतिम सत्य नहीं है; क्योंकि, वह भी निरंतर बदलनेवाला है, इसलिए हर पल बदलते जगत की तरह शुन्य भी हमेशा बदलनेवाला है, वह स्थायी नहीं है| इस बात को आधुनिक विज्ञान ने भी स्विकार किया है, क्योंकि शुन्य अर्थात उर्जा निरंतर बदलती रहती है और एक उर्जा का रुपांतरण दुसरी उर्जा में निरंतर होते रहता है| इस तरह, बौद्ध तत्वज्ञान शंकराचार्य के वेदांत तत्वज्ञान से बहुत आगे विकसित है, शंकराचार्य के वेदांत सिद्धांत को भी खारिज करने की क्षमता रखता है|

आदि शंकराचार्य ने बौद्ध तत्वज्ञान को ही तोडमरोडकर वेदांत के रूप में अपने नाम से सामने रखा है| इसलिए, माधवाचार्य जैसे उत्तरकालीन विद्वान आदि शंकराचार्य को "प्रछन्न बौद्ध" कहते थे, क्योंकि शंकराचार्य ने कुछ अलग तत्वज्ञान सामने नहीं लाया था, बल्कि बौद्ध तत्वज्ञान में ही हलके बदलाव कर वेदांत के नाम से सामने लाया था| आदि शंकराचार्य की संपूर्ण शिक्षा बौद्ध विश्वविद्यालय तक्षशिला में हुई थी और वह आखिर तक बौद्ध भिक्खु के पहनावे में जिता रहा|

आदि शंकराचार्य के गुरु गौडापाद एक बौद्ध विद्वान थे और उन्होंने ही नागार्जुन के शुन्य सिद्धांत पर आधारित वेदांत सिद्धांत बनवाया था| गौडापाद के सिद्धांत को शंकराचार्य ने केवल प्रचारित कर दिया था| इस तरह, गौडापाद और शंकराचार्य दोनों प्रछन्न बौद्ध है और उनका वेदांत तत्वज्ञान भी प्रछन्न बौद्ध तत्वज्ञान है|

-- डा. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क





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