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मन की गंदगी क्या है

Narendra Shende
narendra.895@rediffmail.com
Friday, January 31, 2020, 11:32 AM
Man ki safai

मन की सच्ची सफाई ही सच्ची सफाई है, क्योंकि मन ही प्रमुख है, मन ही हरेक क्रिया व प्रकिया का अगुवा है।

तथागत बुद्ध ने कहा-

"मनोपुब्बंगमा धम्मा

मनोसेट्ठा मनोमया।"

कुशल मन से कोई काम करते है उसका फल सुख और शांति होता है।

"मनसा चे पसन्नेन, 

भासति वा करोति वा, 

ततो नं सुखमन्वेति छाया व अनपायिनी ।।" 

             - धम्मपद गाथा (2)

लेकिन, जब अकुशल मन से कोई काम करते हैं तो दुःख ही मिलता है। 

मनसा चे पदुट्ठेन भासति वा करोति वा ।

ततो नं दुक्खमन्वेति चक्कं व वहतो पदं ।।"

           -  धम्मपद गाथा (1)

   यही सनातन सत्य है।

इसलिए, मन की गंदगी साफ करना चाहिए।

मन की गंदगी क्या है?

मन की गंदगी मोह है, 

मन की गंदगी राग है, 

मन की गंदगी द्वेष है।

मन की ये गंदगीयां अन्य अनेक गंदगियों को अपनी और खिंचती ही रहती है। जब तक मन में राग, द्वेष, मोह के जाले लटक रहें हैं तब तक अनेक मनोविकारों का धूल इन पर जमता ही रहेगा। बाहर बाहर की सफाई मन के भीतर लटकते हुए इन धूलभरे जालों को दूर नही कर सकती। मन को स्वच्छ साफ़ नही रख सकती। और जब तक मन साफ़ न हो तब तक सच्चे सुख, शांति और समृद्धि की आशा करना व्यर्थ हैं।

तथागत बुद्ध ने मन की गंदगी साफ करने के लिए और मन को शुद्ध करने के लिए यानी राग द्वेष और मोह से मुक्त करने के लिए और मैत्री करूणा मुदिता और उपेक्षा से भरने के लिए उपचार बताया है वह है विपश्यना साधना। विपश्यना साधना द्वारा यानि सत्य के प्रति सतत जागरूक रहने के अभ्यास द्वारा मन को स्वच्छ साफ़ कर लेने के बाद ही उसका सजाव-सिंगार किया जा सकता है। सत्य का सहारा लेकर मन को असीम प्रेम और करुणा के भावों से ओतप्रोत कर लेना ही मंगल है।

यही बुद्ध का उपदेश हैं -

"सब्ब पापस्स अकरणं,

कुसलस्स उपसंपदा ।

सचित परियोदपनं,

एतं बुद्धां सासनं ।।"





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