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किसान और भंतो को कड़ा परिश्रम

TPSG

Thursday, July 4, 2019, 05:09 PM
Tathagat

किसान और भंतो को कड़ा परिश्रम
बुद्ध के पास एक किसान आया - उसने कहां आपके शिष्य भिक्षा मांग कर पेट भरते है। इसके सिवा वे क्या करते है, हम कड़ी धूप में खेत जोतते हैं, फसल उगाते है, उस फसल को जम्बूदीप के सभी लोग खाते है, इस प्रकार हम अपनी मेहनत से अन्न उगाते है।
    बुद्ध ने कहाँ - जिस प्रकार आप लोग मेहनत करते है, हमारे शिष्य भी कड़ी मेहनत करते है।
    किसान ने कहाँ - हे! तथागत मुझे बताये कैसे ?
    बुद्ध ने कहाँ - जिस प्रकार तुम किसान कड़ी मेहनत करके खेत से अन्न पैदा करते हो और उस अन्न को लोग खाकर जीवन यापन करते है, उसी प्रकार हमारे शिष्य उपदेश देते है, जीवन जीने की प्रेरणा देते है, यदि ये शिष्य उपदेश न दे ज्ञान न दे तो जीवन अंधकारमय रहेगा और अंधकारमय जीवन किसी काम का नहीं होता।
मेरे शिष्य दिन के चैबिस घंटे में एक समय भोजन करते है, केवल सात घर भिक्षा के लिये जाते है उन सात घर में किसी एक घर में भी भोजन नहीं मिला तो अगले चैबिस घंटे तक फिर भोजन नहीं करते है। किसी के द्वारा दी गई सुखी रोटी से भी संतुष्ट रहते है तो किसी के द्वारा अच्छा भोजन देने पर भी अत्यन्त प्रफुल्लित नहीं होते है दोनों स्थिति में बराबर समान भावना से भोजन ग्रहण करते है।
    मेरे शिष्य कभी रूपयो को स्वीकार नहीं करते ना ही किसी भी प्रकार के आभुषणो को स्वीकार करते है, उनके पास केवल एक अतिरिक्त चीवर होता है, जब किसी के पास एक और अतिरिक्त चीवर आ जाये तो वह किसी ऐसे सहयोगी भंते जिसके पास केवल एक चीवर बचा है या चीवर फट चुके है, उसे वह दे देता है अपने पास भविष्य के लिये भी यह सोचकर की मेरा चीवर फट जाये तो मुझे जरूरत पड़ेगी ऐसा सोचे बिना किसी ऐसे भंते को जिसको इसकी जरूरत है उसे दे देता है।
    इसके बाद चीवर फट जाने पर उसे फेंकता नहीं है उसका बिछौना बनाते है। बिछौने जब पुराने होते है, तो गद्दे का गिलाफ बनाते है, गिलाफ पुराने होते है तो फर्श बनाते है, फर्श पुराने होते है तो पायन्दाज बनाते है, और पायन्दाज पुराने होते है तो उसका झाड़न बनाते है, झाड़न पुराने होते है तो उसको कुटकर कीचड़ के साथ मर्दन कर पलस्तर करते है, इस प्रकार हमारे शिष्य किसी भी वस्तु चाहे वह भिक्षा में मिली हो या प्रकृति से प्राप्त हुई हो कभी दुरूपयोग नहीं करते है ना ही किसी वस्तु का दुरूपयोग करना सिखाते है।
    किसान को बात समझ में आ गई - अंत में बुद्ध ने कहाँ - जो शिष्य अर्हंत है (जो शिष्य तृष्णा को छोड़ देने वाले) है वे ही भिक्षाटन के लिये जाते है अन्य कोई शिष्य मेरे इस संघ से नहीं जाते है। जो मेरे शिष्य अर्हत है वे मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा देते है, सही मार्ग सही दिशा देते है, व्यर्थ मार्ग से नहीं भटकाते है, क्या ऐसे अर्हत शिष्य यदि एक दिन में एक समय में केवल सात घर ही भिक्षा मांगने आते है, और बदले में अहंकार जीवन में प्रकाश प्रदान करते है तो क्या उन्हें उपासक-उपासिकाओ द्वारा भिक्षा देना उचित नहीं है। 
    किसान ने कहाँ - हे तथागत! मुझे आपसे ज्ञान प्राप्त हो गया है, मैं भिक्षुओ को गलत समझ रहा था। 
- संग्रहक - टीपीएसजी





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