imagesimagesimagesimages
Home >> मिशन >> दिल्ली पालि अकादमी

दिल्ली पालि अकादमी

TPSG

Thursday, January 9, 2020, 02:54 PM
Pali

दिल्ली पालि अकादमी” है विश्व के लिये अनमोल सौगात।*

-डॉ. प्रफुल्ल गडपाल

पालि-भाषा भारत से लगभग दो हजार वर्षों से समाप्तप्रायः हो चुकी है; किन्तु पड़ौसी देशों में बुद्ध-वाणी के रूप में संजोये गए तिपिटक-साहित्य की माध्यम-भाषा होने के कारण यह भाषा किसी तरह जीवित रही.पडोसी देशों में इस भाषा में साहित्य-रचना कर्म भी चलता रहा. यह दुर्भाग्य ही था कि मानव को मानवता का पाठ सिखाने वाली पतिपत्ति रूपी विद्या यहाँ से बिलकुल समाप्त हो गई. यहाँ तक डिक्शनरी में भी यह शब्द लुप्त हो चुका था. इतनी अनमोल धरोहर से भारत वंचित रहा—और साथ ही वंचित रहा—भगवान् बुद्ध की सार्वजनीन शिक्षा से—बुद्ध की असीम करुणा से----नैतिकता और शील-सदाचार को वहन करने वाली मातृ-तुल्य पालि-भाषा से.

फिर पिछली सदी में धम्मानंद कोसम्बी जी के अथक प्रयासों से कलकत्ता में अनेक अभावों के बीच 1908 में पहले पालि विभाग की स्थापना हुई. तब से लगातार पालि की लोकप्रियता बढ़ ही रही है. इसी दौरान बाबासाहेब द्वारा ली गई धम्म-दीक्षा और  विश्व-व्यापी प्रचार-स्वरूप लोगों में पालि सीखने की लालसा बढ़ती ही जा रही है. नवनालंदा महाविहार (नालंदा) और (ईगतपुरी) जैसी संस्थाओं से मूल पालि तिपिटक, अट्टकथाएँ, टीकाएँ और अन्य साहित्य प्रकाशित हुआ और हो रहा है. इस प्रकार पालि में अनुसन्धान का क्रम चलता रहा; पर यह भी दुखद तथ्य है कि मूल पालि-ग्रन्थों के नये अनुवाद बहुत धीमी गति से और अल्प-मात्रा में ही हो पायें.

यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि भगवान् बुद्ध की शिक्षा पूर्णतः विश्वजनीन है, इसमें कहीं भी साम्प्रदायिकता, भेदभाव या इस प्रकार की संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं है. फिर भी भारत में अब तक बुद्ध-शिक्षा के लिए अनुकूल माहौल नहीं बन पाया है.

बड़े ही दुःख के साथ कहना पड़ता है कि एक तरफ देश में प्राच्य-भाषाओँ के अनेक विश्वविद्यालय हैं, अनेक अकादमियाँ, बोर्ड्स,निगमें, परिषदें और संस्थाएं हैं—संस्कृत के ही 17-18 विश्वविद्यालय हैं—पालि के नाम पर एक भी विश्वविद्यालय या संस्था नहीं है. पालि और दूरस्थ-शिक्षा, ऑन-लाइन शिक्षण या पत्राचार शिक्षण से तो अब तक भी नाता नहीं जुड़ पाया है. पालि-भाषा शिक्षण तो जैसे शून्य ही है, अब भी. इसी घोर निराशा के मध्य एक बात खुश होने के लिए बहुत है कि दिल्ली सरकार के द्वारा “दिल्ली पालि अकादमी” की स्थापना की गई है. इस खबर से देश के प्रबुद्ध-वर्ग, पालि-प्रेमियों ने सन्तोष का भाव व्यक्त किया है, विशेषतः मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से. पालि-भाषा की सुगन्ध को आज भी प्रादेशिक-भाषाओँ की शब्दावली में साक्षात्कृत किया जा सकता है. हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगाली, भोजपुरी इत्यादि भाषाओँ में बड़ी-मात्रा में पालि के शब्द और वाक्यांश प्राप्त होते हैं।

ज्ञातव्य है कि “भदन्ताचार्य बुद्धदत्त पालि संवर्धन प्रतिष्ठान” के माध्यम से पालि विद्वान और पालि-अभिमानी डॉ. प्रफुल्ल गडपाल ने अनेक बार दिल्ली सरकार से इस विषय में विस्तृत कार्य-योजना और पालि-विकासोन्मुखी प्रपत्र-युक्त ज्ञापन द्वारा निवेदन किया था तथा दिनांक 31 जुलाई, 2018 को आयुष्मान सुधीर राज जी के साथ दिल्ली सरकार के माननीय समाज-कल्याण मन्त्री श्री राजेन्द्रपाल गौतम से साक्षात् भेंट करके उक्ताशय की चिंता प्रकट की तथा उनसे आग्रह किया था की दिल्ली में अवश्यमेव “पालि अकादमी” की स्थापना की जानी चाहिए. मन्त्रीजी ने सकारात्मक जवाब दिया और इस विषय में उन्होंने स्व-स्फूर्त कार्य कर दिये जाने के संकेत भी दिये तथा तुरन्त कार्रवाही भी शुरू करवा दी थी. निश्चय ही मन्त्री जी ने त्वरित गति से उक्त विषय का संज्ञान लेते हुए “दिल्ली पालि अकादमी” की स्थापना में अहम भूमिका वहन की. इस सम्बन्ध में माननीय डॉ. सी.पी. सिंह जी की भूमिका भी अनल्प रही. वे भी साधुवाद के पात्र हैं. 

आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने “दिल्ली पालि अकादमी” के रूप में देश ही नहीं पूरे विश्व को अनमोल उपहार भेंट किया. इस महान कार्य के लिए दिल्ली प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल जी तथा माननीय उपमुख्यमंत्री व शिक्षा-मन्त्री श्री मनीष सिसोदिया जी को साधुवाद देता हूँ.।

निश्चय ही अतिशीघ्र ही इस अकादमी में अध्ययन-अध्यापन, अनुसन्धान, प्रकाशन और प्रचार-प्रसार आरम्भ हो जायेगा. ध्यातव्य है कि लगभग 200 से भी अधिक देशों में बौद्ध-धम्म का प्रचार-प्रसार है और 50 से अधिक देशों में पालि का प्रचार है. कुछेक थेरवादी देशों में तो पालि का स्थान अत्यंत सम्मानजनक स्थान है. इस प्रकार पालि एक ”अंतर्राष्ट्रीय भाषा” है. इस अकादमी की स्थापना से पालि का विकास तो अवश्य होगा ही, दिल्ली में स्थित विभिन्न देशों के दूतावासों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आयेगी और आपसी सौहार्द भी विकासंगत होगा. “साधुवाद के पात्र हैं वे लोग जिन्होंने इस कार्य को अंजाम दिया।





Tags : unfortunate literature countries thousand extinct Pali language