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भारत का कोई मूलनिवासी हिन्दू नहीं हैं

TPSG

Friday, July 12, 2019, 07:59 AM
Hindu not

भारत का कोई मूलनिवासी हिन्दू नहीं हैं :
संविधान के अनुच्छेद 330/342 से प्रमाणित है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग हिन्दू नहीं हैं केवल मूलनिवासी भारतीय हैं। यदि किसी में दम है तो प्रमाणित करके बताये कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग हिन्दू हैं.
विदेशी हिन्दू संस्कृति, विदेशी मुगल संस्कृति और विदेशी ईसाई संस्कृति इन तीनों संस्कृतियों के आधार पर भारत में किसी को आरक्षण नहीं मिलता है. सरकारी दस्तावेजों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोगों से जो हिन्दू धर्म का कॉलम भरवाया जाता है, वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अधीन अवैधानिक है.
जिस पर माननीय न्यायालय में वाद लाया जा सकता है. कुछ लोगों का मत है कि पहले आप जातिगत आरक्षण खत्म करो. तब जातिवाद अपने आप समाप्त हो जायेगा.
सबसे पहले तो यह समझना होगा कि
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग को आरक्षण किसी धर्म की जातियों का भाग होने पर नहीं मिला है.
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग भारतीय मूलनिवासी हैं और उन पर विदेशी आर्य संस्कृति अर्थात वैदिक संस्कृति अर्थात सनातन संस्कृति अर्थात हिन्दू संस्कृति ने इतने कहर, जुल्म और अत्यचार ढाये, जिनको पढ़ कर, सुनकर और देखकर मन में अथाह दर्द भरी बदले की चिंगारी उठती है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता. जो धर्म जिन लोगों पर अत्याचार जुल्म और कहर ढाता है, वे लोग उस धर्म के अंग कैसे हो सकते हैं?
हमें आरक्षण इसलिए नहीं मिला है कि हम हिन्दू रूपी वर्ण और जाति के अंग हैं. यह जातियाँ हिन्दूवादी लोगों ने कार्य के आधार पर भारतीय मूलवासियों पर अत्याचार करने के अनुरूप जबरदस्ती थोपी हैं. जबकि भारतीय मूलनिवासी लोग देश के विकास के लिए इस प्रकार के धंधे करते थे.
उन्ही धंधों के आधार पर विदेशी हिन्दू संस्कृति ने भारतीय मूलवासियों को जोरजबरदस्ती से  ऊँच,नीच का झूठा आधार बना कर सब को विभाजित कर दिया और उस ऊँचता-नीचता के आधार पर तरह-तरह के जुल्म एवं अत्याचार भारतीय मूलवासियों पर ढाये गए. हिन्दू संस्कृति ने भारतीय लोगों पर जाति एवं वर्ण के आधार पर जितने अत्याचार किये, उन अत्याचारों का आँकलन संविधान निर्माण समिति ने किया. उस आकलन के आधार पर भारतीय मूलवासियों को आरक्षण मिला है, न कि हिंदूओं की तथाकथित जाति होने पर. जो हिन्दू शास्त्र अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को बुरी बुरी गालियों से नवाजते हैं, ऐसे मूलनिवासी लोग, हिन्दू संस्कृति के अंग कैसे हो सकते हैं किसी भी संस्कृत ग्रन्थ को उठाकर देख लीजिये, सभी में SC, ST, OBC एवं समस्त स्त्री जाति के लिए गालियों का भण्डार भरा पड़ा है.
जैसे – ढोल गवांर शूद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
(रामचरित मानस पृष्ठ 663)
जे वर्णाधम तेली कुम्हारा।
स्वपच, किरात कोल कलवारा।।
(रामचरित मान पृष्ठ 870)
गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल और कल्हार आदि वर्ण में नीचे हैं अर्थात शूद्र हैं.
महिं पार्थ व्यापाश्रित्य स्यू : येsपि पाप योनयाः।
स्त्रियों वैश्यार तथा शूद्रास्तेSपि यान्ति प्राम गतिम।।
(गीता अध्याय – 9 श्लोक 32)
अर्थात – हे अर्जुन ! स्त्री, शूद्र तथा वैश्य पापयोनि के होते हैं, परन्तु यदि ये भी मेरी शरण में आ जाएं तो उनका भी उद्धार मैं कर देता हूँ.
वर्द्धकी नापितो गोपः आशाप: कुंभकारक।
वाणिक्कित कायस्थ मालाकार कुटुंबिन।।
वरहो मेद चंडालः दासी स्वपच कोलका।
एषां सम्भाषणात्स्नानं दर्शनादार्क वीक्षणम।।
(व्यास स्मृति–1/11-12)
अर्थात – व्यास स्मृति के अध्याय – 1 के श्लोक 11 एवं 12 से भारतीय समाज को शिक्षा मिलती है कि बढई, नाई, ग्वाल, कुम्हार, बनिया, किरात, कायस्थ, भंगी, कोल, चंडाल ये सब शूद्र (नीच) कहलाते हैं. इनसे बात करने पर स्नान और इनको देख लेने पर सूर्य के दर्शन से शुद्धि होती है.
जो संस्कृत ग्रन्थ भारतीय समाज के लोगों को इस प्रकार की गालियों से नवाजते हैं, वे उस संस्कृति के अंग कैसे हो सकते हैं?
हिन्दू संस्कृति के ऐसे दुराचरण के कारण ही भारतीय मूलवासियों को बाबासाहेब डाॅ भीमराव आंबेडकर के द्वारा रचित भारत के संविधान में संवैधानिक व्यवस्था का प्रावधान सुनिश्चित करने के कारण आरक्षण मिला है, न कि हिन्दू धर्म के कारण.





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