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बहुजन समाज पतन की ओर

Kisan Bothey

Tuesday, May 7, 2019, 07:39 AM
Samajik parivartan

बहुजन समाज पतन की ओर
जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेंट चढ़ा दिये। उसका उनको क्या फल मिला। बाबासाहेब अम्बेडकर को जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिऐ गये, तब सवाल था कि, आपने सारी जिन्दगी पिछङे वर्ग के ऊत्थान के लिऐ लगा दी। आपकी राय में उनके लिऐ क्या किया जाना चाहिए ? बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर पिछङे वर्ग का उत्थान करना है तो इनके अन्दर बडे़ लोग पैदा करो। काका कालेलकर यह बात समझ नहीं पाये। उन्होने फिर सवाल किया - बड़े लोगों से आपका क्या तात्पर्य है ? बाबासाहब ने जवाब दिया कि - अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर, 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ, तो उस समाज की तरफ कोई आंख उठाकर भी देख नहीं सकता। इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबासाहेब ने कहां ‘‘मुझे पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया। मैं समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगें, मगर मैं देख रहा हुँ कि, मेरे आस-पास बाबुआों की भीड़ खड़ी हो रही हैं, जो अपना ही पेट पालने में लगी हैं। यही नही, बाबासाहब अपने अन्तिम दिनों में अकेले रोते हुऐ पाये गये। जब वे सोने कोशिश करते थे, तो उन्हें नींद नहीं आती थी। अत्यधिक परेशान रहते थे। परेशान होकर उनके स्टेनो नानकचंद रत्तु ने बाबासाहब से सवाल पुछा कि, आप इतना परेशान क्यों रहते है ? उनका जवाब था, ‘‘नानकचंद, ये जो तुम दिल्ली देख रहेे हो। इस अकेली दिल्ली में 10,000 कर्मचारी, अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है। जो कुछ साल पहले शून्य थे। मैंने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया, अपने लोगों में पढे लिखे लोग पैदा करने के लिए क्योंकि, मैं समझता था कि, मैं अकेला पढ़कर इतना काम कर सकता हुँ, तो अगर हमारे हजारो लोग पढ लिख जायेंग, तो इस समाज में कितना बङा परिवर्तन आयेगा। मगर नानकचंद, मैं जब पुरे देश की तरफ निगाह डालता हुँ, तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीं आता है, जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सके। नानकचंद, मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा हैं। जब मैं मेरे मिशन के बारे में सोचता हुँ, तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है।
जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेंट चढ़ा दिये। जिसने पुरी जिन्दगी यह विश्वास किया कि, पढ़ा लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाईयों को आजाद करवा सकता हैं, जिसने अपने लोगों को आजाद करवाने का मकसद अपना मकसद बनाया था।
ये तथाकथित पढे लिखे लोग आजकल क्या कर रहे हैं ?
1. ये लोग अपनी टीवी और बीवी-बच्चो में व्यस्त है। इसके कई उदाहरण मैं प्रत्यक्ष देखता हुँ। कई बार मैं प्रचार करने के लिऐ उनके ऑफिस समय पश्चात् उनके घर जाता हुँ, तो मुझे वे कहते है, ‘‘यार सॉरी, अभी  समय नहीं है। कुछ समय तो बीवी बच्चो को भी देना पड़ता हैं।
2. अच्छी टेबल लेने की लिए अपने अधिकारियों की चापलूसी करने में यह लोग व्यस्त हैं।
3. ट्रांसफर के डर से किसी छोटे मोटे राजनीतिक या सामाजिक आन्दोलन के नाम से इनकी फटने लगती हैं।
4. कुछ जिनको राजनीतिक खुजली होती है, वे अपनी जाति का संगठन बनाकर उसकी ठेकेदारी करने में व्यस्त है।
5. कुछ लोग अति आत्मकेन्द्रित है, जिनका स्पष्ट मत है कि, उनके समाज का कुछ नहीं हो सकता।
6. कुछ लोग वेल्फेयर (सुधारना) के कामों में व्यस्त है। कुछ लोग सामाजिक ईमानदार है, पर साहस और समझ के अभाव में परिवर्तन के आन्दोलन से नहीं जुड़ पाते है।
7. कुछ लोग अपनी पोस्ट के गुरूर में चूर है। उनको लगता है कि उनकी दुनिया वहीं शुरू वहीं खत्म है। 
8. और कुछ लोग, जो ब्राह्मण बनियों के ज्यादा संपर्क में है, वे खुद बाबासाहेब के विरोधी है। बाबासाहब के जाने के साठ साल बाद, हजारो वकील, इंजी., डॉक्टर समाज में पैदा हुए  फिर भी पढे लिखे वर्ग में सुधार होने की बजाय हालात और ज्यादा गँभीर हो गये है, इसलिए, बहुजन समाज का विकास होने के बजाय पतन हो रहा है।
- किशन बोथे

 





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