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एकाग्रता से पाएं आत्मशांति

TPSG

Monday, June 3, 2019, 03:23 PM
akagrata

    एकाग्रता स्वयं एक अद्भुत सामथ्र्य है, सब धर्मो से श्रेष्ठ है। कोई सब धर्मो को जान ले, मान ले, लेकिन अगर एकाग्रता नहीं है तो चित्त प्रासादिक शांति से पूर्ण नहीं होगा। यदि एकाग्रता सिद्ध की है तो एक ही धर्म का थोडा सा रहस्य भी अवगत होने पर चित्तशीघ्र ही प्रसाद से पूर्ण हो जाएगा। रामकृष्ण परमहंस में ऐसी एकाग्रता थी कि वे जैसा चिन्तन करते थे, वैसा उनका स्थूल शरीर भी बन जाता था।
    सखी सम्प्रदाय में मानते है कि एकमात्र भगवान ही पुरूष है, बाकी हम सब स्त्रियां है। स्वयं को स्त्री मानकर साधना की जाती है। बंगाल के तरफ इस सखी सम्प्रदाय का प्रचलन है। रामकृष्ण ने यह साधना की तो उनका वक्षः स्थल उभर आया, शरीर महिलाओं जैसा होने लगा। आवाज भी स्त्रियों जैसी हो गई। एकाग्रता ने जोर पकड़ा तो रामकृष्ण को मासिक धर्म आने लगा।
    मन का इतना प्रभाव है कि अगर पुरूष एकाग्रता से चिन्तन करे कि मै स्त्री हॅू..... तो उसको मासिक धर्म हो सकता है। पुरूष अगर एकाग्रता से चिन्तन करें, मै इन सबका साक्षी हॅू...... तो उसके साक्षी होने में भी देर नहीं है। पुरूष यह चिन्तन करने लगे कि यह सब आने जाने वाला है, मन, बुद्धि, इन्द्रियां ये सब प्रकृति के है, उसको देखने वाला मै असंगो, अयं पुरूषः केवल निर्गुणश्च तो क्यों वह सफल नहीं होगा? इस प्रकार एकाग्रता को तत्वज्ञान में ले जाओं तो बेडा पार हो जाये। आदमी अगर एकाग्रता को संसार में खर्च करता है, संसार के लिए एकाग्रता का उपयोग करता है तो उसको रिद्धि-सिद्धि, सफलता आदि मिलते है।
    कई प्रकार के लोग योग करते है। विरक्त लोग भी योग करते है और अविरक्त लोग भी योग करते है। संसार के आकर्षण से जो विरक्त नहीं हुआ वह अविरक्त है। उसे भोगी कहा जाता है। भोगी जब योग करेगा तब योग का उपयोग भोग में करेगा। यश का भोग, धन का भोग, प्रतिष्ठा का भोग, वाहवाही का भोग।
    सचमुच जो निष्कामी महापुरूष है, वे अगर योग करते है, ध्यान करते है तो उनकी एकाग्रता चित्त की विश्रांति, आत्म विश्रांति प्राप्त कराती है। असुर लोग एकाग्रता करते है तो उसका उपयोग दूसरों को सताने में करते है और सज्जन लोग एकाग्रता करते है तो उसका उपयोग परमात्मा को पाने में करते है। भोगी लोग एकाग्रता करते है भोग में सफल होने के लिए और त्यागी लोग एकाग्रता करते है योग में सफल होने के लिए।
    इस प्रकार एकाग्रता तो सबके लिए उपयोगी है, वह भोगी हो चाहे त्यागी हो, सुर हो चाहे असुर हो।





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