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ओबीसी समुदाय इस बात को कैसे भूल सकता है

TPSG

Tuesday, April 30, 2019, 08:23 AM
OBC

ओबीसी समुदाय इस बात को कैसे भूल सकता है ?
ओबीसी यानी की शैक्षणिक और सामाजिक रूप में पिछड़ी जातियां.
भारत के संविधान में ओबीसी जातियो के लिए कलम 340, 15(4-5) और 16(4-5) के तहत प्रावधान करने का काम डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने किया था. इस कलम से ओबीसी जातियो की पहेचान करके उनकी अलग सूचि बनाने और उनको प्रशासन की सता में सामाजिक हिस्सेदारी देती आरक्षण की व्यवस्था लागु करने के अधिकार दिए गए है।
26-जनवरी 1950 से भारत के संविधान का अमल शुरू हो गया लेकिन 1951 तक संविधान की 340-वी कलम अनुसार ओबीसी के लिए आयोग नियुक्त करने का काम केन्द्र सरकार ने नहीं किया और देश की महिलाओ को अधिकारयुक्त बनाता हिंदू कोड बिल भी पास नहीं हुवा था, ऐसी बातो से दुखी होकर 1951 में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने नेहरु मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफापत्र में बाबासाहेब ने 6 कारण बताये थे, उसमे प्रथम कारण हिन्दुकोड बिल को पास न करना और दूसरा कारण ओबीसी जातियो की सरकार द्वारा उपेक्षा करना बताया था।
बाबासाहेब के इस्तीफा से दबाव में आकर केन्द्र सरकार ने 1953 में ओबीसी जातियो के लिए काका कालेलकर आयोग की रचना कि, 1955 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपा लेकिन सरकार ने उनका अमल ही नहीं किया। 1978 तक कालेलकर आयोग को लागु करने कि मांग उठती रही लेकिन सरकार ने लागु नहीं किया। 1978 में केन्द्र सरकार ने ओबीसी जातियों के लिए दूसरा आयोग बी.पी.मंडल की अध्यक्षता में नियुक्त किया। 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौप दी लेकिन 1989 तक उनकी शिफारिसे लागू नहीं कि गई। 1955 से लेकर 1989 तक केन्द्र सरकार ने ओबीसी जातियो को अपने संवैधानिक अधिकार नहीं दिये।
1989 में केन्द्र में वी.पी.सिंह की सरकार बनी। 1990 में डॉ. बाबासाहेब के जन्म शताब्दी वर्ष को वी.पी. सिंह सरकार ने सामाजिक न्याय वर्ष घोषित किया। इसी वर्ष में देश की 52 प्रतिशत ओबीसी जातियों के लिए मंडल आयोग रिपोर्ट लागु करने का संकल्प किया। डो. बाबासाहेब आंबेडकर को भारत रत्न अवोर्ड दिया गया, बाबा साहेब के ग्रंथो को देश की प्रमुख भाषाओं में प्रकाशित करने के लिए करोडो रु. का प्रावधान किया गया और डॉ. बाबासाहेब की तस्वीर संसद भवन में रखी गई।
देश की 52 प्रतिशत ओबीसी जातियो के लिए वीपी सिंह सरकार ने 7 सितम्बर 1990 के दिन 27 प्रतिशत मंडल आरक्षण केंद्रिय नौकरियो में लागु करने की घोषणा कि गई। देश भर के ब्राह्मणवादियो में हडकंप मच गया, ब्राह्मणवादियो के प्रभुत्व में चल रहे प्रेस मिडिया ने मंडल आरक्षण का विरोध कर रहे मुठ्ठीभर जातिवादी लोगो के आंदोलन को हवा देने की मुहीम चलाई। लेकिन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह दृढ़ता बता कर अपनी घोषणा पर कायम रहे। संविधान के अमल के 40 साल बाद देश की 52 प्रतिशत ओबीसी जातियों को प्रशासन की सता में सामाजिक हिस्सेदारी देते 27 प्रतिशत आरक्षण के संवैधानिक अधिकार के विरुद्ध उच्चवर्णीय जातिवादियो ने अपने तमाम साधन का उपयोग किया था। संघ-विहिप के जातिवादी नेताओं ने ओबीसी जातियों को मंडल आरक्षण को भुला देने के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथयात्रा निकाली थी।
वर्ग-1 के केन्द्रीय अधिकारियो में 90 प्रतिशत अधिकारी उच्चवर्णीय जातियोंओ के थे, जिसमे 3 प्रतिशत ब्राह्मणों के 60 प्रतिशत अधिकारी होते हुए भी सबसे ज्यादा विरोध संघपरिवार के ब्राह्मणों और कांग्रेस के ब्राह्मणों ने किया था। भाजपा के ब्राह्मण नेता बाजपाई ने वी.पी.सिंह सरकार को समर्थन वापिस ले लिया और कांग्रेस के ब्राह्मण नेताओ ने संसद में अविश्वास दरखास्त पास करवा कर वी.पी. सिंह सरकार को अल्पमत में ला कर सता से दूर कर दीया था।
वी.पी. सिंह सरकार ने सता छोड दी लेकिन सामाजिक न्याय को नहीं छोड़ा, संविधान के पालन को नहीं छोड़ा और 27 प्रतिशत आरक्षण की संवैधानिक बात को धोखा नहीं दिया।
आज भी मिडिया के जातिवादी लोग वी.पी.सिंह का नाम सुनकर आगबबूले हो जाते है, लेकिन ओबीसी के शिक्षित बुद्धिजीवी वर्तमान में भी बाबासाहेब और वी.पी. सिंह की भूमिका को वास्तविक स्वरूप में जानता है क्या ? डाॅ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने और वी.पी.सिंह ने ओबीसी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों के लिए जो कुछ किया, उसके बारे में ओबीसी समुदाय के पढे लिखे को अगर पता नहीं है, फिर उन को दोस्त और दुश्मन का पता कैसे चलेगा ? जिसको दोस्त और दुश्मन का पता नहीं है उसको जागृत कैसे कहा जा सकता है ?
7 अगस्त 1990 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह ने देश के 54 प्रतिशत ओबीसी समुदाय को 27 प्रतिशत आरक्षण केन्द्रीय नौकरियों में लागु करने की घोषणा कि गई थी। देश का ओबीसी समुदाय इसे कैसे भूल सकता है ?
- संग्रहक - टीपीएसजी

 





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