ये दुविधा अक्सर रहती है Siddharth Bagde tpsg2011@gmail.com Friday, June 20, 2025, 04:41 PM चल पड़ा हूं मगर रास्ता कहां से शुरू करूं ये दुविधा अक्सर रहती है मंजिल शुरू करने से पहले शुरूआत कहां से करूं ये दुविधा अक्सर रहती है खेलते-कूदते कब बीत गया समय, पता ही नहीं चला किताबों की दुनिया से ही तो शुरू हुई थी, मंज़िल पाने की कहानी कौन-सी किताब कब पढ़ूं, ये दुविधा अक्सर रहती है। यूं तो मौज मस्ती की दुनिया है ऐसे दुनिया के लोग ही हमारी दुनिया है अगर मंजिल पाने की जिद है तो मंजिल को ही मौज मस्ती समझ लूं या मौज मस्ती में जिन्दगी गवाकर इसे ही मंजिल समझ लूं इसी खयालातो में खोया हूं ये दुविधा अक्सर रहती है अब समय नहीं है मेरे पास कुछ करने की जिद है सोंचता हूं समाज ने मुझे क्या दिया पर सोंचता हूं मैंने समाज को क्या दिया मैं अपने लिये करूं या समाज के लिये करूं किसके लिये करूं किसके लिये ना करूं ये दुविधा अक्सर रहती है एक तरफ परिवार है, तो एक तरफ समाज है मैं समय किसको दूं परिवार के लिये चला तो कमाने में समय निकल जायेगा समाज के लिये चला तो समझाने में समय निकल जायेगा परिवार के तरफ चला तो समाज बिखर जायेगा समाज की तरफ चला तो परिवार बिखर जायेगा इसी में समय गुजर जाता है क्या करूं क्या नहीं करूं ये दुविधा अक्सर रहती है मैं जानता हूं कि पल पल मौत मेरी तरफ आ रही है ये मौत मेरे परिवार मेरे समाज की ओर आ रही है इसे मैं रोक सकता नहीं हूं फिर भी इसे कैसे रोकू ये दुविधा अक्सर रहती है मेरी मंजिल मेरी अपनी नही है, ये आपकी भी है अगर तुम भी चलो तो ये राहे आपकी भी है राहे वही है, मंजिल वहीं है, जो अपनो ने देखे थे कभी उसी मंजिल को पाने तो निकला था तुम साथ हो तो मंजिल आसान होगी अगर मंजिल पाने के नजदीक पहुंच भी जायेगें हम ये मेरा है, ये तेरा है कह देती है ये दुनिया ये दुविधा अक्सर रहती है Tags : I have started walking but where should I start from This dilemma is often there Where should I start before starting the destination This dilemma is often there