मैं सोचता था फ से फूल ही लिखा जाता होगा ....
गम को खुशियों में बदलना है तो आ जाओ ....
हम तो चले जायेगें कुछ तो छोड़ दो औरों के लिये ....
न बांधों बांध में मुझको नदी हूं मैं तो बहने दो अलग हूँ मैं ज़माने से, अगर ख़ूबी है ये ....
ना दिवाली होती, और ना पठाखे बजते ना ईद की अलामत, ना बकरे शहीद होते ....
वो धन के लिए लडता है। हम धर्म के लिए लडते हैं। वो संसद की तरफ दौडता है। हम तीर्थ स्थ ....
खुद का दुश्मन खुद ....
रूठो को मनाओ तुम ये जमाने की खुशिया है ....
उनसे कह दो कि डरे नहीं है हम, हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम। ....
चार ईंट लगाकर मथा टेकने से भगवान मिलता ....
हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज से ....
मूर्ति पूजा करने की जगह मानवता को पूजती हूँ मैं ....