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निर्भिक पत्रकार थे डाॅ. बाबासाहब अम्बेडकर

Pratima Ramesh Meshram

Sunday, April 21, 2019, 04:47 PM
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निर्भिक पत्रकार थे डाॅ. बाबासाहब अम्बेडकर
डाॅ. भीमराव रामजी आंबेडकर जितने बड़े विधिवक्ता, दार्शनिक, समाज शास्त्री एवं अर्थ-तंत्र के ज्ञाता तथा साहित्यकार थे, उतने ही प्रखर निर्भिक (निडर) पत्रकार भी थे। वे जानते थे कि प्रचार-प्रसार के लिए पत्र-पत्रिकाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्हें यह पता था कि देश के बड़े पत्र एवं पत्रिकाएं पूंजीवादी व्यवस्था के अन्तर्गत वही छापती है, जो उनके मालिकों के निहित स्वार्थो पर चोट या ठेस नहीं करता, उनके हितों का संरक्षण करता है। अतः उन्होंने कुछ मित्रो, हितैषियों के सहयोग से चार पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित की और उनके माध्यम से अपने विचार समाज के सामने लाने का प्रयास किया।
उच्च एवं बेहतर शिक्षा प्राप्ति के फलस्वरूप भारत में दलितों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति की दयनीयता को देख उन्हें जगाने की सोच ने बाबासाहब आंबेडकर को पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लेने की प्रेरणा दी। लेकिन समाज के तथाकथित धर्म के ठेकेदार उन्हें सभ्रान्तो एवं धर्म-रक्षकों से जुड़ी पत्र-पत्रिकाएं अपने प्रचार-प्रसार के सागर में चोंच डूबा देने को तैयार नहीं थी। अतः महाराज कोल्हापुर ने बाबा साहब आंबेडकर को कुछ आर्थिक सहायता उपलब्ध की और जनवरी 1920 में डाॅ. आंबेडकर ने ‘मूकनायक’ मराठी साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। यद्यपि ‘मूकनायक’ पत्रिका के वे अधिकृत सम्पादक नहीं थे, तथापि यह उनकी दलितो के लिए आवाज था। विचाराभिव्यक्ति था। इस पत्र के माध्यम से वे अपने महान लक्ष्य के समीप पहुंचने का प्रयास कर रहे थे। जबकि अर्थाभाव (आर्थिक स्थिति) भी उनके समक्ष डरावनी सूरत में खड़ा था।
‘मूकनायक’ के प्रथम अंक में ही पाठको को ये पढ़ने को मिला। ‘‘हिन्दू समाज एक ऐसी इमारत है जिसमें कोई प्रवेश द्वार नहीं है और बहुमंजिला होने के बावजूद एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक पहुंचने के लिये सीढ़िया भी नहीं। साथ ही बताया गया कि प्रत्येक मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्राप्त होना चाहिये। ‘मूकनायक’ साप्ताहिक के प्रकाशन के बाद पाठकगण तो जागृत होने लगे, परन्तू पत्रिका में व्यक्त विचारों से उनके आलोचको की फौज खड़ी होने लगी। और डाॅ. आंबेडकर को बदनाम करने का आलोचना करने का सिलसिला चालू हो गया। कोई उन्हें ईश्वर को न मानने वाला नास्तिक बताता, तो कोई हिन्दू संस्कृति का प्रबल शत्रु कहता था तो कोई ब्राह्मणो का प्राण लेवा शिकारी कहता यानी अपनी-अपनी समझ से प्रत्येक आलोचक उन पर प्रहार कर रहा था। ऐसी स्थिति में उनका मौन रहना उनके सिद्धांतो के लिए हानिकारण प्रमाणित हो रहा था। अतः 3 अप्रैल 1927 मुम्बई से मराठी पाक्षिक ‘बहिष्कृत भारत’ का प्रकाशन शुरू किया। इसी पाक्षिक ‘बहिष्कृत भारत’ द्वारा उद्देश्य को स्पष्ट करते हुये डाॅ. बाबासाहब आम्बेडकर ने कहा - देश में विविध प्रकार के सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन हो रहे है और उन्हें लग रहा है कि सन् 1930 तक भारत में काफी बड़े राजनीतिक सुधार हो सकते हैं।
डाॅ. बाबासाहब अम्बेडकर ने 50 से भी ज्यादा किताबें लिखी। उनकी ‘मूकनायक’, ‘प्रबुद्ध भारत’, ‘बहिष्कृत भारत’, ‘जनता’  मुख्य पत्रिका में से है। पत्र-पत्रिका के माध्यम से डाॅ. बाबासाहब अम्बेडकर एक सफल वकील तथा पत्रकार होकर भी दोनों जिम्मेदारियां संभाल रहे थे। पत्र के रूप में दलितो, शोषितो, तथा अछुतो की सेवा और उन्हें अपने कर्तव्य और अधिकारो के बारे में जागृत बनाना चाहते थे। वे महान लोक शिक्षक भी थे। ‘मूकनायक’ बंद होने के बाद ‘बहिष्कृत भारत’ प्रकाशित किया जिसके वे स्वयं सम्पादक थे। अपने सम्पादकीय लेख में डाॅ. आंबेडकर ने बड़ी निर्भिकता के साथ लेखो के माध्यम से सभी मन्दिर, तालाब-कुंए, अछुतो के लिये खुले होने की वकालत सरकार से की, क्योंकि वे हिन्दू थे।
अतः उनके शिष्यो की संख्या में वृद्धि हुयी व बाबासाहब के अनुयायीयों की एक लम्बी कतार बनी जिन्होने उनके आंदोलन को तेज किया और धन संग्रह करने लगे तथा बाबासाहब से प्रार्थना की कि वे ‘बहिष्कृत भारत’ की जगह ‘जनता’ नाम का साप्ताहिक पत्र निकाले। देवराव नाई व कदरेकर नामक दो साथियों की सहायता से दिसम्बर 1930 में ‘जनता’ साप्ताहिक अखबार प्रकाशित हुआ। जनता साप्ताहिक की भूमिका, उद्देश्य और रणनीति वहीं थी। दलितो को जागृत करना, अछुतो की पीड़ा का निर्मुलन करना तथा समाज की ठेकेदारी करने वालो का जमकर विरोध करना।
डाॅ. आंबेडकर की तीसरी पत्रिका अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हुई जिसका नाम ‘इक्वेलिटी’ यानी समानता अर्थात समत्व धर्म था। पूरी मनुष्य जाति की समता का प्रतिपादन करने वाला धर्म। न कोई ऊँच न नीच न कोई बड़ा या न छोड़ा। केवल मनुष्यता से परिपूर्ण मानव। नैतिकता से भरे आचरण का मानव, तभी इक्वेलिटी आयेगी, बढ़ेगी और हममे रहेगी। इन पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने चेतना का स्वर जागृत किया, लोगों को सोचने पर मजबूर किया। सामाजिक न्याय व समता के लिए उनके द्वारा किये गये समस्त कार्यो से ही लोगों को एक नई रोशनी मिली। वह पहले से ही Greatest Indian थे और हमेशा रहेगें। 
- श्रीमती प्रतिमा मेश्राम (पांढुर्णा)





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