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आज के जीवन में विपश्यना

Pratima Ramesh Meshram

Friday, April 26, 2019, 11:02 AM
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आज के जीवन में विपश्यना
वर्तमान युग भौतिक युग है। हर मनुष्य मोह, माया, अंहकार, भय, द्वेष के जाल में फंसा है। वह भौतिक सुखो के पीछे  दौड़ धुपकर स्वार्थी व अलिप्तवादी बन रहा है। भौतिक सुखो को पाना ही उसके जीवन का मकसद बना है और इस मकसद को पाने के लिये वह अपराध भी करता है, अनैतिक मार्ग पर भी चलता है। अर्थात इसी अंधी दौड़ में वह स्वयं के लिये दुःख का जाल बुनता है और फिर मन का संतुलन खोता है। जब मन ही संभ्रमित हो तो अवश्य ही कोई दिशा नहीं होगी। कोई लक्ष्य नहीं होगा। फिर वह दुःखी होता है, उसे अपना जीवन नीरस व अर्थहीन लगता है। जीवन में उसकी रूची खत्म होती है। 
सभी  भौतिक सुख उसके पास होते है। मगर मन को चैन, शांति व सुकुन नहीं होता। वातानुकूलित बंगले में वह रहता है, मगर यह बंगला भी उसके मन को शांति प्रदान नहीं कर सकता। फोम की गद्दी पर वह सोता है, नगर नींद उसके कोसो दूर भागती है। मंहगे वस्त्र पहनता है, मगर वह उसके बदन को काटते है। लजीज भोजन वह करता है, मगर स्वाद नहीं ले पाता है। उसका मन उसका दुश्मन होता है। बाहर के दुश्मन से तो वह लड़ सकता है, मगर मन के दुश्मन के सामने वह पराजित होता है।
आज ऐसा ही माहौल छाया हुआ है। चारो और ऐसे माहौल में आम आदमी मन की शांति खोजने निकल पड़ा है और इन सब का एक ही जवाब है, विपश्यना। 
आज केवल भारत देश के ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लोग विपश्यना साधना को ग्रहण करके अपने जीवन में सुख शांति प्राप्त कर रहे है। 
(सौ. प्रतिमा मेश्राम)

 





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