स्त्री उन्नय (शिक्षा) में Pratima Ramesh Meshram Monday, April 22, 2019, 08:08 AM स्त्री उन्नय (शिक्षा) में प्राचीन काल से लेकर आज तक नारी की व्यथा पर दृष्टि डाले तो नारियों को अनेक सामाजिक बंधनो से अनेको अत्याचारो से और बुराईयों से गुजरना पड़ा हैं। भारतीय हिन्दू समाज मेकं नारी प्रचलित कुप्रथाओ, बाल विवाह प्रथा, देवदासी प्रथा, सती प्रथा, दहेज प्रथा, विधवा पुनर्विवाह न होने देने जैसी मुर्खतापूर्ण प्रथाओ के जन्मदाता मनु ने स्त्री को जन्म से लेकर मृत्यु तक अन्याय व शोषणपरक व्यवस्थाओं में जकड़कर उसका जीवन नरकीय बना दिया। मनु ने भारतीय स्त्री को जन्म से लेकर मृत्यु तक किसी न किसी पर निर्भर करके रख दिया। उसके सक्षम बनने के सभी दरवाजे अन्यायी मनु ने बंदकर उसने स्त्री को बाल्य अवस्था में पिता पर युवा अवस्था में पति पर और वृद्ध अवस्था में पुत्र पर आश्रित कर उसे हर प्रकार से पराधिन रखने का प्रयत्न किया है। तभी भारतीय स्त्री की पीड़ा को समझने वाले समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, विचारक, मनोवैज्ञानिक, तज्ञ व दार्शनिक में डाॅ. बाबासाहब आम्बेडकर का नाम अव्वल आता है, वे इनमे प्रथम स्थान पर है। उन्होंने पुरोहितो, ब्राह्मणवाद तथा हिन्दू समाज की समस्याओं को बड़े अंसभवि गहराई से व दुखो से अनुभव किया। शुद्रो, अछुतो को समता, बन्धुत्व व न्याय का अधिकार दिलाने में अपना सारा शरीर होम कर दिया। दाव पर लगा दिया। यह त्रिकालवादी सत्य है। अनेको चिन्तन, मनन के पश्चात डाॅ. बाबसाहब आम्बेडकर इस नतीजें पर पहुंचे कि वर्ण, जाति व्यवस्था ने अछूत समाज का अहित किया है, ब्राह्मणो और पुरोहितो ने भारतीय स्त्री के साथ अछूतो जैसा व्यवहार किया। उसे सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक, जन्म सिद्ध अधिकारो से वंचित रखकर पुराहितो ने स्त्री को अछुत, अशुद्ध, अधर्मी, अपवित्र माना। डाॅ0 बाबासाहब ने नारी को आत्म सम्मान का पाठ सिखाया और उन्हें सचेत किया कि वे मानवीय अधिकार को स्वयं पहचाने और उसके लिये निरंतर संघर्ष करें। नारी राष्ट्र की निर्मात्री है, राष्ट्र का हर नागरिक उसकी गोद में खेलकर, पलकर आता है। नारी को जागृत किये बिना राष्ट्र का विकास असंभव है। उन्होंने नारियों को साफ सुथरा रहने, बुराईयों से दूर रहने, शिक्षित बनने और समाज की उन्नति में भागीदारी बनने का आह्वान किया। समाज के उत्थान के लिये डाॅ. बाबासाहब आम्बेडकर ने कहा था - ‘‘मैं किसी समाज की प्रगति का अनुमान इस बात से लगाता हूँ कि समाज के स्त्रीयों की कितनी उन्नति हुई है, स्त्री की उन्नति के बिना परिवार, समाज, राज्य और राष्ट्र की उन्नति के सपनो को सजाना कागज के फूल के समान है।’’ इसलिये उन्होंने नारी शिक्षा पर जोर दिया, वे नारी शिक्षा को इतना महत्व देते थे, यह बात स्पष्ट है कि औरंगाबाद, महाराष्ट्र की मिलिंद काॅलेज की हालत ठीक नहीं होने के बावजूद उन्होंने मात्र 04 (चार) छात्राओं के लिये अलग से विद्यालय खुलवाया, जिसमें पढ़ने वाली चारो छात्रायें स्वर्ण हिन्दू समाज की थी। हिन्दू कोड बिल ने न केवल स्त्री चेतना का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि सदियो से चली आ रही मनुस्मृति रूपी राक्षस का सिर भी हमेशा के लिये काट दिया। डाॅ. बाबासाहब आम्बेडकर ने स्त्री को समता, स्वतंत्रता के अधिकार दिलाये। इस परम उपकार के लिये भारतीय नारी समाज ही नहीं, सम्पूर्ण हिन्दू समाज डाॅ. बाबासाहब आम्बेडकर का ऋणी (कर्जदार) है। अतः मैं कहुंगी कि भारतीय स्त्री को यह भलीभांति समझ लेना चाहिये कि साहस और संघर्ष करने से उसका विकास, उन्नय, उत्थान संभव हैं। कायरता मैं उसकी दासता व पतन है। आज 21वीं सदी ने देश को आगे ले गया है, वैश्वीकरण में भारत आज शिखर पर पहुंचा है। इसमेे भारतीय स्त्रीयाँ भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। अगर स्त्रीयाँ पीछे रह जाती तो हम भारत को वैश्वीकरण में आगे बढ़ता हुआ नहीं देख पाते। संस्कृति को सही अर्थो में जीवित तभी रखा जा सकता है, जब भारतीय संविधान है, संविधान के अनुसार ही समाज के आधे भाग (स्त्रीयों) को पूर्ण स्वतंत्रता एवं समानता के अवसर मिले है। यही डाॅ. बाबासाहब आम्बेडकर के दिल की चाह थी। यह मार्मिक उद्बोधन अविस्मरणीय है। हम आज मनुवादि अभिशाप के भोग से मुक्ति पाये। इसी आशा में ...... सौ0 प्रतिमा रमेश मेश्राम पाण्ढूर्णा (म0प्र0) Tags : sati practice devadasi marriage Indian Hindu society practice foolish evils ancient