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फाल्गुन पुर्णिमा का बौद्ध धर्म में महत्व

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Thursday, April 18, 2019, 11:02 AM
Falgun

फाल्गुन पुर्णिमा का बौद्ध धर्म में महत्व
फाल्गुन पुर्णिमा के दिन तथागत बुद्ध अपने गांव कपिलवस्तु को अपने प्रियजनों से मिलने के लिए गये थे। फाल्गुन पुर्णिमा के दिन तथागत कपिलवस्तु के बाहर एक विहार में रुके थे और दुसरे दिन सुबह कपिलवस्तु के नगरवासियों से मिलने के लिए गये थे। 
ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने नगरवासियों से मिलने की बुद्ध की यह पहली भेंट थी। यह सभी जनों के लिए बहुत ही खुशी की बात थी। क्योंकि, संपूर्ण भारतवर्ष (जंबूद्वीप) से अलग अलग जगहों पर विद्वान लोग ज्ञान प्राप्ति की कोशिश कर रहे थे। लेकिन शाक्यों के सुपुत्र सिदधार्थ गोतम ने ही यह कठिन काम साध्य कर दिखाया था। शाक्यों के लिए यह बहुत ही गर्व ओर खुशी की बात थी। इसलिए, सभी शाक्य जनों ने बुद्ध का हर्षोल्लास में स्वागत किया था। तथागत को लेने के लिए उनके पिताजी राजा सुद्धोधन खुद चलकर नगरी के प्रवेशद्वार तक गये थे। यह दिन सभी साक्यों के लिए हर्ष और आनंद का दिन था। इस खुशी में सभी नगरवासियों ने एक दूसरे पर रंग बरसाकर अपनी खुशी जाहिर कर दी थी।
वर्तमान में ब्राम्हणो ने रंगपंचमी यह शराब और अश्लीलतापूर्ण तरीके से मनाते है। उसका मूल स्वरूप बिगाड़ा है। ब्राम्हणो ने उसे इसीलिए रास क्रीड़ा और गोपियों के साथ जोड़ दिया है।भारत के सभी त्यौहार यह सभ्यता,संस्कृति सिखाते है।ब्राम्हणो ने उनका ब्राम्हणीकरण करके ब्राम्हणवाद मजबूत किया है।
रंगोत्सव यह तथागत बुद्ध की ही याद में मनाया जाता था 
इसलिए थायलैंड, तिब्बत, जैसे दुनिया के बौद्ध देशों में फाल्गुन पुर्णिमा के दुसरे दिन आज भी रंगोत्सव मनाया जाता है। इन देशों में लोग बुद्ध मूर्ति की रैली निकालते है और उस मूर्ति के सामने रंगोत्सव मनाते हैं। भारत में इस उत्सव को रंगपंचमी कहा जाता है। झूठी कहानियां बनाकर इस उत्सव को भारत में बहुत जादा विकृत कर दिया गया है।
याद रहे कि प्राचीन शिलालेखों मे ही तथागत बुद्ध को फल्गुदेव कहा गया है। फाल्गुन महीना बुद्ध से ही है।
- संग्रहक - मिलिंद वानखेडे





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