क्या द्रोणाचार्य व राधाकृष्णन आदर्श शिक्षक थे TPSG Tuesday, September 21, 2021, 09:30 AM क्या द्रोणाचार्य व राधाकृष्णन आदर्श शिक्षक थे? द्रोणाचार्य के पास एकलव्य धनुष विद्या के लिए गया था मगर उसको शिक्षा नहीं दी गई।यह कहकर इनकार कर दिया तुम मेरे से शिक्षा लेने के अधिकारी नहीं हो।निम्न जाति के लड़के को शिक्षा द्रोणाचार्य कैसे दे सकता था! जब एकलव्य ने अपने दम पर धनुर्विद्या में काबिलियत दिखाई तो उसके चर्चे शुरू हो गए!द्रोण को लगा कि कि मेरे शिष्य अर्जुन से तेज-तर्रार धनुर्विद्या वाला कैसे हो सकता है!वो भी निम्न जाति का जिसे गुरु से शिक्षा लेने का कोई अधिकार तक नहीं था।द्रोणाचार्य भागे-भागे एकलव्य के पास पहुंचे!शास्त्रों में लिखा है कि उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा मांगी और दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया!एकलव्य ने गुरु का आदर किया और अंगूठा काटकर दे दिया!क्या कोई गुरु बिना शिक्षा दिए किसी से गुरु दक्षिणा मांगने लायक हो सकता है?अगर द्रोणचार्य ने मांगी तो कितना बेशर्म गुरु रहा होगा!मगर यह सत्य प्रतीत नहीं होता!जिस तरह शंभूक की त्रेता युग में हत्या की गई थी उसी प्रकार द्वापर युग मे एकलव्य का अंगूठा काटा गया होगा! डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर भारत मे शिक्षक दिवस मनाया जाता है।वो भारत के राष्ट्रपति रहे है और उनको भारत रत्न भी दिया गया था।वो बहुत महान शिक्षक रहे थे! उनकी महानता में योगदान दिया एक किताब जो इंग्लैंड से "इंडियन फिलोसोफी"नाम से छपी थी।उस समय राधाकृष्णन कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे।वीरभूम जिले में 1892 में जन्में जदुनाथ सिन्हा उनके शिष्य थे।जदुनाथ सिन्हा ने अपनी थीसिस राधाकृष्णन के पास जमा करवाई थी।राधाकृष्णन ने यह थीसिस दो साल तक पास नहीं की थी।इसी बीच इसी थीसिस को "इंडियन फिलॉसॉफी"नाम से इंग्लैंड में छपवा ली थी।मतलब किताब पहले छपी व थीसिस बाद में पास की थी इसलिए चोरी के आरोप से बचा जा सकता था। यही थीसिस जदुनाथ ने दो अन्य प्रोफेसर ब्रिजेन्द्रनाथ सील आदि के पास भी जमा करवाई थी।रीडर भी गवाह थे।किताब में फुल स्टॉप व कोमा तक नहीं बदला गया।जदुनाथ सिन्हा ने राधाकृष्णन को कई पत्र लिखे।यह पत्र व्यवहार कोलकाता की मॉडर्न रिव्यू में छपे थे।राधाकृष्णन सदा यह कहते रहे कि शोध का विषय एक था व सूचना का स्रोत भी एक था इसलिए हूबहू होना इतेफाक है मगर जब बात खुलकर सामने आ गई तो राधाकृष्णन ने जदुनाथ के ऊपर 10 हजार रुपये मानहानि का मुकदमा ठोक दिया।जवाब में जदुनाथ ने भी राधाकृष्णन के ऊपर 20हजार रुपये का उल्टा मुकदमा कर दिया। मामला अदालत में चला गया।जब ब्रिजेन्द्रनाथ सील से गवाही के लिए जदुनाथ ने निवेदन किया तो कहा "बड़े लोग है मुझे बीच मे मत लाओ!"उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे।लिहाजा मामला तो बड़ा होना ही था।गरीब जदुनाथ के ऊपर अदालत से बाहर मामला निपटाने के लिए दबाव बनाया गया और बताया जाता है कि जदुनाथ का मुँह 10 हजार रुपये में बंद किया गया था।गरीब जदुनाथ बड़े लोगों से लड़ने में अक्षम हो गए थे और एक गरीब छात्र के लिए उस समय 10हजार रुपये कम नहीं होते! एक रोचक बात यह भी है कि जब सुखदेव,राजगुरु, भगतसिंह को फांसी दी गई थी उसी समय राधाकृष्णन को अंग्रेजी शासन की तरफ से "सर"की उपाधि दी गई थी। हम राष्ट्रपति पद,भारत रत्न की उपमा का आदर करते है।राष्ट्रपति कैसे चुना जाता है और भारत रत्न देने के क्या मानक है वो जनता जानती है!गरीब जदुनाथ का मुद्दा अदालत के बाहर खत्म हो गया और 1979 में जदुनाथ का जीवन भी,मगर हमारी आपत्ति इस बात को लेकर है कि भारत का भविष्य निर्माण शिक्षक करते है और शिक्षक दिवस इनके नाम पर क्यों मनाया जाता है?खेलों के कोच को द्रोणाचार्य अवार्ड व शिक्षकों के लिए राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस!क्या हम अतीत की महान विरासत में इनसे बेहतर व आदर्श शिक्षक नहीं ढूंढ पाएं है?या हमने सोच लिया कि इनके इर्द-गिर्द ही आदर्शवाद का झंडा बुलंद करते रहेंगे! प्रेमसिंह सियाग Tags : education disciple archery Eklavya