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दान पारमिता

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Tuesday, April 30, 2019, 09:16 PM
Daan

दान पारमिता
दान किसी भी गृहस्थ के लिए उत्तम मंगल हैं। बुद्ध के अनुसार किसी भी गृहस्थ का निधन होना दुर्भाग्य पूर्ण है। गृहस्थ ने कठिन परिश्रम तथा ईमानदारी से धन कमाना चाहिए। उसे अपना ही नहीं अपने परिवार का और अपने पर आश्रित सभी लोगों का भरण-पोषण करना होता हैं। आर्य अष्टांगिक मार्ग में भी सम्य्क आजिविका के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है।
गृहस्थ जो धन कमाये उसमें से अपने सार्मथ्य के अनुसार कम या  अधिक दान देना भी उतना ही आवश्यक होता हैं अन्यथा वह पराभाव का कारण होता हैं। बुद्ध ने भी कहा हैं कि ‘‘जो आदमी बहुत संपत्ति रखता है, जिसके पास बहुत धन-धान्य हैं लेकिन जो उसे अकेला ही भोगता हैं, तब यह उसकी अवनति का उसके पराभाव का कारण होता है।’’
दान देने से जरूरत मंदो के प्रति सहानुभूति और करूणा की भावना बढ़ती है। केवल धन का संचय संग्रह एवं परिग्रह ही करें तो स्वार्थ बुद्धी बढ़ती है। आशक्ति बढती हैं औरों के प्रति स्नेह और सदभावना के स्थान पर ह्दय की कठोरता और क्रुरता का दुर्गुण बढता है।
बुद्धक काल में भी अनेक उपासक-उपासिकाओं के कुशल चित्त से दान दिया जिसकी वजह से वे इतिहास के पन्नो पर अमर हो गये। राजा बिम्बिसार ने बुद्ध प्रमुख भिक्षु संघ को वेलुवन उद्यान दान किया अनाथ पिण्डक ने जेतवन विहार दान किया। यह बुद्ध के प्रधान शिष्यों में एक था। दान दाताओं में प्रमुख राजवैद्य जीवक आम्रवन विहार दान किया। आम्रपाली गणिका ने अपना उद्यान दान दिया। श्रावस्ती की एक बड़ी धनी महिला विशाखा ने पर्वाराम विहार संघ को दान किया। वह दानशील गृहस्थ उपासिकाओं में एक थी।
बुद्ध ने कहा हैं कि शील सम्पन्न उपासक/उपासिकायें श्रद्धायुक्त चित्त से, लोभ रहित होकर जो कुछ भी दान देते हैं उसका वह दिव्य दान दुःख के नाश का दिव्य सुरण की प्राप्ति का कारण होता हैं।
दान का पुण्य फल चित्त की चेतना पर निर्भर करता है। यदि भय की चेतना ये दान देता हैं या बदले में सरकार अथवा समाज से कुछ सुविधा प्राप्त करने के लाभ से दान देता है, तो अथवा यश तथा प्रसिद्धि प्राप्त करने की लालसा से दान देता हैं अथवा औरों की तुलना में अधिक दान देता रहा हुँ इस दंभ को जगाते हुए दान देता हैं अथवा याचना करने वाले के प्रति तिरस्कार जगाकर दान देता हैं तो ऐसा दान पुण्यफलदायी नहीं होता, मांगलिक नहीं होता।
परंतु श्रद्धा के भाव से, मैत्री और करूणा के भाव से बदले में कुछ प्राप्त करने निःस्वार्थ भाव से दान देता हैं तो यह महान पुण्यफलदायी होता है, महान मंगलकारी होता है। मेरे द्धारा दिये गये दान से लोगों का कल्याण होगा, लोगों का कल्याण हो रहा हैं, लोगों को कल्याण हुआ हैं यह देखकर चित्त की चेतना प्रसन्नता से भर उठती है। तो दान महाफलदायी होता है, महामांगलिक होता हैं।
प्रसन्नता से दिया गया भोजन, वस्त्र, औषधि और निवास का दान निश्चित रूप से पुण्यफलदायी होता है। परंतु इन सबसे महानतम दान धर्म का दान होता हैं। सब्ब  दानं धम्म दानं जिव्वति। इसे पाकर कोई धर्ममय जीवन जीने लगे, इसी जीवन के दुःखों से नहीं बल्कि जीवन-मरण के भवचक्र के दुःखों से मुक्त होने का मार्ग प्राप्त कर लेता हैं तो इस धर्म दान का कोई मुकाबला नहीं। ऐसा धम्म दान अन्य सभी दानों की तुलनाा में महानतम् होता हैं, सर्वोत्तम मंगलकारी होता है।
एक सदगृहस्थ भले स्वयं किसी को धर्म का प्ररिक्षन नहीं दे सकता हो परंतु धर्म प्ररिक्षन के कार्यों में, उस कार्य के प्रसारण में सहयोगी बनता हैं, तो वह धर्मदान के अंतर्गत ही माना जाता है ओर महान पुण्यफलदायी होता है। धर्म दान सर्वोत्तम है। अत्यन्त मंगकारी हैं।
संकलन कर्ता - निलेश वैद्य

 





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