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मैं किसी भी विद्वान से बौद्ध धम्म दर्शन पर चर्चा के लिए तैयार हूँ, मैं शास्त्रार्थ में उसे परास्त कर दूंगा

TPSG

Tuesday, April 30, 2019, 10:16 PM
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मैं किसी भी विद्वान से बौद्ध धम्म दर्शन पर चर्चा के लिए तैयार हूँ, मैं शास्त्रार्थ में उसे परास्त कर दूंगा
(दिनांक 4 दिसम्बर1954, रंगून)
दिनांक 4 दिसंबर , 1954 को रंगून में तृतीय विश्व बौद्ध धम्म सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता माननीय फुंग व्हीचार्म आफ थायलैंड ने  की। इस अधिवेशन में अमेरिका, इंग्लेंड, सिलोन, मलाया, जर्मनी, फ्रांस, इंडोनेशिया आदि राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने बौद्ध धम्म और बुद्ध का उपदेश अपने विषय पर व्याख्यान दिए। अध्यक्ष ने बाबासाहब डाॅ. आंबेडकर का परिचय भारत के समस्त प्रतिनिधि मंडल के नेता और सात करोड़ दलितों के रहनुमा इन शब्दों में दिया। 
इस अधिवेशन में बाबासाहेब डाॅ़ आंबेडकर ने लगभग पचास मिनट तक अविराम भाषण दिया। प्रांरभ में उन्होने सबका आभार माना। 
इस अवसर पर बाबासाहेब डाॅ़ आंबेडकर ने कहा - 
पूज्य भिक्खु संघ तथा मेरे भाइयों और बहनों, 
मुझे यह कहते हुए खेद हो रहा है कि मैं उस देश के प्रतिनिधी की हैसियत से इस विश्व-बौद्ध सम्मेलन के मंच पर खड़ा हुआ हूं, जो आज बौद्ध नहीं है किंतु अतीत में जिसने सारे संसार को बुद्धत्व जैसा आलोक देकर मानवता की शिक्षा दी। 
(इतना कहते हुए बाबासाहेब का गला रूंद गया, आंखों में आंसू भर आए, और थोड़ी देर के लिए वह चुप हो गए। भावादेश कम होने पर उनकी पत्नी में उन्हें रूमाल दिया, जिससे उन्होने अपनी आंखे पोछीं और भाषण आरंभ किया। )
बाबासाहेब ने कहना आंरभ किया- यदि मनुष्य को अपना जीवन सुखी बनाना है,तो उसे सदाचार ,समता और बंधुत्व भाव का अवलंबन करना चाहिए। इसे छोड़ अन्य कोई (कल्याण का )मार्ग नहीं है। बौद्ध धम्म में यही बातें विशेष रूप से बतलाई गई है। मैने भगवान बुद्ध की इन्हीं शिक्षाओं को अपने छह करोंड़ अनुयायियांे को बतलाया है। 
मुझे बहुत दुख के साथ कहना पड़ता है कि जिस देश में भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ, उसी देश में उनकें धम्म का विध्वंस भी हो गया। ऐसा विचित्र घटना क्यों हुई। भारत पर बा्रहाणों ने अपना बहुत वर्षो से प्रभुत्व जमा रखा है,परंतु मैं ब्राह्राणों को चुनौती देता हूं कि कोई भी विद्वान पंडित मुझसे बोैद्ध धम्म के दर्शन अथवा तत्वज्ञान पर चर्चा कर सकता है। मैं उसे परास्त किए बिना नहीं रहूंगा। 
प्राचीन काल मं ब्राह्राणों के कथनानुसार, भारत में गोमेध यज्ञ होते थे, जिनमें स्वर्ग प्राप्ति के लिए गाय की बलि दी जाती और कहा जाता था कि इससें उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस पर तत्कालीन दार्शनिक चार्वाक ने ब्राह्राणों का उपहास करते हुए लिखा कि बलि देने से गाय को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, तो फिर ब्राह्राणों लोग अपने पिता की बलि चढ़ाकर उन्हें स्वर्ग में क्यों नहीं भेज देते ! प्राचीन काल में ऐसा आचरण करने वाले ब्राह्राण भी आज भगवान बुद्ध की अंहिसा से प्रभावित होकर गो-हत्या के विरूद्ध प्रचार कर रहे है। यह बौद्ध धम्म की अंहिसा की ही विजय है। 
ब्राह्राणों के अतिरिक्त भारत में उन लोगो की संख्या बहुत अधिक है जो ब्राह्राण नहीं है। किंतु धम्म के सबंध में उनकी अवस्था शोधनीय है। उन्हें बहकाने के लिए ब्राह्राणों ने हजारों देवी-देवताओं का सृजन कर दिया है, अतः किस देवता की उपासना से मोक्ष की प्राप्ति होगी, इसे वे नहीं जानते । बौद्ध धम्म में स्वर्ग प्राप्ति की कामना बच्चों का खेला है, इसका कोई महत्व नहीं है। वहां तो बताया जाता है कि जीवन में सुख तथा शांति प्राप्त करने के लिए मनुष्य को सदाचार, अंहिसा, समता और विश्व बंधुत्व का अवलंबन करना चाहिए, यही अकाट्य सत्य है। भगवान बुद्ध ने इसी का आदेश दिया है। मै चाहता हूं कि मेरी यह प्रबल इच्छा है कि यदि मुझे योग्य साधनों का लाभ हुआ, तों मै भारत में बौद्ध धम्म का जोरदार प्रचार करूंगा। 
लोकसभा में रहते हुए मैंने बौद्ध धम्म के पुनरूत्थान के लिए कुछ बाते की है। भारत के संविधान का मै निर्माता हंू। मैनंे जो संविधान का निर्माण किया है, उसमें पालि भाषा को स्थान दिया है। दूसरी बात यह कि राष्ट्रपति भवन में भगवान बुद्ध के शासन का प्रथम आदेश धम्मचक्र-प्रवर्तनाय स्थापित कराया हैं। मैंनें भारत के विधान में अशोक चक्र को भारत के ध्वज पर तथा भारत की राजमुद्रा में स्वीकृत कराया हैं। इतना सब कुछ करते हुए भी हिंदू, मुसलमान, ईसाई और अन्य सांसदो के द्वारा इस काम में मेरा विरोध नहीं किया गया। 
मैनंे बंबई शहर में सिद्धार्थ कालेज नाम से एक विघालय स्थापित किया है। इसी तरह अजंता-बेरूल के मार्ग में औरंगाबाद में मैंने दूसरा मिलिंद कालेज स्थापित किया है। बंबई के सिद्धार्थ कालेज में 2900 और औरंगाबाद के मिलिंद कालेज में 500 विघार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे है। मैने घोषणा की है कि अन विधार्थियों में से जो भगवान बुद्ध के जीवन चरित्र के संबध में सर्वोत्तम लेख लिखेगा, उसे एक हजार रूपया पुरस्कार दिया जाएगा। ऐसा करने का मेरा उद्देश्य यही है कि विधार्थी बौद्ध का गंभीर अध्ययन करने में जुटे। इस प्रकार स्वतः ही बौद्ध धम्म का प्रचार होगा। जिस प्रकार किसान जमीन की क्षमता शक्ति देखकर ही उसमें बीज डालता है, ठीक वैसे ही भारत में बौद्ध धम्म का संतुलित रूप में बुद्धिमतापूर्वक प्रचार करना होगा। इस धम्म प्रचार में बौद्ध देशो को अथवा धम्म प्रेमी बौद्धों को सहायता करनी चाहिए। किंतु मैं इसके लिए रूका नहीं हूं, सहायता मिले या न मिले, मेरा प्रचार कार्य जारीे है और जारी रहेगा। 
मेरा विश्वास है कि भारत में बौद्ध धम्म की जडे़ अभी सूखी नहीं है। देखिए भारत के राष्ट्रपति के मुख्य आसन के ऊपर धम्मचक्र-प्रवर्तनाय शब्द  अंकित है, भारत के राष्ट्रध्वज पर धम्मचक्र विराजमान है और भारतीय मुद्रा पर अशोक स्तभ का शीर्ष स्थित है। भारत सरकार धम्म निरपेक्ष होते हुए भी भगवान बुद्ध के प्रति श्रद्धावान हैं । बुद्ध के महापरिनिर्वाण की 2500वीं जयतीं महोत्सव में भारत की केद्रीय तथा प्रांतीय सरकारों ने विशेष सहायता की है और भारत सरकार ने बौद्ध धम्म के प्रमुख स्थानों की मरम्मत कराने, धम्मशालाएं तथा सड़कें आदि बनाने में लाखों रूपया खर्च किया हैं। 
ये सब ऐसे लक्षण हैं जिनसें आशा कि जाती है कि श्यदि इस समय भारत में बौद्ध धम्म के प्रचार में संगठित शक्ति से उत्साहपूर्वक कार्य किया जाए, तो सफलता आवश्यक मिलेगी। भगवान बुद्ध पर आज भी भारत में आम जनता की श्रद्धा है, किंतु वे भगवान के पवित्र उपदेशों और बोैद्धो धम्म के सिद्धांतों से अपराजित से हो गए है। इसको उन्हें पुनः जानकारी कराने की आवश्यकता है। बौद्ध धम्म भारतीय धम्म है और भारत का अनादि सनातन धम्म है। 
बाबासाहेब का उक्त प्रवचन अति संक्षिप्त रूप में दिया गया हैं। क्योकि इस सम्मेलन के प्रत्यक्ष दर्शी पूज्य भिक्खु डॅा. संधरक्षित जी अपनी एक संकलित पुस्तक बौद्ध धम्म ही मानव धम्म के पृ. 12 पर लिखते है बाबासाहेब का (उक्त) भाषण पौने दो घंटे तक होता रहा । उस दिन केवल बाबासाहेब का ही भाषण हुआ। सब लोग उनसे और बोलते रहने की प्रार्थना करते रहें। किसी ने लेशमात्र भी अरूचि या थकान का अनुभव नहीं किया।
साभार - बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर के धम्म प्रवचन
संग्रहक - टीपीएसजी





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