सच्चे और श्रेष्ठ धम्म की पुनस्र्थापना TPSG Tuesday, April 30, 2019, 02:59 PM सच्चे और श्रेष्ठ धम्म की पुनस्र्थापना का कठिन कार्य भावी पीढ़ी को करना है (दिनांक 24 जनवरी 1954, मुम्बई) दिनांक 24 जनवरी, 1954 को मुम्बई में आयोजित इस आयोजन का उद्घाटन बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर ने किया था। सेंट झेवियर काॅलेज के मैदान पर आयोजित सभाा में डाॅ. बाबासाहेब ने कहा - ‘‘आज मूर्ति पूजा, साधु संत और चमत्कार दिखाने वाले व्यक्ति की पूजा करना ही धर्म बनकर रह गया है। हमारे धर्म में अब देवता और नीति के लिए कोई स्थान नहीं है। आज की स्थिति में मानवीय मन का पूर्णतः अधःपतन हो चुका है। इसलिए सच्चे और श्रेष्ठ धम्म की पुनस्र्थापना का कठिन कार्य भावी पीढ़ी को करना है। सांईबाबा के प्रत्यक्ष दर्शन करने का अवसर मुझे नहीं मिला। उनके बारे में मैंने सुना जरूर है। ऐसे अवसर पर, जिसे सांईबाबा के बारे में मेरा ज्ञान शून्य है। जो भी जानकारी है, वह किसी व्यक्ति द्वारा सुनी सुनाई है। साईंबाबा का अवसान होकर काफी दिन बीत चुके हैं किंतु चंद्रकला की भांति उनके भक्तों में बढ़ोतरी हो रही है। एक धर्म गुरू के रूप में साईबाबा की पहचान है। हिंदू धर्म में भारत में समय-समय पर परिवर्तन हुए हैं। ऐसा माना जाता था कि धर्म का कार्य मानव की आत्मा को मुक्ति दिलाना है। बाद में धार्मिक, दृष्टिकोण, उद्देश्य और साधना के फलस्वरूप मूल कल्पना में परिवर्तन हुआ। धर्म नैतिक मूल्यों से आपस में आदरभावना उत्पन्न कर विश्व बंधुत्व कायम करने का एक साधन है, ऐसा माना गया। धर्म की तीसरी अवस्था मानें जो व्यक्ति मनुष्य जीवन की दैनंदिन जरूरतों की पूर्ति करता है, उसे देवता पद देकर उसकी पूजा अर्चना करना ही है। कोई पुत्र मांगता है, कोई संकट मुक्त होना चाहता है। जो व्यक्ति ऐसी इच्छाएं पूरी कता है, वह व्यक्ति उसके लिए (उपासक के लिए) देवता हो जाता है। हम यह भी देख रहे हैं कि साधारण व्यक्ति जो नहीं कर सकता, ऐसे चमत्कार कर दिखाने वाले इंसान की भी पूजा हो रही है। यह पूरे देश में हो रहा है। धर्म के मामले में हम गलत दिशा में जा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि आजगल धर्म के नाम पर धन इकट्ठा कर अनुचित कार्यो पर खर्च किया जा रहा है। विश्व में गरीबी और दुख दूर करने के स्थान पर धर्म के नाम पर धन इकट्ठा कर ब्राह्मणवादी संस्कारों और उत्सवों पर व्यय करना भयंकर अपराध है। गौतम बुद्ध ने इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार किया था और उन्होंने अपने नैतिक शास्त्र में पंचशील, अष्टांग मार्ग, निर्वाण के बारे में बहुत ही उत्कृट तरह से बताया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने दस पारमिताओं को अपनाने के लिए भी कहा है। वे हैं - प्रज्ञा, शील, नेखम्म, दान, वीर्य, खन्ति, सच्च, अधिष्ठान, मैत्री और उपेक्खा। जिसके द्वारा अज्ञान, अंधकार समाप्त होता है, वह है प्रज्ञा अर्थात ज्ञानरूपी प्रकाश। शील का अर्थ है नैतिक विचार। बुरे कार्य नहीं करना, अच्छे कार्य करते रहना। नेखम्म का अर्थ है सांसारिक सुखों से दूर रहना। दान का अर्थ है, किसी भी प्रकार की इच्छा न करते हुए दूसरों के लिए तन, मन, धन अर्पित करना। वीर्य का अर्थ है उत्साह, धैर्य, कसौटी। हाथ में लिया गया कार्य पूरा करना, पीछे नहीं हटना। खन्ति माने सहनशीलता। द्वेष को द्वेष से उत्तर नहीं देना। सच्च का अर्थ है, सत्य। हर व्यक्ति को झूठ नहीं बोलना चाहिए। सदैव सत्य बोलना चाहिए। जो भी कहे, सत्य ही कहे। अधिष्ठान का अर्थ है मनोनिग्रह! मैत्री का अर्थ है प्रेम। फिर वह मित्र के लिए हो या शत्रु के लिए। मानव पर हो या परप्राणियों पर उपेक्खा का अर्थ है उपेक्षा! मन को सुखदुख के कारणों से विचलित नहीं करना। परिणामों पर विचलित नहीं होना और कर्तव्य करते रहना। बुद्ध चाहते थे कि मनुष्य इन गुणों को मनोसात करें। इसीलिए पालि वांगमय में कहा गया है कि गौतम बुद्ध ने ऊपरवर्णित दस पारमिताओं की शिक्षा दी है और दान देते समय सदपात्र का ध्यान रखना चाहिए ऐसा ही बताया है। दान दाता की इच्छा है कि वह दान दे, किंतु इस दान से दान लेने वाले को अपमान महसूस नहीं होना चाहिए। पददलितों को एक दिन स्वयं के पैरों पर खड़ा रहने का सामथ्र्य प्रदान करने की शक्ति यानी मदद करना ही सच्चा दान है। साधु संतों के नाम पर धन इकट्ठा किया गया हो तो उसका विनियोग भी पारमिता में बताए गए सिद्धांतों के अनुरूप करना चाहिए। गरीबी, अज्ञान, बीमारी इतनी है कि इसे नष्ट करने के लिए धन खर्च न कर धनिकों के लिए खर्च करना दुष्टता है। इस धन का सदुपयोग अस्पताल, शिक्षा, बेकारों के लिए उद्योग धंधा, गरीब अनाथ महिलाओं के लिए व्यवसायिक शिक्षा प्रदान करना, ऐसे कार्य करने चाहिए। आपने इकट्ठा किया हुआ अपना धन इस तरह से खर्च किया तो आप के कार्य की प्रशंसा होगी। सांईबाबा की कीर्ति करने से लोगो का भला नहीं होगा। साभार - बाबासाहेब डाॅ. आंबेडकर के धम्म प्रवचन संग्रहक - टीपीएसजी Tags : noble therefore situation policy religion worship idol worship Today