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आखाजी

TPSG

Friday, August 6, 2021, 11:35 AM
akhaji

आखाजी अर्थात अक्षय तृतीया एक बौद्ध पर्व हैं|

बौद्ध धर्म सृष्टि से जुडा़ महत्वपूर्ण जागतिक धर्म है| तथागत बुद्ध खुद खत्तिय मतलब खेतीहार होने के कारण उन्होंने कृषि पर आधारित अपनी विचारधारा विकसित कर दी थी| उन्होंने अपने चीवर का भगवा रंग खेतों के उपजाऊ धान को देखकर ही स्विकार कर लिया था| बुद्ध ने ख़ुद उनके धम्मप्रचार की तुलना खेती काम से कर दी थी|

राजपुत्र गोतम जब छोटे थे, तब उनके पिताजी ने बारिश के शुरुआत में पांचसौ हलों के साथ अपनी राजधानी कपिलवस्तु में हलोत्सव मनाया था, जिसका वर्णन "वप्पमंगल सुत्त" में मिलता है| वर्तमान भारत में यह उत्सव आजकल बहुजन लोग "आखाजी या आखजी उत्सव" के रुप में मनाते है| इसका मतलब यह है, वर्तमान आखाजी उत्सव वास्तव में बुद्धकालीन वप्पमंगल उत्सव या हलोत्सव ही है|

इस उत्सव का ब्राम्हणीकरण करने के लिए ब्राम्हणों ने परशुराम की काल्पनिक कथा बनाई थी| तथागत बुद्ध ने खत्तियों के नेतृत्व में ब्राम्हण वर्चस्व विरोधी धम्म अभियान चलाया था, जिससे ब्राम्हणों का वर्चस्व खत्म हुआ और खत्तियों का (क्षत्रियों का) वर्चस्व बढा| सम्राट अशोक ने ब्राम्हणों को महत्वपूर्ण पदों से हटाकर बहुजन भिक्खुओं को अपने धार्मिक तथा राजनीतिक सलाहकार के रुप में नियुक्त किया था और उनके माध्यम से अशोक ने अपना दुसरा राज्याभिषेक बौद्ध पद्धति से किया था| सम्राट अशोक से प्रेरित होकर ही छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज ने अपना दुसरा राज्याभिषेक बौद्ध धर्मी शाक्त मतलब शाक्य पद्धति से किया था|

बौद्ध क्षत्रियों को पराजित करने के लिए ब्राम्हणों ने पुष्यमित्र शुंग के नेतृत्व में प्रतिक्रांती कर दी थी और पुष्यमित्र शुंग को परशुराम के रुप में सामने लाया| परशुराम ने अपनी माँ की हत्या कर दी थी, इस काल्पनिक कथा का मतलब यह है कि, पुष्यमित्र शुंग ने अपने ही समर्थक मौर्य सम्राट बृहदरथ को मार डाला था| परशुराम ने क्षत्रियों को 21 बार चुन चुन कर मारा और पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन बनाया, इसका मतलब यह है कि, पुष्यमित्र शुंग से आदि शंकराचार्य तक ब्राम्हणों ने बौद्ध राजाओं को चुन चुन कर मार डाला और धरती को बौद्ध क्षत्रिय विहीन बनाया था|

इस तरह, परशुराम प्रतिक्रांती का मुख्य प्रतीक है| बौद्ध क्षत्रियों का उत्सव आखजी को परशुराम से संबंधित अक्षय तृतीया कहना मतलब मूलनिवासी बहुजनों के मुख्य उत्सव आखजी का ब्राम्हणीकरण करना है| इसलिए, अक्षय तृतीया नहीं, आखजी ही मूल उत्सव है और उसे आखजी के रूप में ही बहुजनों ने मनाना चाहिए| आखजी उत्सव ही बौद्ध क्षत्रियों का वप्पमंगल सुत्त में वर्णित हलोत्सव नामक एक कृषि उत्सव हैं|

-- बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क





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