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चारूकेशा का त्याग व समर्पण

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Monday, April 29, 2019, 08:14 PM
Charukesha

चारूकेशा का त्याग व समर्पण
भगवान बुद्ध के समय उनके प्रतापी और बुद्धिमान शिष्यों ने उनके धम्म और संघ को विस्तार प्रदान किया। आचार्य महाकच्चायन बुद्ध के ऐसे ही शिष्यों में से एक थे। बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय के लिए कच्चायन कुछ भिक्खुओ के साथ उज्जयिनी के लिए र वाना हुए। रास्ते में वे एक गांव तेल्प्पनाली में रूके तथा विश्राम करके भिक्क्षाटन के निमित्त गांव में प्रवेश किया। उस गाँव में दो श्रेष्ठियों (सेठों) की दो पुत्रियाँ निवास करती थी। उनमे से एक अति सुन्दरी आकर्षण तथा नम्र स्वभाव वाली थी, किन्तु माता-पिता की बचपन में ही मृत्यु हो जाने के कारण वह बहुत दरिद्रता में जीवन यापन कर रही थी। उसके केश बहुत लम्बे, काले व सुन्दर थे, शायद इसी कारण वह ‘‘चारूकेशा’’ नाम से प्रसिद्ध थी। दूसरी ओर धनी सेठ की पुत्री सांवली व कुरूपा थी, तथा उसके केश भी ज्यादा बढ़े नहीं थे, इसी कारण वह ‘‘केशहीना’’ नाम से जानी जाती थी।
भिक्खुओ का संघ भिक्षा ना मिलने के कारण खाली भिक्क्षापात्र के वापस लौट रहा था, यह देखकर चारूकेशा को बहुत दुख हुआ। उसने करूण ह्दय से उन  भिक्खुओ को अपने घर बुलाया, किन्तु उसके पास उन्हें देने के लिए अन्न न था। चारूकेशा ने घर में प्रवेश कर झट अपने केश काटे व अपनी दासी को उन्हें केशहीना को बेचकर आने का कहा। उसने अपनी सुन्दरता की कुर्बानी दे दी, दान करने के लिए ऐसा ही दान उत्तम दान की श्रेणी में आता है। दूसरी ओर, केशहीना ने कटे हुए केशो को हिकारत भरी दृष्टि से देखते हुए उनके लिए बहुत कम मुल्य दिया। जो कुछ मिला, दासी ने उससे अन्नादि सामग्री खरीद भिक्खुओं को भोजन कराया व दान दिया। भोजनोपरांत भिक्खुओं ने चारूकेशा को बाहर बुलाया। वह बाहर नहीं आना चाहती थी, किन्तु महाकच्चायन के आग्रह पर वह लज्जित सी बाहर आई। सिर-मुण्डी उस कन्या का रूप पहले जैसा आकर्षक न था, वह थोड़ी असुन्दर लग रही थी। बाहर आने पर उसकी आँखो से आँसू छलक उठे। उस युवती का ऐसा त्याग व समर्पण देखकर कच्चायन व शेष भिक्खु आश्चर्यचकित रह गये। उसकी श्रद्धा व अपूर्व त्याग से प्रभावित भिक्खुओ ने उसके कल्याण के लिए वन्दना की व उसे आर्शीवाद दिया। शीघ्र ही उसके केश कुछ दिनो में पूर्ववत् हो गये।
संग्रहक - निलेश वैद्य

 





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