हम कभी बाबासाहेब का संघर्ष देखकर रोय Nilesh Vaidh nileshvaidh149@gmail.com Monday, April 22, 2019, 08:48 PM हम कभी बाबासाहेब का संघर्ष देखकर रोय जब हम दुःखी होते है, तब रोते है, चाहें हम बाहर से रो रहे हो या अंदर से मगर कहीं न कहीं रोते है। महिलाओं की दुःख के प्रति सहनशीलता कम होती है इसलिये महिला दुःख में जल्द ही रोती है, किन्तु पुरूष दुःख को रोते हुये दर्शाते हुये नाजुक नहीं दिखना चाहते, इसलिये हर दर्द और दुःख को सहकर अंदर ही मजबूती के साथ रहते है, किन्तु बहादूरो का बहादूर, वीरो का वीर यदि आंखो से आँसू बहाये वह भी खुद के लिये नहीं दूसरो के लिये तो ऐसे इंसान के रोते हुये आँसू से क्या हमारा दिल दहलना नहीं चाहिये, क्रोध से जल नहीं जाना चाहिये। हमारे बाबा साहब हमारे लिये रोते थे, आँसू बहाते थे कभी हमने बैठकर अपने बाबासाहब के लिये कभी आँसू बहाये जिस युगपुरूष ने आज हमारे लिये इतना कुछ किया है, उसके लिये उन्होंने शिक्षित हो (हम शिक्षित हो गये) संगठित हो (हम एक दूसरे से जलते है, संगठित नहीं है) संघर्ष करो (जब हम संगठित ही नहीं है तो संघर्ष कैसे करेगें) हमें मिलकर ईमानदारी से, अपनो से अपनो को गले लगाकर और मिलकर संघर्ष करना है। - निलेश वैद्य Tags : strength deliberately men grief somewhere weeping cry