होलिका में होम होती हरियाली TPSG Tuesday, April 30, 2019, 07:49 AM होलिका में होम होती हरियाली होलिका में लकड़िया जलाने के बजाये होलिका की तस्वीर लगाकर मोमबत्ती जला दी जाये और उत्सव मनाया जाये तो यह परम्परा भी नवयुवक ही शुरूआत कर सकते है पेड की जगह अब छाता धरा पर हरियाली बनाए और बचाए रखने के लिए जिस वन विभाग को जिम्मेदारी सौंपी गई है, वह हर वर्ष लाखो की संख्या में पौधरोपण करता है। सरकारी कागजों और फाइलों में जिस कदर हरियाली के इंतजाम किए जा रहे है, अगर वह हकीकतन हो जाए तो पेड़-पौधो से धरती का इंच इंच पट जाए लेकिन ऐसा है नहीं। नंगे होते पहाड़ और वीरान होते वन क्षेत्र खुद गवाही दे रहे है कि उन्हें हर दिन, हर पल हलाक किया जा रहा है। हरियाली का दायरा वास्तव में सिकुड रहा है। सोनभद्र, मीरजापुर व चंदोली के जिन इलाकों ओर पहाड़ों पर दशक-डेढ़ दशक पहले तक बेपनाह छांव हआ करती थी, वहां अब गर्मियों में धू से बाहर के लिये छाता तानना पडता है। इसकी दोहरी मार पड़ रही है लकड़ी की कीमतों पर भी। कभी रूपये में पसेरी मिलने वाली लकड़ी की कीमत अब आसमान पर है। वजह है तमाम, होलिका भी एक वजह जंगलों के कटने की वजहें तमाम है। मसलन नगरों, कस्बों का होता विस्तार, बढ़ती आबादी, लालच, चोरी से पेड़ कटान, सड़क निर्माण आदि मगर एक वजह होलिका भी है। बेशक होली बड़ा त्यौहार है और होलिका दहन उसकी एक अनिवार्य परंपरा। मगर स्थिति बिगड़ी है, हर मुहल्लो में चार-पांच होलिकाओं के जलने से। क्या एक मुहल्ले में एक होलिका नहीं जलनी चाहिए। क्या जरूरी है कि बंटते परिवारों की तरह मुहल्लों को भी होलिकाओं की विभाजन रेखा से बांट दिया जाए। आखिर इतनी होलिकाओं के लिए लकड़ियां कहा से आ रही हैं या फिर आयेगी कहां से, जाहिर है कि जंगल को बर्बाद कर के ही आयेगी। तथागत ने कहा है वन एक असीम उपकार की वर्षा करने वाली अनोखी प्राकृतिक रचना है जो स्वयं के पोषण के लिए किसी वस्तु की अपेक्षा नहीं करती वरन अपने जीवन के कर्मण्यता के प्रतिफलों को खुले हाथों से बिखेरती वन उन जीवधारियों को भी छाया देता है जो उसे काट डालने के लिए उद्यत होते है। टीपीएसजी Tags : young man tradition festival celebrating Holika Instead