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भय के कारण लोग आस्तिक

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Wednesday, May 1, 2019, 12:40 PM
Astik Nastik

भय के कारण लोग आस्तिक
जहां पर विश्वास है, वहां भय समाप्त हो जाता है, लेकिन जहां अविश्वास हैं, वहां डर प्रारंभ हो जाता है।
अविश्वास का प्रारंभ ही तब होता है, जब हमें किसी मंजिल में असफलता नजर आती है। जब किसी व्यक्ति का आपरेशन हो रहा होता है, तो वह सोचता है कि आपरेशन सफल होगा या नहीं। परीक्षा का रिजल्ट आने के पहले छात्र सोचता है, मैं परीक्षा में पास होऊंगा या नही। गर्भवती महिला डिलीवरी के समय सोचती है, उसकी डिलीवरी सही होगी या नहीं। जहां अविश्वास है, वहां भय है।
यही भय को दूर करने के लिये वह किसी भगवान, अल्लाह, ईशू को याद करता है, और उससे प्रार्थना करता है कि सब सही हो जाये। यही भय तो उसे आस्तिक बनाता है।
उसी प्रकार अत्यधिक खुशी भी आस्तिकता की ओर ले जाती है, जैसे किसी व्यक्ति की अचानक लाॅटरी खुल जाना। खुशी के मारे वह कह उठता है, भगवान ने आज मेरी किस्मत खोल दी। उस घर में जहां किसी महिला का प्रसव हो रहा है, और सभी लोग लड़की की आस रखे हो और लड़का हो जाये तो खुशी के मारे कह उठते है, आज भगवान ने हमारी सून ली।
लेकिन ये दोनो स्थितियां भय और अत्यधिक खुशी अज्ञानता के कारण आस्तिकता की ओर ले जाती है।
एक छोटी सी कहानी है - दो व्यक्ति किसी नगर की ओर जा रहे थे, उस स्थान की स्थिति के बारे में दोनों को पता नहीं था। रास्ते में एक व्यक्ति उन्हें मिला। उन्होंने कहां तुम जहां जा रहे हो वहां खाने को कुछ नहीं मिलेगा, इसलिये उचित है कि तुम लोग अपने साथ खाने भोजन एवं पानी रख लो। (यहाँ तर्क से अपनी बुद्धि से सोचने की बात है), पहले व्यक्ति ने सोचा कि ये सब भगवान की माया है, वहीं भोजन की व्यवस्था करेगा। दूसरे ने सोचा साथ में भोजन एवं पानी बांध लेने में कोई बुराई नहीं है, यदि उस नगर में भोजन एवं पानी मिल गया तो ठीक है, यह बासा भोजन हो जाने पर फेंक दूंगा नहीं तो यही भोजन मेरे काम आयेगा। उस नगर में पहूंचने पर भोजन एवं पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। दूसरे व्यक्ति ने अपने साथ भोजन एवं पानी ले जाने से अपना जीवन बचा पाया और वह आगे सम्पन्न नगर की ओर निकल गया। लेकिन पहला व्यक्ति जो भगवान के भरोसे था, वह उसी नगर में भूखे प्यासे मर गया।
पहले व्यक्ति ने विश्वास भगवान पर किया। उसने अपनी अज्ञानता का परिचय दिया। जिस व्यक्ति ने उसे कहां कि साथ में भोजन एवं पानी रख लेना   पर उस व्यक्ति पर पहले व्यक्ति ने विश्वास नहीं किया इसी अज्ञानता ने उसका अंत किया।
यही अज्ञानता का भय उन्हें आस्तिक बनाता है, जब बच्चा परीक्षा की तैयारी स्वयं करे तो वह पास होता है, और यदि वह पढ़ाई न करें और भगवान से कहे मुझे पास कर दें तो यह नहीं हो सकता। यदि शरीर पर चोट लग जाये तो उसे ठीक डाॅक्टर करेगा। फरियाद करने पर भगवान ठीक करने आने वाला नहीं है। अमीर आदमी सुख सुविधाओं में रहने वाले व्यक्ति को भगवान की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन गरीब, असहाय, लाचार व्यक्ति का कोई नहीं होता है, इसीलिये वह भगवान की शरण लेता है, क्योंकि वह लाचारी से डरता है, गरीबी से अमीरी की ओर जाना चाहता है, वह कमजोर है तो ताकतवर बनना चाहता है, लेकिन कौन बनायेगा उसे। उसकी उम्मीद भगवान पर टिकती है, इसीलिये वह भगवान की शरण में जाता है, डरता है वह खुद पर विश्वास करने से, वह ऐसी जगह उम्मीद करता है तो उसे यह सब नहीं दे सकती। 
इसी भय से कारण वह आस्तिक बनता है, क्योंकि नास्तिक बनना बहादूरी का काम है, और आस्तिक बनना आसान है। नास्तिक लोग तर्क करते है, सही गलत की पहचान करते है, और कैसे सफल हो सकते है, इसकी सोच रखते है, लेकिन आस्तिकता ऐसी शक्ति पर विश्वास करने को बाध्य करती है, जो सब कुछ कर सकती है। लेकिन सच्चाई यह है कि जो भी व्यक्ति मन में सोचता है, जो अंसभव है, वह केवल सपने में पूरा हो सकता है और जो संभव है, उसे कठोर मेहनत करके प्राप्त किया जा सकता है, वह भी उस शक्ति पर भरोसा करके खो देता है। किसी भी प्रकार  का खोने का डर, अपनो से दूर होने का डर, बहुत कुछ करने पर न पाने का डर, पाकर भी खो जाने का डर। जिन्दगी है तो मरने का डर। प्यार है तो खोने का डर। सुख है तो दुःख आने का डर। न जाने ऐसे कितने डर है जो, उस शक्ति से फरियाद करते है कि कहीं ये सब न खो जाये। यहीं खोने का डर लोगो को आस्तिक बनाता है।
- सिद्धार्थ बागड़े

 





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