नारद जी के चिटकूले Siddharth Bagde tpsg2011@gmail.com Tuesday, April 30, 2019, 08:06 AM नारद जी के चिटकूले गणेश के पिताजी का देहान्त हुये एक माह का समय हो चुका रहता है, लेकिन गणेश पिताजी के देहान्त के पश्चात से ही दुःखी रहता है। सुमित उसे कई बार समझा चुका रहता है कि बार बार दुःख मनाना बेकार है। सुमित जब आज भी गणेश के यहां जाने लगता है तो रास्ते में एक नारद नामक आदमी मिलता है, वह सुमित से कहता है कि - श्रीमान जी, मैं आपसे मिलने आना चाहता था। सुमित - (वापस नारद के साथ अपने घर आकर) आईये श्रीमान जी ! आप मुझसे कुछ कहना चाहते है। नारद - जी! मुझे इस नगर में रहते हुये 15 वर्ष हो चुके हैं, मैं कभी कभी लोगो को मजेदार चूटकूले सुनाकर हंसाया करता था। सुमित - तो! आजकल चूटकूले सुनाना बंद कर दिया क्या ? नारद - नहीं! श्रीमान जी! क्या है कि जो लोग मेरे चूटकूले सुन चुके है वे लोग मुझे देखते ही हंसने लगते है, इसलिये चूटकूले नहीं सुना पाता। सुमित - अरे! ये तो अच्छी बात है कि अपने से कोई खुशी प्राप्त कर रहा है इसमें बुरा नही मानना चाहिये। नारद - सही बात कही श्रीमान जी! पर लोगो को मेरे हंसाने का मकसद तो मिलना चाहिये वे बेवजह हंसे तो दुःख तो होता है। सुमित - आपकी बात सही है! कल ही नगर के लोगो की मिटिंग लेता हूँ। आप एक काम करना आप एक ही चूटकूला वहां चार बार सुनाना फिर देखना मेरा कमाल। (अगले दिन शाम को नगर के सभी लोग एक खुले स्थान पर आ जाते हैं। गणेश को भी सुमित बुलाकर लाता है) (माइक पर सुमित कहता है) सभी नगरवासियो से - आज आपके सामने आपके ही नगर के नारद जी चूटकूला सुनायेगें। (नारद जी एक चूटकूला सुनाते है, सभी लोग पेट पकड़कर हंस पड़े) (नारद जी ने तब तक कुछ नहीं कहां जब तक सभी लोगों की हंसी पुरी तरह से रूकी नही) नारद जी ने फिर वही चूटकूला सुनाया - इस बार आधी पब्लिक को हंसी आई लेकिन जल्द ही शांत हो गये। नारद जी ने फिर वही चूटकूला सुनाया - इस बार थोडे ही लोग हंसे। फिर नारद जी ने वही चूटकूला सुनाया - मगर इस बार कोई नहीं हंसा। (बल्कि लोगो ने कहां एक ही चूटकूला सुनाओगे क्या) सुमित - माइक पर आकर - देखिये जिस प्रकार हम एक ही चूटकूला सुनकर बोर हो जाते है, उसी प्रकार एक ही बात का दुःख मनाकर हम बोर नहीं होते क्या ? (गणेश वहां खड़े यह बात सुन रहा था वह तत्काल सुमित के पास आया और उसे गले लगाया मैं समझ गया दोस्त।) सुमित - आप लोग भी यह बात समझ लिजिये कि किसी व्यक्ति पर हम रस्ते चलते हंसेगें तो ये उसका नही अपना खुद का अपमान होगा। यदि कोई व्यक्ति बार बार एक चूटकूला सुनाता है तो हम बोर हो जाते है, उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति पर हम बार बार हंसेगें तो वह भी बोर हो जायेगा। (सभी लोग वहां तालियां बजाते है) - सिद्धार्थ बागड़े Tags : again father month