बोधगया आंदोलन Siddharth Bagde tpsg2011@gmail.com Friday, June 20, 2025, 06:05 PM बोधगया आंदोलन - धम्म की पवित्र भूमि पर न्याय की शांतिपूर्ण पुकार बोधगया — यह नाम केवल एक स्थान भर नहीं है, बल्कि यह बौद्ध चेतना का मूल स्रोत है। यही वह भूमि है जहाँ आज से लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पूर्व एक युवा तपस्वी, सिद्धार्थ, पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हुए और गौतम बुद्ध के रूप में विश्व को ज्ञान का प्रकाश दिया। यह भूमि केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए आत्मबोध और करुणा का प्रतीक बन गई। आज वही पवित्र भूमि एक ऐसी स्थिति में पहुँच चुकी है, जहाँ धार्मिक अधिकारों, सांस्कृतिक स्वाभिमान और आत्मसम्मान की पुनःस्थापना के लिए बौद्ध अनुयायी शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं। बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर, जहाँ तथागत को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, आज यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित एक आध्यात्मिक केंद्र है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं, जिनमें भारत के साथ-साथ श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, तिब्बत, जापान और अन्य देशों के बौद्ध भी शामिल हैं। परंतु विडंबना यह है कि इस सबसे पवित्र बौद्ध स्थल का प्रशासनिक नियंत्रण बौद्धों के हाथ में न होकर, एक मिश्रित प्रबंधन समिति के अधीन है, जिसमें बौद्ध सदस्यों की संख्या अल्प है। यह व्यवस्था 1953 में बनाए गए ‘महाबोधि मंदिर प्रबंधन अधिनियम’ के तहत स्थापित की गई थी, लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था असंतुलन का प्रतीक बन गई है। बौद्ध समुदाय की वर्षों पुरानी यह माँग रही है कि महाबोधि मंदिर का सम्पूर्ण नियंत्रण बौद्ध संघों और भिक्षुओं के हाथ में हो, जैसा कि अन्य धार्मिक स्थलों में प्रचलित है। उदाहरणार्थ, हिन्दू मंदिरों का प्रबंधन हिन्दू संगठनों के पास, मुस्लिम मस्जिदों का नियंत्रण वक्फ बोर्ड के पास, और गुरुद्वारों का संचालन सिख संगठनों द्वारा किया जाता है। फिर केवल बौद्धों के सबसे पवित्र स्थल पर ही उनका सीमित नियंत्रण क्यों? इन्हीं गहन असमानताओं को लेकर आज बोधगया में बौद्ध भिक्षु, अनुयायी, और सामाजिक कार्यकर्ता शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होकर अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की मांग कर रहे हैं। यह आंदोलन न तो किसी धर्म के विरुद्ध है, न किसी व्यक्ति या समुदाय के। यह केवल उस नैतिक प्रश्न को उठा रहा है जो वर्षों से अनसुना होता रहा है: क्या बौद्धों को उनके सबसे पवित्र स्थल पर पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता मिलनी चाहिए या नहीं? भारत का संविधान — विशेषतः अनुच्छेद 25 से 28 — प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता, पूजा-पद्धति, और धार्मिक संस्थानों के संचालन का अधिकार देता है। इस संदर्भ में बौद्ध अनुयायियों की माँग केवल धर्म की भावना से नहीं, बल्कि संवैधानिक आधार पर भी पूरी तरह न्यायोचित है। भारत जैसे बहुलतावादी और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में यदि किसी समुदाय को अपने ही तीर्थ स्थल के संचालन से वंचित किया जाता है, तो यह न केवल उस समुदाय के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है, बल्कि देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। बोधगया आंदोलन की विशेषता यह है कि यह पूरी तरह शांतिपूर्ण, अहिंसक और संविधान सम्मत है। प्रदर्शनकारी नारेबाज़ी से अधिक संवाद चाहते हैं; विरोध से अधिक सहयोग की आकांक्षा रखते हैं। उनका आग्रह केवल इतना है कि उन्हें भी उसी प्रकार का अधिकार मिले जैसा अन्य धर्मों को उनके धार्मिक स्थलों पर प्राप्त है। यह आंदोलन हमें पुनः बुद्ध के उस उपदेश की याद दिलाता है — “अप्प दीपो भव” — स्वयं दीपक बनो। यही संदेश आज के बौद्ध अनुयायी अपने शांतिपूर्ण संघर्ष के माध्यम से समाज और सत्ता को देना चाहते हैं। विश्व के कोने-कोने से बौद्ध श्रद्धालु बोधगया आते हैं, पर वे वहाँ केवल दर्शक भर बनकर रह जाते हैं। स्थानीय भिक्षु, बौद्ध परिवार और मठ अपनी ही भूमि पर हाशिये पर धकेल दिए जाते हैं। यह केवल धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आत्मिक न्याय का विषय बन चुका है। यह आंदोलन हमें यह सोचने पर विवश करता है कि जब तक किसी समुदाय को उसके आत्म-संस्कारों के केंद्र पर अधिकार नहीं होगा, तब तक उसकी धार्मिक स्वतंत्रता अधूरी मानी जाएगी। आज आवश्यकता है कि सरकार इस आंदोलन की गंभीरता को समझे, बौद्ध प्रतिनिधियों से संवाद करे, और इस मुद्दे का स्थायी समाधान निकाले। केवल कानूनी तर्क या ऐतिहासिक व्यवस्थाओं के आधार पर आज के आत्म-सम्मान के प्रश्न को नहीं टाला जा सकता। यह केवल बौद्ध अनुयायियों का संघर्ष नहीं, बल्कि भारत की धार्मिक समरसता और नैतिक विवेक की भी परीक्षा है। इसलिए हम सभी से यह अपेक्षा की जाती है कि इस आंदोलन को किसी धर्म-आधारित टकराव के रूप में नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण मांग के शांतिपूर्ण आह्वान के रूप में देखा जाए — जहाँ धर्म का, आस्था का और भारतीय संवैधानिक मूल्यों का सामंजस्य हो। Tags : UNESCO World Heritage Site enlightenment Tathagata Bodh Gaya The Mahabodhi Temple