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विमान हादसे में गीता की सुरक्षित

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Friday, June 20, 2025, 05:07 PM
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विमान हादसे में “गीता” की सुरक्षित प्रति: एक चमत्कार या संयोग?

12 जून 2025 का दिन भारतीय जनमानस के लिए एक गहरी वेदना लेकर आया। एक अंतरराष्ट्रीय विमान दुर्घटना में 275 लोगों की असमय मृत्यु ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया। जलता हुआ मलबा, उजड़े परिवार, और अनुत्तरित प्रश्न — सब कुछ जैसे एक साथ टूट पड़ा हो। लेकिन इसी भयावहता के बीच एक ऐसी खबर आई जिसने लोगों की आंखों में आस्था की एक नई ज्योति जगाई — मलबे में “भगवतगीता” की एक प्रति पूरी तरह सुरक्षित मिली।

इस एक तथ्य ने कई सवाल खड़े किए। क्या यह कोई चमत्कार है? क्या यह कोई दिव्य संकेत है? या फिर केवल एक संयोग? क्या यह ईश्वर की ओर से कोई संदेश है? और यदि हाँ, तो किसके लिए?

धार्मिक भावना: विश्वास की अडिग आशा

भारतीय संस्कृति में धार्मिक ग्रंथों का स्थान अत्यंत पवित्र और ऊँचा है। “भगवद्गीता”, केवल एक धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन, एक नैतिक मार्गदर्शन, और एक आध्यात्मिक संबल मानी जाती है। जब किसी भयंकर आपदा में गीता जैसी पुस्तक जलने से बच जाती है, तो कई लोग इसे ईश्वर की कृपा मानते हैं। यह उनके लिए संकेत होता है कि धर्म और सत्य भले संकट में हों, पर वे अजेय हैं। इस घटना ने लाखों लोगों की आस्था को और भी दृढ़ किया। उन्होंने कहा — "यह गीता का संदेश है कि आत्मा अजर-अमर है", "ईश्वर स्वयं यह दिखा रहे हैं कि वह सब देख रहे हैं"। हम इन भावनाओं का आदर करते हैं। यह मानवीय आस्था का हिस्सा है, जो विपत्तियों में भी प्रकाश की आशा देखता है।

वैज्ञानिक सोच: संयोग की वास्तविकता

परंतु विज्ञान की दृष्टि से यदि इस घटना का मूल्यांकन करें, तो यह “चमत्कार” न होकर एक संभाव्य भौतिक प्रक्रिया प्रतीत होती है। किसी वस्तु का आग से बच जाना इस बात पर निर्भर करता है कि: वह किस सामग्री से बनी थी? वह किस स्थान पर रखी थी — खुले में, किसी बॉक्स में, किसी घनी वस्तु के बीच? आग की दिशा, तापमान और समय की मात्रा कितनी थी?

ऐसी घटनाओं में अक्सर धातु, रबर, मोटे प्लास्टिक या मोटी किताबें कई बार बच जाती हैं। इससे पहले भी दुर्घटनाओं में कुरान, बाइबिल, या अन्य वस्तुएँ सुरक्षित मिली हैं। इसलिए यह मान लेना कि केवल गीता का बचना कोई ईश्वरीय संदेश है — एकपक्षीय दृष्टिकोण होगा। विज्ञान केवल तथ्यों पर चलता है — और इस दृष्टिकोण से देखें तो यह घटना असामान्य जरूर है, लेकिन अलौकिक नहीं।

एक गम्भीर प्रश्न: धर्मग्रंथ का बचना या मनुष्यों की जान?

यहाँ एक अत्यंत महत्वपूर्ण विचार उठाना आवश्यक है — क्या गीता की सुरक्षित प्रति का बच जाना इतना बड़ा चमत्कार है, जब 275 जानें चली गईं?

हम यह बात पूरी संवेदनशीलता और सम्मान के साथ कहते हैं — हम गीता की महत्ता और उसमें आस्था रखने वालों की भावनाओं का पूर्ण सम्मान करते हैं। किंतु यदि कोई अदृश्य शक्ति किसी वस्तु को बचा सकती है, तो क्या वह मानव जीवन को बचाना अधिक महत्वपूर्ण नहीं मानती?

क्या वह गीता जो स्वयं “अहिंसा, करुणा, और धर्म की रक्षा” का उपदेश देती है, वह केवल स्वयं को ही सुरक्षित रखने का उदाहरण बन जाए?

क्या यह प्रश्न नहीं उठना चाहिए कि —

“यदि गीता स्वयं जल जाती, लेकिन 275 जानें बच जातीं — तो क्या वह अधिक धर्मसंगत कार्य न होता?”

यह सोच किसी धर्म के विरोध में नहीं, बल्कि मानव जीवन प्रमुखता के लिये प्रश्न रखा गया है।





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