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समग्र फर्जीवाड़ा

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Friday, June 20, 2025, 05:45 PM
ID

समग्र फर्जीवाड़ा

समग्र ID, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक नागरिक को दी जाने वाली एक यूनिक पहचान संख्या है, जिससे वह कई सामाजिक योजनाओं का लाभ ले सके। इसमें: राशन कार्ड, छात्रवृत्ति, वृद्धावस्था पेंशन, संबल योजना, नि:शुल्क इलाज, अन्य सरकारी सहायता शामिल होती हैं।

क्या है समग्र पोर्टल?

"समग्र सामाजिक सुरक्षा मिशन" (Samagra Samajik Suraksha Mission) केवल मध्यप्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2010 के बाद लागू किया गया। इसका उद्देश्य था सभी नागरिकों का डिजिटल सामाजिक प्रोफाइल बनाना, योजनाओं में पारदर्शिता लाना, लाभार्थियों की एकीकृत पहचान (Samagra ID) तय करना।

जैसा कि दैनिक भास्कर में बताया गया :

‘‘हज़ारों ऐसे लोगों के नाम समग्र पोर्टल पर दर्ज हैं जो वास्तव में मौजूद ही नहीं हैं या जिनके मृत्यु के बाद भी योजनाओं का लाभ लिया गया। कुछ लोगों ने एक से ज़्यादा समग्र ID बनवाकर योजनाओं का दोहरे लाभ लिया। फर्जी आधार कार्ड, राशन कार्ड, या जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग कर समग्र ID जनरेट करवाई गई। अफसरों की मिलीभगत से यह संभव हुआ।’’

भोपाल सहित विदिशा, सीहोर, रायसेन, ग्वालियर, इंदौर में फर्जी ID पाए गए। सरकारी अधिकारियों ने खुद जांच में माना कि बड़ी संख्या में फर्जी हितग्राही योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। कुछ जिलों में FIR दर्ज की गई है। पंचायत सचिव, लोकसेवकों और कम्प्यूटर ऑपरेटरों की भूमिका संदिग्ध मानी गई है। लाखों रुपये के गबन की आशंका जताई गई है।

मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में समग्र ID के माध्यम से जिन प्रमुख सरकारी योजनाओं में फर्जीवाड़ा (घोटाला) हुआ है, वे निम्नलिखित हैं:

1. संबल योजना (मुख्यमंत्री जनकल्याण योजना)

• लाभ: ग़रीब श्रमिकों को मातृत्व सहायता, मृत्यु पर अनुग्रह राशि, मुफ्त इलाज, बच्चों को छात्रवृत्ति आदि।

• फर्जीवाड़ा कैसे हुआ:

o फर्जी समग्र ID बनाकर ऐसे लोगों को मजदूर दिखाया गया जो वास्तव में श्रमिक नहीं थे।

o मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाकर मृतक हितग्राही के नाम पर लाखों का क्लेम लिया गया।

🍚 2. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) – राशन कार्ड योजना

• लाभ: बीपीएल और अंत्योदय कार्ड धारकों को सस्ते दाम पर राशन।

• फर्जीवाड़ा कैसे हुआ:

o एक ही व्यक्ति की दो-तीन समग्र ID बनाकर अतिरिक्त राशन कार्ड जारी करवा लिए गए।

o फर्जी नामों से बने राशन कार्ड पर वर्षों तक राशन उठाया गया।

3. छात्रवृत्ति योजनाएं (SC/ST/OBC छात्रों के लिए)

• लाभ: स्कूल-कॉलेज छात्रों को फीस और छात्रवृत्ति।

• फर्जीवाड़ा कैसे हुआ:

o फर्जी छात्र समग्र ID बनवाकर प्राइवेट संस्थानों के माध्यम से छात्रवृत्ति क्लेम की गई।

o एक ही छात्र को अलग-अलग संस्थानों से बार-बार लाभ दिलवाया गया।

4. सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाएं

• लाभ: वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन आदि।

• फर्जीवाड़ा कैसे हुआ:

o मृत लोगों की समग्र ID को चालू रखकर पेंशन निकाली जाती रही।

o अपात्र व्यक्ति भी वृद्ध या विकलांग बनकर पेंशन ले रहे थे।

5. आयुष्मान भारत/मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना

• लाभ: गरीब परिवारों को मुफ्त इलाज।

• फर्जीवाड़ा कैसे हुआ:

o फर्जी समग्र ID से बीमा कार्ड बनवाए गए, अस्पतालों से इलाज के नाम पर क्लेम निकाले गए।

6. पीएम आवास योजना (ग्रामीण एवं शहरी)

• लाभ: गरीबों को पक्का घर बनाने के लिए सरकारी सहायता।

• फर्जीवाड़ा कैसे हुआ:

o ऐसे लोग भी लाभार्थी दिखाए गए जिनके पास पहले से घर था।

o फर्जी ID से डुप्लिकेट भुगतान लिया गया।

7. नल-जल योजना, उज्ज्वला योजना जैसे अन्य लाभ

• कुछ मामलों में समग्र ID का उपयोग कर लाभार्थियों की झूठी सूची बनाकर सामग्री और राशि हड़पी गई।

इन जिलों में समग्र फर्जीवाड़ा सामने आया है:

विदिशा - मृत व्यक्तियों के नाम पर बनी समग्र ID से वृद्धावस्था और संबल योजना का लाभ लिया गया। एक ही व्यक्ति की दो-दो समग्र ID पाए गए। रायसेन - एक ही परिवार के सदस्य दो अलग-अलग ग्राम पंचायतों में दर्ज। राशन और छात्रवृत्ति योजनाओं में दोहरा लाभ लिया गया। सीहोर - समग्र ID बनवाने में पंचायत सचिवों और लोकसेवकों की मिलीभगत। अपात्र लोगों को लाभ दिलाया गया। ग्वालियर - छात्रवृत्ति योजनाओं में भारी गड़बड़ी। फर्जी नाम और आधार कार्ड से समग्र ID जनरेट कर लाखों का घोटाला। इंदौर - शहरी क्षेत्रों में "फर्जी श्रमिक" बनाकर संबल योजना और आयुष्मान कार्ड का लाभ लिया गया। बड़ी संख्या में डुप्लिकेट समग्र ID। सागर - पंचायत स्तर पर बनाई गई फर्जी लाभार्थी सूची। बीपीएल और राशन योजनाओं में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा। बालाघाट, दमोह, शिवपुरी, छिंदवाड़ा, नीमच और कटनी इन जिलों में प्रारंभिक जांच में कई संदिग्ध समग्र ID सामने आए हैं। मुख्य फोकस: छात्रवृत्ति, पेंशन और संबल योजनाओं में अनियमितता।

मध्यप्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में "समग्र फर्जीवाड़ा"

"समग्र पोर्टल" (Samagra Portal) जैसी प्रणाली विशेष रूप से मध्यप्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई है। इसलिए “समग्र ID” फर्जीवाड़ा की घटनाएँ केवल मध्यप्रदेश में ही सामने आई हैं – अन्य राज्यों में नहीं, क्योंकि वहाँ यह प्रणाली अस्तित्व में ही नहीं है।

भारत जैसे विशाल और विविधता-सम्पन्न देश में जनकल्याणकारी योजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वे अंतिम पंक्ति के नागरिक तक कितनी ईमानदारी से पहुँचती हैं। प्रशासन की इसी चुनौती को स्वीकार करते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2010 के बाद एक अभिनव प्रयोग किया—समग्र सामाजिक सुरक्षा मिशन, जिसे लोकप्रिय रूप में "समग्र आईडी" प्रणाली के नाम से जाना गया।

इस प्रणाली का उद्देश्य था हर व्यक्ति और परिवार को एक विशिष्ट पहचान देना, जिससे उन्हें मिलने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ पारदर्शिता और कुशलता से सीधे उनके खाते तक पहुँचाया जा सके। यह विचार जितना सरल और उपयोगी था, उतना ही शक्तिशाली और परिवर्तनकारी भी। एक ऐसा डिजिटल मंच, जो योजनाओं की भीड़ को एक सूत्र में बाँध सके।

शुरुआत में इस योजना ने प्रभावी परिणाम दिखाए। समग्र आईडी के माध्यम से पेंशन, छात्रवृत्ति, राशन वितरण, आवास योजनाएँ, विवाह अनुदान, आदि का लाभ वास्तविक पात्रों तक अपेक्षाकृत सुगमता से पहुँचने लगा। "डुप्लीकेट लाभार्थी" की समस्या पर अंकुश लगने लगा और सरकार को बजट प्रबंधन में राहत मिलने लगी।

किन्तु, समय बीतने के साथ ही जब इसकी निगरानी में ढिलाई आई, तो यह प्रणाली अपने उद्देश्य से भटकने लगी। एक तकनीकी क्रांति जो कल्याण का माध्यम बनी थी, धीरे-धीरे भ्रष्टाचार का साधन बन गई। स्थानीय स्तर पर कुछ अधिकारियों और बिचौलियों ने मिलकर फर्जी समग्र आईडी बनवाना शुरू कर दिया। इन फर्जी पहचानों के जरिये छात्रवृत्ति, वृद्धा पेंशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, और खाद्यान्न वितरण योजनाओं में करोड़ों रुपये का दुरुपयोग होने लगा।

जांच में यह भी पाया गया कि एक ही व्यक्ति ने अलग-अलग नामों से कई समग्र आईडी बनवा रखी थीं। कहीं-कहीं मृत लोगों की आईडी भी सक्रिय अवस्था में थीं और उनसे सरकारी लाभ लिया जा रहा था। अफसोस की बात यह है कि यह गड़बड़ी केवल भोपाल तक सीमित नहीं रही, बल्कि धीरे-धीरे अन्य जिलों में भी इसकी परछाइयाँ दिखने लगीं।

समग्र प्रणाली का भ्रष्टाचार में बदलना केवल आर्थिक नुकसान नहीं है, यह नैतिक पतन का भी संकेत है। जब सरकार किसी गरीब परिवार को वृद्धा पेंशन देना चाहती है, लेकिन वह राशि किसी फर्जी लाभार्थी के खाते में चली जाती है, तो यह केवल घोटाला नहीं बल्कि उस व्यवस्था की असफलता है जो "सबका साथ, सबका विकास" का दावा करती है।

मध्यप्रदेश सरकार ने इस संकट को भांपते हुए कई सुधारात्मक कदम भी उठाए हैं। आधार लिंकिंग, बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन, और समग्र डेटा का पुनः सत्यापन जैसी प्रक्रियाएँ शुरू की गई हैं। कई स्थानों पर दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई भी हुई है।

किन्तु यह प्रश्न अब भी मौजू है—क्या हम भविष्य में ऐसी तकनीकी प्रणालियों को केवल एक प्रयोगशाला बनाकर छोड़ देंगे, या इन्हें संवेदनशीलता, जिम्मेदारी और पारदर्शिता के साथ संचालित करना सीखेंगे?

समग्र मॉडल की अवधारणा में कोई दोष नहीं है। यह एक श्रेष्ठ विचार था, जिसकी जड़ें लोक-कल्याण में थीं। दोष उन हाथों में था, जिन्होंने इसे स्वार्थ और सत्ता के लिए मोड़ दिया। अतः यह आवश्यक है कि हम तकनीक पर भरोसा तो रखें, पर निगरानी और नैतिक उत्तरदायित्व को कभी शिथिल न होने दें।

आज, जब भारत डिजिटल युग की ओर तीव्र गति से बढ़ रहा है, तो मध्यप्रदेश के समग्र मॉडल की यह सीख हमें सतर्क करती है कि प्रणालियाँ महान हो सकती हैं, लेकिन यदि उनका संचालन ईमानदारी से न किया जाए, तो वे अपने ही मूल उद्देश्य के विरुद्ध कार्य करने लगती हैं।

हमें केवल नई योजनाएँ बनाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें सजगता, संवेदनशीलता और नैतिक अनुशासन के साथ क्रियान्वित करने की आवश्यकता है—तभी "समग्र विकास" सचमुच "जन-समग्र कल्याण" बन पाएगा।

नोट: यह लेख विभिन्न सार्वजनिक स्रोतों, जैसे दैनिक भास्कर, नवदुनिया, अन्य समाचार पत्र-पत्रिकाओं एवं सरकारी संवादों में प्रकाशित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें प्रयुक्त तथ्यों, आंकड़ों और घटनाओं का संकलन शोध एवं सार्वजनिक संचार के उद्देश्यों हेतु किया गया है। यदि किसी तथ्य में असावधानी रह गई हो, तो वह अनजाने में हुई त्रुटि मानी जाए।





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