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लवाल ने संपत्ति शत्रु देश के नाम की 

Sumedh Ramteke

Friday, May 3, 2019, 04:33 PM
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लवाल ने संपत्ति शत्रु देश के नाम की 
आस्ट्रिया और ब्रेसिया के मध्य युद्ध चल रहा था। ब्रेसिया की सेना आस्ट्रिया के समक्ष कमजोर पड़ती जा रही थी। आस्ट्रिया का सेनापति जनरल लवाल आयरलैंड का नागरिक था और बहुत नीति कुशल था। ब्रेसिया की मंत्री परिषद की बैठक इस संकटकाल में बुलाई गई। एक ने कहा- आस्ट्रिया की सेना बहुत ताकतवर है। दूसरा शख्स जिसका नाम टीटो स्पेरी था, बोला - हम भी आसानी से हार नहीं मानेंगे। मंत्री परिषद में मौजूद बुजुर्गो में से एक ने स्पेरी को समझाते हुए कहा- तुम्हारा साहस प्रणम्य है, किंतु आवेश में ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते। फिलहाल हमें युद्धविराम संधि की बात करनी होगी। किंतु अनुभवी लोगों की बात मानकर सफेद झंडा उठा दिया गया और बातचीत के लिए एक शिष्ट मंडल शत्रु सेनापति लवाल के पास पहुंचा। स्पेरी भी उसमें था। यह सब करना उसे अपनी हार जैसा प्रतीत हो रहा था। तब लवाल ने चिढ़कर कहा- हम नगर में प्रवेश अवश्य ही करेंगे। स्पेरी ने भी आवेश में पूछा - कैसे? लवाल ने कहा - शक्ति या मित्रता के द्वारा। स्पेरी बोला - मित्रता से तो यह संभव नहीं होगा। उसके ऐसा कहते ही संधि वार्ता भंग हो गई और युद्ध पुनः शुरू हो गया। इस बार ब्रेसिया के सैनिक जान की बाजी लगाकर लड़े। उन्होंने आस्ट्रिया की सेना के छक्के छुड़ा दिए। अंततः ब्रेसिया की जीत हुई और लवाल मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसने मरते समय ब्रेसिया के साहस को सलाम करते हुए यह वसीयत की - मैं अपनी सारी संपत्ति ब्रेसिया के नागरिकों को भेंट करता हूं। वे साहस और आत्मसमर्पण की मिसाल हैं। कथा का निहितार्थ यह है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए ऐसा जुनून आवश्यक है।
- सुमेध रामटेके

 





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