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ज्ञानयोग प्राप्ति का रहस्य

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Monday, April 22, 2019, 08:25 PM
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ज्ञानयोग प्राप्ति का रहस्य
ब्रम्हदेश के राजा थिबा महान ज्ञानयोगी थे। एक बार एक अहंकारी भिक्षुक उनके पास आया और बोला, राजन मै अनेक वर्षो से अखण्ड जप और ध्यान करता आ रहा हॅू, किंतु आज तक मुझे ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई, जबकि आपको राजवैभव में लिप्त होने के बावजूद ज्ञानयोग की प्राप्ति हुई है। इसका क्या कारण है?
थिबा बोले, भिक्षुक, तुम्हारे प्रश्न का उत्तर उचित समय पर दूंगा। मै तुम्हारे प्रश्न से प्रसन्न हॅू। यह दीपक लेकर तुम मेरे अंतःपुर में निस्संकोच प्रवेश करो और अपनी मनचाही चीज प्राप्त करो। तुम्हारे लिए कोई रोक-टोक नहीं है, किंतु ध्यान रहे, यह दीपक बुझने न पाए अन्यथा तुम्हें पाप का फल भोगना होगा।
वह भिक्षुक राजा के अंतःपुर में समीप ही रखा दीपक लेकर गया और कुछ ही क्षणों के उपरांत राजा के पास लौट आया। थिबा ने उससे पूछा, कहो बंधु, तुम्हें मेरे अंतःपुर में आनंद प्राप्त हुआ ? खाद्य-पकवान, मदिरा, रमणियां- ये सारी चीजें तो तुम्हें सुलभता से प्राप्त हुई होगी?
भिक्षुक ने कहा, राजन मेरा अहोभाग्य जो आपने मेरे लिए राज-वैभव के सारे द्वार खुले रख छोडे़ थे, किंतु खाद्यान्न, मदिरा, नृत्य, संगीत इन सारी चीजों का स्वाद लेने के बावजूद भी मेरे मन की तृप्ति न हुई, क्योंकि मेरा सारा ध्यान आपके द्वारा दिए हुए दीपक की ओर था। मन में सदैव यही आशंका रहती थी कि कहीं यह दीपक बुझ न जाए। इस पर राजा ने कहा, बस, यही कारण है बंधु, कि प्रत्येक को ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। 
सुखोपभोग के साथ-साथ यदि आत्मिक उन्नति पर हम ध्यान देते रहें, तो निस्संदेह ज्ञान की प्राप्ति होगी। मेरे ज्ञानयोग का यही रहस्य है।
- संग्रहक - निलेश वैद्य

 





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