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बालक की बुद्धिमत्ता

Sumedh Ramteke

Saturday, May 4, 2019, 08:31 AM
Lao

बालक की बुद्धिमत्ता
    किसी नगर में रहने वाला एक धनिक लम्बी तीर्थयात्रा पर जा रहा था। उसने नगर के सभी लोगों को यात्रा की पूर्वरात्रि में भोजन पर आमंत्रित किया। सैंकडों लोग खाने पर आए। मेहमानों को मछली और मेमनों का मांस परोसा गया। भोज की समाप्ति पर धनिक सभी लोगों को विदाई भाषण देने के लिए खड़ा हुआ। अन्य बातों के साथ-साथ उसने यह भी कहा - ‘प्रकृति कितना दयालु है कि उसने मनुष्यों के खाने के लिए स्वादिष्ट मछलियां और पशुओं को जन्म दिया है।’ सभी उपस्थितों ने धनिक की बात में हामी भरी।
    भोज में एक बारह साल का लड़का भी था। उसने कहा - ‘आप गलत कह रहे हैं।‘ लड़की की बात सुनकर धनिक आश्चर्यचकित हुआ। वह बोला - ‘तुम क्या कहना चाहते हो?’ लड़का बोला - ‘मछलियां और मेमने एवं पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतु मनुष्यों की तरह पैदा होते हैं और मनुष्यों की तरह उनकी मृत्यु होती है। कोई भी प्राणी किसी अन्य प्राणी से अधिक श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण नहीं है। सभी प्राणियों में बस यही अन्तर है कि अधिक शक्तिशाली और बुद्धिमान प्राणियों को खा सकते हैं। यह कहना गलत है कि ईश्वर ने मछलियों और मेमनों को हमारे लाभ के लिए बनाया है, बात सिर्फ इतनी है कि हम इतने ताकतवर और चालक हैं कि उन्हें पकड़ कर मार सके। मच्छर और पिस्सू हमारा खून पीते हैं तथा शेर और भेड़िये हमार शिकार कर सकते हैं, तो क्या ईश्वर ने हमें उनके लाभ के लिए बनाया है?’
    दार्शनिक च्वांग-त्जु भी वहां पर मेहमानों के बीच में बैठा हुआ था। वह उठा और उसने लड़के की बात पर ताली बजाई। उसने कहा - ‘इस एक बालक में बहुत ज्ञान है।’
- सुमेध रामटेके

 





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