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राजा के जीवन की दिशा बदल गई

Sumedh Ramteke

Friday, May 3, 2019, 04:39 PM
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राजा के जीवन की दिशा बदल गई
किसी राज्य में एक महिला संत थीं गौरीबाई। वे गांव के एक मंदिर में रहती थीं। उनका जीवन-लक्ष्य था - जनहित के काम करना। लोग उनके पास अपने दुख-दर्द लेकर आते और वे उनकी भरपूर मदद कर उन्हें सुखी बनाती थी। धीरे-धीरे उनकी ख्याति राजा तब भी पहुंची राजा ने उनसे मिलने का विचार किया। गौरीबाई को भेंट करने के लिए राजा ने उनसे मिलने का विचार किया। गौरीबाई को भेंट करने के लिए राजा ने पचास हजार स्वर्ण-मुद्राएं साथ में रखीं और उनके पास पहुंचा। गौरीबाई की सीधी-सरल बातों और उच्च कोटि की भावना देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बड़े आदर से संत से आग्रह किया- ‘माई! मैं आपके लिए यह तुच्छ भेंट लाया हूं। आप स्वीकार करेंगी, तो बड़ी कृपा होगी।’ गौरीबाई तो भौतिकता से कोसों दूर थीं, अतः उन्होंने स्वर्ण-मुद्राएं लेने से इंकार कर दिया। राजा ने अधिक आग्रह किया, तो उन्होंने वहीं मौजूद अपने कुछ भक्तों से वे मुद्राएं गरीबों में बांट देने को कहा। राजा आश्चर्यचकित होकर बोला- ‘ये मुद्राएं मैं आपकी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए लाया हूं। इन पर आपका अधिकार है।’ संत गौरीबाई ने उत्तर दिया- ‘राजन! मैं इन ग्रामवासियों का ध्यान रखती हूं और बदले में ये मेरा ख्याल रखते हैं। फिर भला बताइए कि इन हजारों ग्रामवासियों के रहते मेरी कौन-सी आवश्यकता होगी, जो पूर्ण न होती होगी? इन मुद्राओं पर मेरा अधिकार है, किंतु मुझ पर ग्रामवासियों का अधिकार है। इस नाते मुद्राएं सभी की हैं। आप चिंता न करें, आपकी मुद्राएं सही स्थान पर जा रही हैं।’ संत की बातों से प्रभावित हो राजा ने उसी दिन से निर्धनों की मदद का संकल्प ले लिया। सार यह है कि दान वही सार्थक होता है, जो अधिकाधिक लोगों के हित में हो। अतः जनकल्याणार्थ किया गया दान ही श्रेष्ठ होता है। 
- सुमेध रामटेके

 





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