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घृणा पर करुणा की विजय

Sumedh Ramteke

Friday, May 3, 2019, 04:20 PM
German infantry

घृणा पर करुणा की विजय
द्वितीय विश्व युद्ध की बात है। जर्मनी ने बेल्जियम को पराजित कर दिया था। इसके बाद जर्मन सैनिकों ने बेल्जियम के सैनिकों के साथ अत्यंत क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया। यह सब देखकर बेल्जियम के लोगों में जर्मनों के प्रति घोर घृणा का भाव आ गया। बेल्जियम की प्रसिद्ध समाजसेविका श्रीमती माग्दा यूरस भी इनर लोगों में से एक थीं। वे युद्ध की प्रबल विरोधी और शांति की समर्थक थीं। अपने देशवासियों पर जर्मनों के अत्याचार देखकर वे बहुत दुःखी होती थीं। घायल सैनिकों के लिए वे यथाशक्ति मदद पहुंचाती थीं। एक दिन उन्होंने एक घायल जर्मन सैनिक को देखा। श्रीमती यूरस को उस पर दया आई, किंतु वे यह सोचते हुए आगे बढ़ गई - ‘यह नाजी है। इसे ऐसे ही मरना चाहिए।’ श्रीमती यूरस आगे तो बढ़ गई, किंतु उनका मन उस घायल सिपाही में अटक गया। उन्हें ऐंसा लगा मानो उनका मन उन्हें धिक्कार रहा है। उस घायल मनुष्य की मदद इंसानियत की दृष्टि से करनी चाहिए। तभी उस घायल सिपाही का आर्त स्वर फिर उनके कानों से टकराया। अंततः करुणा ने घृणा पर विजय प्राप्त कर ली। वे उस सैनिक के पास लौटी और वहीं बैठकर उसे देखने लगीं कि उसे कैसी मदद की आवष्यकता है? जर्मन सैनिक उनकी सहानुभूति देखकर चकित हो उठा। वह बोला- ‘आप यहां? मेरे पास?’ उन्होंने उसका सिर स्नेह से सहलाते हुए कहा- मैं तुम्हें अभी अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करती हूं। तब तक आओ, जरा तुम्हें पट्टी बांध दूं।’ यह कहते हुए श्रीमती यूरस उसके उपचार में लग गई। पीड़ित मानवता की सेवा के लिए मित्र-शत्रु, अपना-पराया, जाति-विजातीय का भेद नहीं करना चाहिए। समदृष्टि रखने वाला ही सच्चा समाजसेवक होता है। 
- सुमेध रामटेके





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