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आदिवासी पहचान

Narendra Shende
narendra.895@rediffmail.com
Thursday, October 3, 2019, 09:23 AM
tribals

साल 2020 अनुसूचित जनजाति वर्गों के लिए काल बनने जा रहा है। समान नागरिक संहिता में विशेष दर्जा प्राप्त आदिवासी अपनी पहचान खो देगा। 26 नवंबर 2019 से यह प्रक्रिया आरंभ हो रही है। 1927 का वन कानून संशोधन 2019 का प्रारूप तैयार है जो आदिवासियों के तमाम संवैधानिक अधिकार छीन लेगा। गेंद केंद्र सरकार ने सुप्रीमकोर्ट के पाले मे डाल दी है, जिसका निर्णय 26 नवंबर तक हो जाना है। इससे आपके जल, जंगल और जमीन पर से सारे अधिकार सरकार के हाथों वन और राजस्व मंत्रालय के हाथों में आ जाएंगे।

सोचने वाली बात ये है कि वनाधिकार पर जो अंतिम सुनवाई 12 सितंबर को होनी थी, वह अब 26 नवंबर को हो रही है, जानते हैं क्यों क्योंकि सुप्रीम कोठे से आदिवासियों के विरुद्ध निर्णय होने वाला है। चूंकि झारखंड और महाराष्ट्र जहां आदिवासी वोट निर्णायक हैं तो यहां पर होने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी नाराज न हो, यही कारण है कि चुनाव के बाद 26 नवंबर को निर्णय देने का फैसला किया गया है। अंत मे भाजपा द्वारा सरकार बनाकर देशभर में आदिवासियों की वन भूमि को अपने हाथ में लेकर कॉरपोरेट सेक्टर में ब्राह्मण, बनियों को बेच दिया जाएगा। 

बाद में आंदोलन करने का कोई मतलब नहीं होगा। सरकार सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले का वास्ता देकर विरोध करने वालों को कानून का सम्मान नहीं करने के लिए देशद्रोही या नक्सलवादी करार देकर गोदी मीडिया के माध्यम से सारे देश की मानसिकता में आपके विरुद्ध जहर घोल देगी। तब आपके समाज के गधे लोग भी कहेंगे कि आदिवासियों की मांग गलत है। इनको विशेष अधिकार क्यों ? 5वी और 6वी अनुसूची क्यों ? आदिवासी क्षेत्र के जिलों में ज्यादा आरक्षण क्यों आदि आदि। इस तरह आप विलेन बना दिये जायेंगे।

वक़्त बेहद नाजुक है। 26 नवम्बर से पहले जितना दबाव शासन, प्रशासन, सुप्रीकोर्ट पर बना सकते हैं बनाने का प्रयास करें। जगह-जगह धरना प्रदर्शन, आंदोलन की तैयारी करें। इसी कड़ी में मध्यप्रदेश में भी जनांदोलन की तैयारी की जा रही है। आप सभी मिलकर इस मुहिम को ताकत दें और आदिवासी भाइयों का अस्तित्व बचाने में मदद करें। याद रखना मेरे OBC SC भाइयों, आज यदि आप आदिवासियों के पक्ष में न खड़े हुए तो भविष्य में आप अपने लिए भी कोई आंदोलन करने लायक नही छोड़े जाओगे।

Pravindra Singh





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