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आदित्य का स्वयं शरीर को नाश करने का मामला

Nilesh Vaidh
nileshvaidh149@gmail.com
Thursday, April 4, 2019, 07:03 AM
aatmhatya

बच्चों का मन बहुत कोमल होता हैं। मनोविज्ञान विशेषज्ञों का कहना हैं, अच्छे नम्बरों का प्रेशर, रिजल्ट खराब होने, क्लास में फिसड्डी होने का टैंग, पिता की समझाने के बजाय, अपमान कारक, डाट, आदी बच्चो के कोमल मन के लिए सही नहीं है। 
यदि यह सच हैं, दैनिक भास्कर खबर के अनुसार, डा.महेन्द्र सिंह आदित्य के पिता, के कहेनुसार, - डीपीएस स्कूल में आदित्य के अंक सार्वजनिक रुप से सभी बच्चों के सामने बताये गए थे।
यदि यह सच हैं, तो कार्य कारण का सिध्दांत हैं। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती हैं। स्कूल के अपमान कारक क्रिया के फलस्वरूप, आदित्य ने, सार्वजनिक रुप से दोस्तों से कहना शुरू किया की, वह आत्महत्या करेगा। क्योंकि आंतरिक रुप से वह, यह बात सहन नहीं कर पाया। क्योंकि, ईण्डियन आयडल में, 2011 में, वह टाप 50 में पहुंच चुका था। सार्वजनिक रुप से उसका सन्मान था।
किन्तु मेरीट में आने की होड, स्कूल को नाम की चिंता, यह बच्चों का भविष्य तो दुर जिन्दगी तक खत्म कर रही हैं।
भोपाल पर मैने पहले भी लिखा था कि आत्महत्या के लिए भोपाल, भारत में प्रथम नम्बर पर आ चुका हैं। औसतन तीन लोग प्रतिदिन, खुद खुशी कर रहे है। यह शांत शहर के लिए, अशांति का संकेत हैं।
यहाँ लोग ऊपरी तौर पर शांति का दिखावा कर रहे है, लेकिन आतंरिक रुप से बाकी शहरों की तुलना में पीडित हैं। स्कूल, कालेज, शासकीय संस्था, सामाजिक संस्था, समाज में, विभिन्न, मनोविकार के निराकरण पर, कार्य क्रमो को, और जागृति को, फैलाने की जरुरत हैं।
हम भुल जाते है या जानकारी नहीं होती। थामस एडीसन अल्वा की, मां ने उसे स्कूल से इसलिए निकाला की स्कूल की टीचर बच्चे को मानसिक प्रताड़ित कर रही थी। घर में उनके मां ने खुद पढाई करवाई, उनकी काबिलियत देख उसे रसायन विज्ञान में, पढाई करवाई। सचिन मैट्रीक फेल कई बार हुए। परन्तु क्रिकेट में काबिलियत देख उन्हें, वह शिक्षा के लिए माता पिता गुरुओ ने प्रोत्साहित किया। किशोर कुमार, लता मंगेशकर की डिग्री कितने लोग पुछते हैं।
मेरा कहने का अर्थ यह नहीं की बच्चे अच्छी पढाई ना करे। मैं यह कहना चाह रहा हूँ, कि बच्चे की, रुचि देखें की यह कौन से क्षेत्रों में रुचि रखता है, फिर उसका मार्ग दर्शन करे। वही पढाई करवाने की कोशिश करे। महत्व पुर्ण हैं, बच्चे की रुचि पैदा करे, वह खुशी महसूस करे, वह कार्य उससे करवाए।
इतिहास गवाह हैं, अनपढ कबिर पर कालेज में पीएचडी होती हैं। सफलता में विवेक बुद्धि की जरूरत हैं। इसका अर्थ कदापि नहीं बच्चे मेरीट में नहीं आए। काम्पीटिशन खुद को अच्छा बनाने का हो। ना कि दुसरो से आगे बढ़ने का, बाहरी काम्पिटीशन ना हो। बाहरी काम्पीटीशन लोगों को हराकर जितने का होता हैं, जो मानसिक तनाव पैदा करता है। खुद को अच्छा बनाना, खुद की बुराई दुर करके ,काबिलियत वाला बनना महत्व पुर्ण हैं।
हमारे पुरानी नकारात्मक, सोच को दुर करके प्रकृति किस तरह कार्य करती हैं, वैसे कार्य करें, प्रकृति को सहयोग करने के लिए, क्योंकि आप से पहले प्रकृति थी, आप के जाने के बाद भी रहेगी, किसी पेड का अध कच्चा फल तोड़ने पर पेड को दर्द होता हैं। वैसे ही, अपरिपक्व रुप से आधे अधूरे समय, तोडने पर पेड़ को दर्द होता हैं, बगैर अपने को पिडा पहुंचाए खुशी से जैसे पके फल को, वृक्ष खुशी से गिराकर धरती को सौपता हैं, वैसे ही, इस शरीर से कुशल कर्म करके, अपने वृद्धावस्था में पृथ्वी अपने में आपको समाहित कर लेगी खुशी खुशी। बस पुर्ण सजगता और प्राकृतिक नियमों को पालन करके, बहुत से लोगों के हित और सुख के लिए जीवन जीते रहे। जनकल्याण करते रहे। 
आपके जीवन में आनंद और मन प्रफुल्लित होगा।
धरती मेरी मां, कहे इस तुकडो में ना बांटो, आखिर सत्य यह हैं। हम इस धरती पर मेहमान हैं, कदापि ना भुले। आत्महत्या से बढ़कर कोई अपराध नहीं, एक संत ने सच कहा हैं, आत्महत्या करना कायराना कृत्य हैं। मुकाबला करना वीरता का कार्य हैं। 

- अनिल गोलाईत
 





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